International Mother Tongue Day : आज 21 फरवरी है और इस दिन को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया जा जाता है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य दुनियाभर में न सिर्फ विश्व की सभी भाषाओं का सम्मान हो बल्कि लुप्त होती मातृभाषाओं के संरक्षण के लिए गंभीर प्रयास किए जाएं। भाषा अभिव्यक्ति का एक ऐसा माध्यम है जो एक दूसरे को जोड़ने का काम करता है। कोई भी देश तभी समृद्ध हो सकता है जब स्वंय व्यक्ति अपनी मातृभाषा को समृद्ध करे। आइए जानते हैं अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का इतिहास, महत्व और थीम…
अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस
दुनियाभर की विभिन्न मातृभाषाओं के प्रति जागरूकता बढ़ाने और उनके संरक्षण के लिए यूनेस्को द्वारा प्रतिवर्ष 21 फरवरी को ‘अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस’ मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 2019 को स्वदेशी भाषाओं के अंतरराष्ट्रीय वर्ष के रूप में घोषित किया गया था। वर्ष 2022 और वर्ष 2032 के बीच की अवधि को संयुक्त राष्ट्र ने स्वदेशी भाषाओं के अंतरराष्ट्रीय दशक के रूप में नामित किया है। यूनेस्को द्वारा मातृभाषा दिवस मनाने की घोषणा 17 नवंबर 1999 को की गई थी और पहली बार वर्ष 2022 में इस दिन को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया गया था।
साल 2023 की थीम
इस अवसर पर विश्वभर में भाषा और संस्कृति से जुड़े विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस महत्वपूर्ण दिवस के लिए यूनेस्को द्वारा एक थीम निर्धारित की जाती है। इस बार अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की थीम ‘बहुभाषी शिक्षा के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग: चुनौतियां और अवसर’ है।
जानिए कैसे हुई शुरुआत
सही मायने में अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस को मनाए जाने की शुरुआत बांग्ला भाषा आन्दोलन के दौरान हुई थी। कनाडा में रहने वाले बांग्लादेशी रफीकुल इस्लाम ने 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने का सुझाव दिया था। दरअसल ढाका यूनिवर्सिटी के छात्रों और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा अपनी मातृभाषा का अस्तित्व बनाए रखने के लिए 21 फरवरी 1952 को एक बड़ा आन्दोलन हुआ था और तत्कालीन पाकिस्तान सरकार ने उस आन्दोलन को दबाने के लिए प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलवा दी थीं। इस आंदोलन में करीब में 16 लोगों की मौत हो गई थी। भाषा के इस बड़े आन्दोलन में शहीद हुए युवाओं की स्मृति में ही यूनेस्को द्वारा वर्ष 1999 में निर्णय लिया गया कि प्रतिवर्ष 21 फरवरी को दुनियाभर में मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया जाएगा
क्षेत्रीय भाषाओं को जानने और समझने में मदद मिलती है
मातृभाषा की मदद से केवल क्षेत्रीय भाषाओं के बारे में जानने-समझने में ही सहायता नहीं मिलती बल्कि एक- दूसरे से बातचीत करना भी आसान हो जाता है। यही वजह है कि भाषा की विविधता को विस्तार से जानने के लिए कई देशों ने इस विषय पर मिलकर काम करने का निर्णय लिया है, जिसके तहत एक क्षेत्र का व्यक्ति किसी दूसरे क्षेत्र के व्यक्ति की मातृभाषा को न केवल जान पाएगा बल्कि उसे सीख भी सकेगा।
हर दो हफ्ते में एक भाषा लुप्त
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार हर दो हफ्ते में एक भाषा गायब हो रही है। वर्तमान में दुनियाभर में बोली जाने वाली करीब 6900 भाषाएं हैं और इनमें से 90 प्रतिशत भाषाएं बोलने वाले लोग एक लाख से भी कम हैं लेकिन चिंता की बात यह है कि दुनियाभर में बोली जाने वाली इन 6900 भाषाओं में से करीब 43 फीसदी भाषाएं लुप्तप्राय हैं। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक केवल कुछ सौ भाषाओं को ही शिक्षा प्रणालियों और सार्वजनिक क्षेत्र में जगह मिली है और वैश्विक आबादी के करीब चालीस फीसदी लोगों ने ऐसी भाषा में शिक्षा प्राप्त नहीं की, जिसे वे बोलते अथवा समझते हैं
हिंदी दुनिया में चौथी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा
भारत में हिन्दी सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषा में से है। 2011 की जनगणना के आधार आज हिन्दी बोलने वालों की संख्या 43.63% है। वहीं अन्य देशों में मंदारिन, स्पेनिश और अंग्रेजी के बाद हिंदी दुनिया में चौथी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा भी है।
वैश्विक मंचों पर पीएम बोल रहे हैं हिन्दी
आज पीएम मोदी वैश्विक मंचों से हिन्दी भाषा में अपना भाषण दे रहे हैं। पीएम मोदी ने हिन्दी के महत्व पर जोर देते हुए कहा था कि भाषा किसी के मूल्यांकन का आधार नहीं हो सकती। व्यक्ति के विचार और कर्म से ही उसका मूल्यांकन संभव है। उन्होंने अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा हासिल करने वाले छात्रों के माता-पिता से अनुरोध किया कि वे अपने बच्चों से घरों में स्वभाषा में बात करने की अपील की थी।
NEP में स्थानीय भाषाओं को दिया जा रहा महत्व
केंद्र सरकार देश की क्षेत्रीय भाषाओं को प्रोत्साहित करने का हर संभव प्रयास कर रही है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में स्थानीय भाषाओं के महत्व पर जोर दिया है। हाल ही में अपनी भाषा में ही छात्र मेडिकल शिक्षा प्राप्त कर सकें इसके लिए केंद्र सरकार कई कदम उठा रही है।पीएम मोदी ने हिंदी, तमिल, तेलुगु, मलयालम, गुजराती, बंगाली आदि क्षेत्रीय भाषाओं में मेडिकल और इंजीनियरिंग की शिक्षा उपलब्ध कराने का आह्वान किया था।