रायपुर। फाइलेरिया जैसी गंभीर संक्रामक रोग से मुक्ति दिलाने के लिए स्वास्थ्य विभाग लगातार मुस्तैद रहता है। इसके लिए कभी रात्रि सर्वे तो कभी रोग प्रबंधन और प्रशिक्षण के माध्यम से लोगों को जागरूक किया जाता है। फाइलेरिया संक्रामक रोगों में से एक है, इसके लिए साल में एक बार ट्रिपल ड्रग थेरेपी-मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एमडीए) अभियान चलाया जाता है। इसमें लक्षित आबादी को फाइलेरिया रोधी दवा खिलाई जाती है। इसी उद्देश्य के तहत मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय के सभागार में एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस दौरान लिंफेटिक फाइलेरिया (हाथीपांव) से ग्रसित मरीजों को मार्बीडीटी मैनेजमेंट एंड डिसेबिलिटी प्रिवेंशन (एमएमडीपी) किट भी बांटा गया।
इस अवसर पर मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ मिथिलेश चौधरी ने कहा, ‘’जिले को फाइलेरिया मुक्त करने की दिशा में निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। इसके लिए नाइट ब्लड सर्वे, एमडीए अभियान एवं अन्य जांच व सर्वेक्षण अभियान के साथ जन जागरूक गतिविधियां आयोजित की जा रही हैं। डेंगू, मलेरिया और मच्छर जनित रोगों की ही तरह फाइलेरिया को भी गंभीरता से लेना है। इसके प्रति सतर्क एवं जागरूकरहना निरंतर आवश्यक है।‘’ जिला मलेरिया अधिकारी डॉ. विमल किशोर राय ने कहा, ”फाइलेरिया रोग क्यूलेक्स मच्छर काटने से होता है।
इस मच्छर के काटने
से वुचरेरिआ बैंक्रोफ्टी (Wuchereria
Bancrofti) नाम के परजीवी शरीर में जाने से ये रोग होता
है। वयस्क मच्छर छोटे-छोटे लार्वा को जन्म देता है, जिन्हें माइक्रो फाइलेरिया कहा जाता है। ये मनुष्य के रक्त में रात
के समय एक्टिव होता है। इस कारण स्वास्थ्य विभाग की टीम रात में ही पीड़ित का ब्लड
सैंपल लेती हैं। साथ ही फाइलेरिया के कारण व बचाव के प्रति लोगों को जागरूक करने
के लिए ही प्रत्येक वर्ष 11
नवम्बर को राष्ट्रीय फाइलेरिया दिवस मनाया जाता है। फाइलेरिया के मरीजों को
स्वच्छता और साफ-सफाई के उद्देश्य से एमएमडीपी किट निःशुल्क प्रदान की जाती है।
फाइलेरिया लिम्फोडिमा (हाथीपांव) और हाइड्रोसील के मरीजों का शासकीय चिकित्सालयों
में निशुल्क इलाज किया जाता है।“
फाइलेरिया के लक्षण
आमतौर पर
फाइलेरिया के कोई लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देते। लेकिन पसीना, सिर दर्द, हड्डी व जोड़ों में दर्द, भूख में कमी, उल्टी आदि के साथ बदन में खुजली और
पुरुषों के जननांग और उसके आस-पास दर्द व सूजन की समस्या दिखाई देती है। इसके
अलावा पैरों और हाथों में सूजन,
हाथी पांव और हाइड्रोसील (अंडकोषों की सूजन) भी फाइलेरिया के लक्षण
हैं। इसके लक्षण दिखने में 8 से
16 माह या अधिक
समय लग सकता है। फाइलेरिया का संक्रमण बचपन में ही आ जाता है, लेकिन कई सालों तक इसके लक्षण नजर नहीं
आते। फाइलेरिया न सिर्फ व्यक्ति को विकलांग बना देता है बल्कि इससे मरीज की मानसिक
स्थिति पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
आहार और सफाई का रखें ख्याल
फाइलेरिया
मच्छरों के काटने से होता है। मच्छर गंदगी में पैदा होते हैं। इसलिए इस रोग से
बचना है, तो आस-पास सफाई
रखना जरूरी है। दूषित पानी, कूड़ा
जमने ना दें, जमे
पानी पर कैरोसीन तेल छिड़क कर मच्छरों को पनपने से रोकें, सोने के समय मच्छरदानी का उपयोग अवश्य
करें। एक तरफ जहां मरीजों का उपचार एवं प्रबंधन तो दूसरे तरफ ज्यादा से ज्यादा
लोगों को साल में एक बार दवा का सेवन कराना आवश्यक है।