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Mahasamund : श्रमदान कर खाया बोरे बासी, फिर शुरू हुआ मौन सत्याग्रह

 महासमुन्द। जिला प्रशासन द्वारा मौन सत्याग्रह धरना की स्वीकृति नहीं दिए जाने से आनंदराम पत्रकारश्री ने निज निवास में ही आज सुबह 10 बजे से मौन सत्याग्रह प्रारंभ कर दिया है। मौन सत्याग्रह के पहले दिन श्रमिक दिवस पर आनंदराम पत्रकारश्री ने दिन की शुरूआत श्रमदान से की। सत्याग्रह के लिए प्रस्तावित स्थल पर उन्होंने धन्नू औसर, रोहित साहू, कल्लू सोनी प्रकाश साहू आदि के साथ मिलकर श्रमदान किया। श्रमिक रोहित सम्मान स्वरूप 125 रुपये सम्मान राशि भेंट की। बाद बोरे बासी खाकर सुबह ठीक 10 बजे मौन सत्याग्रह प्रारंभ कर दिया। जिला प्रशासन के अड़ियल रवैया और मौन सत्याग्रह प्रदर्शन की अनुमति नहीं मिलने से उन्होंने घर पर ही रहकर सत्याग्रह शुरू कर दी है। मुँह पर सत्याग्रह की पट्टी बांधकर और प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) में मिले पत्रकारश्री सम्मान पर काली पट्टी लगाकर अतिवादी प्रशासनिक व्यवस्था का विरोध कर रहे हैं। आनंदराम का कहना है कि आत्म शुद्धि और अतिवादी लोक सेवकों की सदबुद्धि के लिए उन्होंने शांतिपूर्ण मौन सत्याग्रह का राह चुना है। वे ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं कि लोक सेवकों को सद्बुद्धि दे, जिससे कोई भी आम आदमी इनके अतिवादी कार्य व्यवहार से परेशान न हों। उन्होंने कहा कि सत्याग्रह में  कितना भी रोड़ा अटकाया जाए, वे मौन सत्याग्रह करने के संकल्प  पर  अडिग हैं और हर हाल में  मांगें पूरी होने तक सत्याग्रह करते रहेंगे। 




आनंदराम पत्रकारश्री  ने कहा कि प्रशासनिक अतिवादी व्यवस्था से आम आदमी का जीना दूभर हो गया है। छोटे-बड़े काम के लिए लोग कई-कई दिनों तक दफ्तरों का चक्कर काट रहे हैं। एक ओर छत्तीसगढ़ सरकार सुराजी गांव योजना चला रही है। गांव-गरीब और किसान-श्रमिक हित में महत्वकांक्षी योजनाएं बना रही है। वहीं दूसरी ओर कार्यपालिका के कतिपय लोग इन योजनाओं के सफल क्रियान्वयन में रोड़ा अटकाने का काम कर रहे हैं।

प्रशासनिक स्वेच्छाचारिता चरम पर



 बेरोजगारों को नौकरी देने भर्ती प्रक्रिया शुरू होती है। अपने चहेतों की नियुक्ति नहीं होने पर भर्ती प्रक्रिया ही रद्द कर दी जाती है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अन्तर्गत भर्ती प्रक्रिया में यही हुआ है। नर्रा की ग्रामीण महिलाओं को थाना में बेरहमी से पीटा जाता है। संवेदनशील राज्यपाल द्वारा इसकी जांच के आदेश की अवज्ञा कर आठ महीने बीत जाने के बाद भी अब तक जांच ही संस्थित नहीं की गई है। इस तरह महासमुन्द जिले में प्रशासनिक स्वेच्छाचारिता चरम पर पहुंच है। जहां सत्तारूढ़ दल के चंद लोगों के अलावा आम आदमी की कोई सुनवाई ही नहीं हो रही है। 

यह है पांच सूत्रीय मांग

1. माननीय उच्च न्यायालय बिलासपुर के स्थगन आदेश की अवहेलना कर अंबेडकर चौक महासमुन्द स्थित मीडिया हाउस ( प्रेस कार्यालय) को ढहाने वालों के खिलाफ तत्काल एफआईआर और अनुशासनात्मक/दण्डात्मक कार्यवाही हो। 

2. लोकतंत्र का चौथा अंग 'मीडिया' को स्वतंत्र रूप से काम करने दिया जाए, इसके लिए  (श्रीपुर एक्सप्रेस और media24media के) महासमुन्द कार्यालय का व्यवस्थापन कर, तोड़फोड़ से हुई क्षति की भरपाई के लिए समुचित क्षतिपूर्ति राशि दिलाई जाए। 

3. लोक निर्माण विभाग ( सेतु निर्माण) महासमुन्द के अनुविभागीय अधिकारी द्वारा निर्माणाधीन तुमगांव रेलवे ओवरब्रिज के इर्द-गिर्द गुमटी/ठेला लगवाकर बड़े पैमाने पर अतिक्रमण कराया जा रहा है। इसकी आड़ में गरीबों (श्रमिकों) से उगाही की जा रही है। समूचे मामले की उच्च स्तरीय जांच हो, ब्रिज के आसपास अतिक्रमण को तत्काल रोका जाए। इसमें संलिप्त दोषियों पर दण्डात्मक कार्यवाही की जाए। 

4. छत्तीसगढ़ के राज्यपाल के आदेश की अवज्ञा करते हुए जिला प्रशासन महासमुन्द के अधिकारियों ने नर्रा कांड की दण्डाधिकारी जांच अब तक संस्थित नहीं की है। 8 महीने बाद भी दण्डाधिकारी जांच नहीं कराने, स्वेच्छाचारिता करने वाले जिलाधिकारियों को चिन्हित कर उनके खिलाफ कठोर अनुशासनात्मक/दंडात्मक कार्यवाही कर ग्रामीणों को न्याय दिलाई जाए।

5. छत्तीसगढ़ में कार्यरत सभी पत्रकारों और समाचार पत्र कर्मचारियों को राज्य सरकार माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के परिपालन में मजीठिया वेज बोर्ड अनुरूप वेतन दिलाना सुनिश्चित करें। चुनावी घोषणा पत्र में शामिल पत्रकार सुरक्षा कानून को अविलम्ब लागू करें।


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