आनंदराम पत्रकारश्री
महासमुन्द। जो भी कानून व्यवस्था बनाने की कोशिश करेगा, वह हमारे शहर में नहीं रहेगा। क्योंकि "हम हैं महासमुन्द के सरकार! यहां दुम हिलाने वाले को ही कुर्सी पर बैठने का है अधिकार।" कुछ ऐसा ही चल रहा है महासमुन्द में। एक ओर मुख्यमंत्री की अनुशंसा से स्थानांतरित प्रशासनिक अधिकारी को अनुविभाग की मलाईदार कुर्सी पर नियम विरूद्ध जमे रहने का खुला संरक्षण है। वहीं, पीड़ितों को न्याय दिलाने महज धारा 151 के तहत प्रतिबंधात्मक कार्यवाही करने वाले थानेदार को तत्काल (कथित राजनीतिक हस्तक्षेप से) बदल दिया गया। यह हम नहीं, महासमुन्द की जनता कह रही है। ये पब्लिक है सब जानती है।
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स्थानांतरण सूची |
अभी-अभी पुलिस अधीक्षक कार्यालय महासमुन्द से स्थानांतरण सूची जारी हुई है। सूची में महासमुन्द थानेदार का नाम शीर्ष पर है।
जिले में पदस्थ युवा कप्तान शिक्षकीय जीवन शैली से इस अहम मुकाम को हासिल किए हैं। उनमें गजब का जज्बा है। सकारात्मक सोच के साथ 'जनता पुलिसिंग' उनकी पॉलिसी है। सूत्र बताते हैं कि उन्हें भी यहां की 'गंदी राजनीति' रास नहीं आ रही है। माफिया गैंग (शराब, गुटखा, रेत माफिया) को खुलेआम संरक्षण और जनता के साथ जुल्म। उन्हें क्या, किसी को भी अच्छा नहीं लगेगा।
बताते हैं कि हर अपराध में राजनीतिक हस्तक्षेप से दुःखी थानेदार ने फरियाद की -साहब! मुझे महासमुन्द से हटा दीजिए। इस बीच ही पर्दे के पीछे बड़ा वाक्या हो गया। महासमुन्द की जनता बहुत जागरूक है। एसपी ऑफिस और कोतवाली में हल्ला बोल दिया। अंततः मजबूरी में धारा 151 की औपचारिक कार्यवाही करनी पड़ी। थानेदार पर नाबालिग आदिवासी को पीटने का भी आरोप लगा है। पॉक्सो एक्ट के तहत कार्यवाही का खतरा मंडरा रहा है। ऐसे में इसी में भलाई है कि दूरस्थ क्षेत्र में चले जाएं।
आदिवासी समुदाय उद्वेलित हैं। एक के बाद एक हो रहे जुल्म और अत्याचार के खिलाफ मोर्चाबंदी हो रही है। जो कभी भी विस्फोटक रूप ले सकती है। बहरहाल, इस बदलाव के कई मायने निकाले जा रहे हैं। वैसे कप्तान की जिले में पदस्थापना के बाद यह पहली स्थानांतरण सूची है। इसलिए, इसे प्रशासनिक व्यवस्था के लिए लाजिमी माना जाना ही उचित होगा।