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ब्रिटिश पार्लियामेंट में डॉ चिन्मय पण्ड्या को मिला भारत गौरव अवार्ड

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 हरिद्वार 13 मई। विश्व की सबसे पुरानी माने जाने वाली पार्लियामेंट में से ब्रिटीश पार्लियामेंट एक है। यहाँ अधिकतर अंग्रेजी रीति रिवाज से कार्यक्रमों, समारोहों का शुभारंभ होता है। लेकिन यह पहला अवसर है जब गायत्री परिवार के युवा प्रतिनिधि एवं देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति डॉ चिन्मय पण्ड्या का सम्मान समारोह का शुभारंभ गायत्री महामंत्र से हुआ। इस अवसर पर गायत्री परिवार के भारतीय संस्कृति के साथ आध्यात्मिकता के विश्वभर में विस्तार के लिए डॉ. चिन्मय पण्ड्या जी को भारत गौरव अवार्ड से सम्मानित किया गया। यह सम्मान समारोह ब्रिटीश पार्लियामेंट के हाउस आफ कामन्स लंदन में आयोजित हुआ। यह सम्मान संस्कृति युवा संस्थान की ओर से गायत्री परिवार के युवा प्रतिनिधि डॉ चिन्मय पण्ड्या जी को दिया गया। जब सम्मान समारोह चल रहा था, तब पूरा ब्रिटिश पार्लियामेंट तालियां की गुंज से भारत के इस युवा आइकान को बधाई दे रहे थे। देसंविवि के प्रतिकुलपति डॉ चिन्मय पण्ड्या जी इस सम्मान को अखिल विश्व गायत्री परिवार से जुड़ेे प्रत्येक कार्यकर्ता का सम्मान बताया और कहा कि यह सम्मान मेरे सिर्फ अकेले का नहीं, वरन इस अभियान में जुटे सभी युवा, कार्यकर्ता भाई बहिनों का है।



इस अवसर पर अखिल विश्व गायत्री परिवार के प्रमुखद्वय श्रद्धेय डॉ प्रणव पण्ड्या जी एवं श्रद्धेया शैलदीदी के मार्गदर्शन में चलाये जा रहे सांस्कृतिक उत्थान एव युवाओं के रचनात्मकता के क्षेत्र किये गये कार्यों को ब्रिटिश पार्लियामेंट ने खूब प्रशंसा की। और गायत्री परिवार द्वारा चलाये जा रहे इस उत्कृष्ट कार्य के लिए ब्रिटिश पार्लियामेंट में भारत गौरव अवार्ड से सम्मानित किया।


उल्लेखनीय है कि देश विदेश में अखिल विश्व गायत्री परिवार विभिन्न रचनात्मक व सुधारात्मक कार्यक्रम का संचालन करता है। इसके अंतर्गत नौनिहाल, युवा पीढी से लेकर सभी आयु वर्ग के लिए अनेक गतिविधियों का संचालन करता है। साथ ही पर्यावरण संरक्षण से लेकर भारतीय संस्कृति के विस्तार तथा युवाओं में सकारात्मक परिवर्तन के लिए चरणबद्ध तरीके से विभिन्न आयोजन का सफल संचालन करता है। यही कारण है कि इस समय दुनिया अखिल विश्व गायत्री परिवार की ओर आशा भरी निगाहों से देख रही है। अखिल विश्व गायत्री परिवार के जिस कार्य को अपने हाथ में लेता है उसे पूरे तन, मन धन से पूरा करता है। गायत्री परिवार के इन्हीं कार्यों से ब्रिटिश पार्लियामेंट काफी प्रभावित हुआ और शांतिकुंज परिवार को समानित करने का निर्णय लिया।

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