अंबिकापुर: जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के अध्यक्ष आर.बी घोरे के मार्गदर्शन में प्राधिकरण के सचिव अमित जिंदल ने विधि छात्रों को हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की जानकारी दी। उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि कोई भी व्यक्ति अगर पहली शादी छिपाकर दूसरी शादी करता है तो भारतीय दंड संहिता के तहत उस पर 10 साल तक के कारावास और जुर्माने की कार्रवाई की जाएगी।
जिंदल ने बताया कि पहले पत्नी के रहते हुए दूसरे पति या पत्नी से विवाह करना हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत शून्य होकर धारा 17 के अनुसार भारतीय दण्ड संहिता की धारा 494, 495 के तहत दंडनीय होगा। द्विविवाह करने पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 494 के तहत 7 साल तक के कारावास और जुर्माने से दण्डनीय होगा। जिंदल ने छात्रों को धारा 493, 498 भारतीय दण्ड संहिता, दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 198, हिन्दू विवाह अधिनियम, हिन्दू अप्राप्तव्य और संरक्षता अधिनियम 1956 की भी विस्तार से जानकारी दी।
बता दें कि कवर्धा जिला कोर्ट की न्यायाधीश नीता यादव ने दूसरी पत्नी की हत्या मामले में आरोपी पति को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। कोर्ट ने सिंघनपुरी थाना क्षेत्र के नरेंद्र साहू को हत्या करने और सबूत छिपाने के अपराध में दोषी पाते हुए भारतीय दंड संहिता के तहत उम्रकैद और 1000 रूपए के अर्थदंड से दंडित किया था। इसी तरह 5 साल सश्रम कारावास और 1000 का जुर्माना लगाया था।
प्रकरण के मुताबिक आरोपी ने केकती बाई से दूसरी शादी की थी, जिसे वो संरोधी के ईंटा भट्टा झोपड़ी में रखा था। घटना के 20-30 दिन पहले आरोपी ने मृतिका को मायके जाने के नाम पर पैर को टंगिया से काट देने की धमकी दी गई थी। वहीं मायके नहीं जाने दिया था। इसके बाद घटना की रात को दोनों के बीच फिर विवाद हुआ, जिस पर आरोपी ने पत्नी की गला दबाकर हत्या कर दी। साथ ही शव को झोपड़ी के पास जमीन में गड़ाकर सबूत छिपाने की कोशिश भी की। सबूत के आधार पर परिस्थिजन्य साक्ष्य की श्रृखंला पूरी पाए जाने पर अभियुक्त को दोषी पाया गया।
सबूतों में घटना दिनांक को अभियुक्त और मृतिका के बीच लड़ाई झगड़ा होना, झगड़े के तुरंत बाद अभियुक्त द्वारा मृतिका का गला स्कार्फ से घोटना, दूसरे दिन थाने पहुंचकर घटना की स्वेच्छिक सूचना देना, घटना स्थल की पहचान करना, अभियुक्त के बताए स्थल से मृतिका का शव प्राप्त होना और अभियुक्त द्वारा घटना दिनांक के 20-30 दिन पहले मृतिका को मायके जाने पर टंगिया से काट देने की धमकी देना और मायके न जाने देना शामिल थे। एट्रोसिटी अधिनियम की धाराओं से अभियुक्त को दोषमुक्त किया गया। क्योंकि इस अधिनियम के अपराध प्रमाणित नहीं पाए गए।