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'नंदावत हे छत्तीसगढ़ी नाचा': कलाकारों को नहीं मिल रहा है काम, सरकार से मदद की दरकार

छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोक विधा नाचा धीरे -धीरे विलुप्त होती जा रही है।कोविड -19 के कारण से लॉकडाउन हुआ और  कार्यक्रम आयोजन में प्रतिबंध से  कलाकारों की आर्थिक स्थिति बदतर हो गई है। ग्राम निषदा निवासी 65 वर्षीय पुराणिक साहू, ग्राम रीवा निवासी 60 वर्षीय परमा साहू व चरौदा के कलाकार पन्ना साहू, कुलेश्वर मानिकपुरी, शिवराज धीवर आदि नाचा कलाकारों ने एक खास साक्षात्कार में बताया कि 50 साल पहले नाचा के कलाकार  विभिन्न अवसरों पर खड़े होकर वाद्य यंत्रों को कमर में बांधकर नाचा का प्रदर्शन करते थे। जिसे खड़ा साज कहा जाता था। जिसमें तुलसी, मीरा ,सूरदास, कबीरदास, श्रवण कुमार के धार्मिक भजनों को गीत के रूप में प्रस्तुत किया जाता था।

वहीं कुछ व्यक्ति मशाल जलाकर  कलाकारों के सामने ले जाकर दिखाया करते थे। जिसे स्थानीय भाषा में मशालची कहा जाता था। उस समय हारमोनियम के स्थान पर चिकारा बजाया जाता था।तब गांवों में नाचा मनोरंजन का एकमात्र माध्यम हुआ करता था। और बहुत प्रचलित भी था। समय के साथ धीरे-धीरे इसका स्वरूप  बदलता गया। किसी गांवों में नाचा का आयोजन होने से बीस-पच्चीस किलोमीटर दूर से लोग पहुंचकर रात भर नाचा का आनंद लेते थे। कुछ लोग नाचा देखने के नाम से ही मेला मड़ई पहुंचते थे।  

नाचा गम्मत में बिताया 45 साल 

वर्तमान में यह विधा विलुप्ति के कगार पर है। अंचल के गिने-चुने गांवों में ही नाचा कलाकार व नाच पार्टी है। आरंग के आसपास के चरौदा,बनचरौदा कुम्हारी,भोथी गांव में ही नाचा पार्टी अस्तित्व में है। वही अंचल के कुछ कलाकार अन्य जिले के टीम में सम्मिलित होते हैं। ग्राम रीवा निवासी  नाचा कलाकार परमा साहू ने बताया वह 45 वर्षों से नाचा में कलाकारी कर रहे हैं।वर्तमान में नाचा में 13/14 कलाकार होते हैं। जिसमें सात-आठ कलाकार वाद्य  बजाते हैं तथा शेष अभिनय पक्ष में अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं।

कुछ वाद्य पक्ष के कलाकार सहयोगी कलाकार के रुप में भी भाग लेते हैं। सबसे पहले वाद्य पक्ष के कलाकार गीत संगीत के माध्यम से भगवान गणेश, माता सरस्वती की स्तुति करते हैं।तभी कुछ कलाकारों द्वारा छत्तीसगढ़ महतारी व गुरुओ की स्तुति की जाती है। पश्चात नर्तकियों के द्वारा नृत्य संगीत से शमा बांधने का प्रयास किया जाता है।फिर नचकारो द्वारा हास्य संवादों व प्रहसनो के माध्यम से मनोरंजन कराया जाता है। इसके पश्चात् नजरिया छत्तीसगढ़ी भाषा में संदेश व शिक्षाप्रद गीत गाते मंच में आती है। फिर शिक्षाप्रद हास्यपरक प्रहसन चलता है। जिसे स्थानीय भाषा में गम्मत कहा जाता है। रातभर चलने वाले नाचा में दो से तीन गम्मत होता है।अंत में सभी कलाकारों द्वारा विदाई के रुप में गीत प्रस्तुत कर नाचा का समापन किया जाता है।

 लोकविधा व छत्तीसगढ़ी संस्कृति के संरक्षण में लगे शिक्षक महेन्द्र पटेल का कहना है कि पहले लोग विभिन्न अवसरों पर नाचा कराते थे। किंतु वर्तमान में मेला मड़ई या छठ्ठी के अवसर पर ही नाचा कराते है। जिससे कलाकारों को गिने चुने कार्यक्रम ही मिल पाता है। वर्तमान में इन कलाकारों को पंद्रह से बीस पच्चीस हजार रुपये तक रातभर नाचा करने का दाम  मिलता है। जिसमें चार पांच हजार आने-जाने में खर्च हो जाता है। जिसे मैनेजर सभी कलाकारों को वितरण करते है।

मेला मड़ाई सीजन में ही बीस पच्चीस हजार बाकी समय पंद्रह सोलह हजार में ही लगना पड़ता  है। कार्यक्रम लगातार भी नहीं मिलता। आज बढ़ते आधुनिक संचार साधन ,इंटरनेट, यूट्यूब, टेलीविजन तथा अनेक चैनलों में तरह-तरह के कार्यक्रम के प्रसारण के कारण अब बहुत कम लोग ही नाचा देखना पसंद करते हैं। फिर भी ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी नाचा को उत्साह व चाव से लोग  देखते हैं।

कलाकार अस्वस्थ चल रहे

वहीं कलाकारों का कहना है विगत दो साल से लॉकडाउन के कारण सांस्कृतिक आयोजनों में प्रतिबंध से नाचा के कलाकारों की आर्थिक स्थिति दयनीय हो गई है। वहीं कुछ कलाकार काफी बुजुर्ग हो चुके हैं जिन्हें शासन से किसी प्रकार कोई सहयोग नहीं मिलने से परेशानियों से जुझ रहे हैं।तो कुछ कलाकार काफी अस्वस्थ चल रहे हैं।वहीं शासन से पेंशन की दरकार है। वही नाचा के कलाकारों ने शासन से पेंशन देने की मांग किए हैं जिससे उनका गुजारा चल सके।

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