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न छेनी, न चलेगी हथौड़ी - 600 करोड़ साल पुरानी शिलाओं से कैसे तराशी जाएंगी रामलला की मूर्ति , जाने ...

नई दिल्ली । अयोध्या में बन रहे भगवान राम के भव्य मंदिर में रामलला की मूर्ति तैयार करने के लिए नेपाल से शाली ग्राम शिलाएं लाई गई हैं। ये शिलाएं नेपाल के काली गंडकी नदी से लाई गई हैं। बताया जा रहा है कि करीब 600 करोड़ साल पुरानी इन शिलाओं से ही रामलला की मूर्ति को तैयार किया जाएगा लेकिन सामने चुनौती है कि इन शिलाओं पर लोहे के औजारों का इस्तेमाल वर्जित हैं। यानी छेनी और हथौड़ी के जरिए रामलला की मूर्ति नहीं बनाई जाएगी। तो सवाल उठता है कि ऐसे में इन भारी भरकम शिलाओं पर किस चीज का इस्तेमाल कर रामलला की मूर्ति तैयार की जाएगी?


हीरे काटने वाले औजार से होगा मूर्ति का निर्माण

ऐसा बताया जा रहा है कि लोहे का इस्तेमाल वर्जित होने की वजह से छेनी या हथौड़ी का इस्तेमाल इन शिलाओं पर नहीं किया जाएगा। तो ऐसे में इन शिलाओं के जरिए रामलला की मूर्ति को गढ़ने के लिए हीरे काटने वाले औजार का प्रयोग किया जाएगा। नेपाल (Nepal) से लाई गई दो शिलाओं का वजन काफी ज्यादा है इन में से एक 26 टन की तो दूसरी शिला 14 टन की है।

इन शिलाओं पर रिसर्च करने वाले भूगर्भीय वैज्ञानिक डॉ. कुलराज चालीसे ने दावा किया है कि मां जानकी की नगरी से भगवान राम के स्वरूप निर्माण के लिए लायी गई देवशिला में 7 हार्नेस की है। इसलिए लोहे की छेनी के जरिए इन्हें नहीं गढ़ा जा सकता है।

डॉ. कुलराज चालीसे का मानना है कि करीब 600 करोड़ साल पहले की इन शिलाओं पर लोहे के औजारों के बजाए हीरे काटने वाले औजारों का इस्तेमाल किया जाएगा।

26 जनवरी को नेपाल में लादी गई शिलाओं को तकनीकी विशेषज्ञों की देखरेख में चार क्रेनों की मदद से उतारा गया। ये शालिएं 1 फरवरी को अयोध्या पहुंची। अगले दिन वैदिक मंत्रोच्चार के साथ देव शिलाओं की पूजा की गई। फिर इन्हें राम मंदिर समिति को सौंप दिया गया। इससे पहले पूजा-अर्चना के लिए शिलाओं को फूल मालाओं से सजाया गया था।

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