महासमुंद। शासन के खिलाफ छग कर्मचारी-अधिकारी फेडरेशन ने विभिन्न मांगों को लेकर मोर्चा खोल दिया है। तीसरे चरण के आंदोलन में कर्मचारियों ने 25 से 19 जुलाई तक सामुहिक अवकाश पर रहने की घोषणा के बाद दफ्तरों में 9 दिन कामकाज प्रभावित हो रहा है। इसमें चार दिन शविार-रविवार का अवकाश भी शामिल है। याने दफ्तरों में 23 जुलाई से अवकाश हो गया है। फेडरेशन ने पत्रकारों को प्रेसवार्ता कर बताया कि 14 सूत्रीय मांगों को लेकर लगातार चरणबद्ध आंदोलन किया लेकिन शासन की हठधर्मिता के कारण 5 दिनों तक सामुहिक अवकाश पर जाने का निर्णय छग कर्मचारी-अधिकारी फेडरेशन ने किया है।
प्रेस क्रांफेंस में जिला संयोजक श्रीमती एस चंद्रसेन, संरक्षक प्रमोद तिवारी, रिखीराम साहू, कमलेश ध्रुव, एसपी ध्रुव, जिला सहसंयोजक टेकराम सेन, दीपक तिवारी, के.के चंद्राकर, ईश्वर चंद्राकर, मनीष ठाकुर, मीना, अशोक गोस्वामी, चमन चंद्राकर, दिलीप तिवारी, बीपी मेश्राम, कृपाराम चंद्राकर, आशुतोष जोशी, रामकुमार चंद्राकर, कोशिल जेंड्रें, नंदकुमार सिन्हा, शिवकुमार साहू आदि ने बताया कि फेडरेशन द्वारा केंद्र के सामान महंगाई भत्ता, 34 प्रतिशत एवं सातवें वेतनमान के अनुरूप गृहभाड़ा भत्ता देने की मांग को लेकर चरणबद्ध धरना-प्रदर्शन, महारैली किया किंतु शासन ने ध्यान नही दिया।
सामुहिक अवकाश के बाद शासन द्वारा कोई निर्णय नही लिया जाता तो अगस्त माह में अनिश्चितकालीन हड़ताल में जाने बाध्य होंगे। हमारे आंदोलन को जिले में सभी हड़ताली संगठनों का समर्थन प्राप्त है और संगठन के अधिकारी-कर्मचारी आंदोलनरत है। प्रदेश में 72 से 77 मान्यता प्राप्त और गैरमान्यता प्राप्त संगठन है सभी का इस आंदोलन को समर्थन है। कर्मचारी नेताओं ने आरोप लगाया कि सरकार का रवैय्या कर्मचारियों के प्रति उदासीन है। हड़ताल मे जाने से जनता को जो परेशानी और व्यवस्था होगी इसके लिए शासन दोषी है क्योंकि उनके द्वारा कर्मचारी की समस्याओं का निदान नही किया गया। कर्मचारी का वर्तमान में 12 प्रतिशत महंगाई भत्ता लंबित है। छग के लिए यह दुर्भाग्यजनक है कि कर्मचारियों को ऐसे मांग को लेकर आंदोलन करना पड़ रहा है जो कर्मचारियों को बिना मांगे मिलता है , जैसे ही केंद्र में महंगाई भत्ता बढ़ता है वैसे ही राज्य में भी महंगाई भत्ता दे दी जाती है। एक दिन पूर्व ही उत्तर प्रदेश में कर्मचारियों के बिना मांगे ही वहां के सरकार ने महंगाई भत्ता बढ़ा दिया। महंगाई भत्ता नही देने से कर्मचारियों को प्रतिमाह हजारों रुपए का नुकसान हो रहा है।