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महासमुन्द सांसद ने तीन साल पहले संसद में उठाया था मुद्दा, अब जाकर मिला आदिवासियों को लाभ

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महासमुन्द। केंद्र सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ के कुछ जातियों को जनजातियों की सूची में शामिल किए जाने संबंधी निर्णय अभी सुर्खियों में है। वस्तुतः जातियों को जनजाति सूची में शामिल नहीं किया गया है, वरन मात्रात्मक त्रुटि से हो रही परेशानी को ठीक किया गया है। करीब 15 वर्षों तक लम्बी लड़ाई लड़ रहे आदिवासियों के मुद्दे को महासमुन्द सांसद चुन्नीलाल साहू ने जुलाई-2019 में संसद में प्रमुखता से उठाया था। 


तीन साल तक कागजी कार्यवाही के बाद अब जाकर इसका लाभ आदिवासियों को मिलने जा रहा है। इससे आदिवासी समुदाय में खुशी की लहर दौड़ गई है।






यह  मामला करीब 15 वर्ष से अधिक पुराना है। यह संघर्ष तब शुरू हुआ था, जब आरक्षित जातियों के लिए जाति सत्यापन प्रमाण पत्र लेने की अनिवार्यता की गई थी। फर्जी जाति प्रमाण पत्र से लोग एसटी आरक्षित सीटों पर नौकरी हासिल कर रहे थे। तब एनपी नौरोजी ने पीड़ितों की आवाज उठाई। बाद में यह बड़ा आंदोलन का रूप ले लिया। वर्ष 2017 में सराईपाली के पास जंगी प्रदर्शन हुआ तो सरकार गम्भीर हुई।



वास्तव में किसी भी नई जाति को अनुसूचित जनजाति वर्ग की सूची में अभी शामिल नहीं किया गया है। वरन उच्चारण दोष तथा राजस्व अधिकारियों की अनुदारता के कारण जाति प्रमाण पत्र से वंचित हुए आरक्षित वर्ग लोगों को इस सूची के माध्यम से लाभान्वित किया गया है। 

महासमुंद जिला में सबर आदिवासी जाति बड़ी संख्या में हैं। जिनमें से अधिकांश लरिया या उड़ियाभाषी हैं । सबर जाति को स्थानीय लोग सांवरा, सौंरा, संवरा भी बोलते हैं। इस जाति के लोग जब जाति प्रमाण के लिए राजस्व विभाग में आवेदन प्रस्तुत किए थे और स्थानीय बोली में अपनी जाति बताएं थे। तब सक्षम अधिकारियों ने इस आधार पर प्रमाण पत्र रोक दिया था कि केंद्र / राज्य सरकार की सूची के उच्चारण से उनकी जाति का मेल नहीं हो रहा है ।

छत्तीसगढ़ सांवरा समाज के तत्कालीन प्रमुख सेवानिवृत आयकर अधिकारी  नारायण प्रसाद नैरोजी इस प्रकरण को शासन - प्रशासन के अधिकारियों के समक्ष रखे। लेकिन अधिकारी संतुष्ट नहीं हुए और बड़ी संख्या में लोग भटक रहे थे। तब स्थानीय जनप्रतिनिधि ( खल्लारी के तत्कालीन विधायक चुन्नीलाल ) के माध्यम से तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह के समक्ष मांग रखी। मुख्यमंत्री के निर्देश पर फाइलें चलने लगी और समिति भी गठित हुआ। समिति ने उच्चारण दोष के कारण हुए त्रुटि को न सुधारकर नए जातियों को जोड़ने का सुझाव दे दिया। इस तरह यह मामला और भी पेचीदा हो गया। क्योंकि, यह अधिकार केवल केंद्र सरकार को है। इस समस्या का निदान नहीं होने पर सांवरा समाज और आदिवासी संगठन के हजारों लोग 2017 में बसना, सरायपाली के राष्ट्रीय राजमार्ग में चक्काजाम कर जंगी प्रदर्शन कर दिए। इस प्रदर्शन के बाद सरकार ने आदेश जारी कर इन जातियों को जाति प्रमाण पत्र देने का आदेश किया। इस पर किसी ने हाईकोर्ट में याचिका लगाकर इस आदेश को ही स्थगित करा दिया । इस प्रकार मामला उलझ गया।

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में चुन्नीलाल साहू, महासमुंद लोकसभा से सांसद निर्वाचित हुए। तब सांवरा समाज के प्रमुखों ने उनके माध्यम से केंद्र सरकार का ध्यान आकर्षित किया। महासमुंद सांसद ने अपने कार्यकाल के प्रथम सत्र में 24 जून 2019 को ही लोकसभा में इस मुद्दे को दमखम से उठाया था। तब तत्कालीन केंद्रीय मंत्री  अर्जुन मुंडा ने समुचित कार्यवाही का आश्वासन सदन को दिया था । जो वर्षों की मशक्कत के बाद करीब तीन साल बाद अब पूरा हो पाया है।

इस बीच सामाजिक जनप्रतिनिधियों की मांग पर राज्यपाल अनुसुईया उईके, तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह, वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी केंद्र सरकार से पत्र व्यवहार करते रहे हैं।

अहम सवाल यह है कि मात्रात्मक त्रुटि की वजह से जाति प्रमाण पत्र से वंचित लोगों को हुए नुकसान की भरपाई कैसे होगी? आयु सीमा पार कर चुके पात्र शिक्षित बेरोजगारों को क्या कुछ राहत दी जाएगी? यहनीति गत निर्णय नहीं हुआ है।

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