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बर्फीले तूफान की चपेट में आने से 7 जवानों की गई जान, रविवार से थे लापता, PM मोदी ने जताया दुख

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देश में प्राकृतिक आपदाओं का सिलसिला लगातार जारी है। इस बार अरुणाचल प्रदेश के कामेंग सेक्टर में ऊंचाई पर स्थित इलाके में हिमस्खलन की चपेट में आने से 7 भारतीय जवानों की मौत हो गई है। भारतीय सेना ने इस बात की पुष्टि की है। सेना ने बताया कि सातों जवानों के शव हिमस्खलन स्थल से निकाल लिए गए हैं। दरअसल, 6 फरवरी को कामेंग सेक्टर में ऊंचाई पर स्थित इलाके में हिमस्खलन होने से भारतीय सेना के 7 जवानों के फंसने की खबर थी। बाद में उनकी तलाश के लिए सर्च ऑपरेशन भी चलाया गया था। 

अधिकारियों ने सोमवार को कहा था कि फंसे हुए लोगों का पता लगाने के लिए तलाश और बचाव काम जारी है। उन्होंने कहा था कि सैन्यकर्मी एक गश्ती दल में शामिल थे और वे रविवार को आए हिमस्खलन में फंस गए। राहत काम में सहायता के लिए विशेषज्ञों के दल को हवाई मार्ग से पहुंचाया गया था।  हालांकि दो दिन के ऑपरेशन के बाद भी किसी भी जवान को बचाया नहीं जा सका। उन्होंने कहा था कि 'इलाके में बीते कुछ दिन से मौसम खराब है और भारी बर्फबारी हो रही है।' जानकारी के मुताबिक क्षेत्र में पिछले कई दिनों से बर्फबारी की सूचना मिल रही है। 

PM नरेंद्र मोदी ने जताया दुख

हादसे को लेकर PM नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर दुख जताया है। उन्होंने कहा कि 'अरुणाचल प्रदेश में हिमस्खलन के कारण भारतीय सेना के जवानों की जान जाने से दुखी हूं। हम अपने देश के लिए उनकी अनुकरणीय सेवा को कभी नहीं भूलेंगे। शोक संतप्त परिवारों के प्रति संवेदना।'

रविवार को अरुणाचल प्रदेश में ईटानगर के समीप डरिया पहाड़ पर 34 साल बाद और पश्चिम कामेंग जिले के रूपा शहर में 2 दशक बाद बर्फबारी हुई। आधिकारिक ने बताया कि इस सीमावर्ती राज्य में तवांग (10200फुट), बोमडिला (7,923 फुट) , मेचकुमला (6200 फुट), जीरो (5,5538 फुट) जैसे ऊंचे स्थानों और ईटानगर के पास डरिया पहाड़ पर, पश्चिम कामेंग जिले के रूपा शहर में और डिबांग घाटी के अनीनी में शनिवार को भारी बर्फबारी हुई।

अधिकारियों ने कहा कि तवांग और बोमडिला में हर साल हिमपात होता है, लेकिन डरिया पहाड़ पर 34 साल के बाद बर्फबारी हुई। पिछली बार 1988 में हिमपात हुआ था। अधिकारियों ने बताया कि रूपा शहर में 20 साल बाद, डिरांग शहर में 15 साल के बाद जबकि दिबांग घाटी के अनीनी में पांच साल बाद बर्फबारी हुई। हिमाचल प्रदेश में भी भारी बर्फबारी के चलते हालात और बिगड़ गए हैं। हाल ही में मनाली-लेह हाईवे पर हिमस्खलन होने की खबर आई है। इसके बाद छुट्टियां मनाने गए पर्यटकों को खास तौर पर सतर्क रहने की सलाह दी गई। 

राज्य के चार राष्ट्रीय राजमार्ग सहित 731 से ज्यादा सड़कें बंद हो गई हैं। सड़कों पर पड़ी बर्फ से जहां-तहां गाड़ियां फंस गई हैं। हिमाचल और उत्तराखंड में भी बर्फबारी के चलते सड़कें बंद होने की सूचना मिल रही है। बिजली-पानी की आपूर्ति भी ठप हो गई है। इससे आम जनजीवन पर खासा असर पड़ा है।

हिमस्खलन से लगातार हो रहे हादसे

भारतीय सेना के मुताबिक  हिमस्खलन के चलते पहले भी कई घटनाएं हो चुकी है। मई 2020 में सिक्किम में हिमस्खलन की चपेट में आने से सेना के दो जवान शहीद हो गए थे। इसके अलावा अक्टूबर 2021 में उत्तराखंड में माउंट त्रिशूल पर एक हिमस्खलन में नौसेना के 5 जवानों की मौत हो गई थी। वहीं केंद्र ने भी संसद में कई बार इस बारे में जानकारी दी है। फरवरी 2020 में केंद्र ने संसद में बताया कि 2019 में सियाचिन ग्लेशियर में हिमस्खलन के कारण सेना के 6 जवानों की मौत हो गई थी। जबकि अन्य जगहों पर इसी तरह की घटनाओं में 11 अन्य मारे गए थे।

जानिए किसे कहते हैं हिमस्खलन

हिमखंड के पर्वतीय ढाल के सहारे नीचे सरकने की घटना को हिमस्खलन कहते हैं। हिमस्खलन किसी ढलान वाली सतह पर तेजी से हिम के बड़ी मात्रा में होने वाले बहाव को कहते हैं। ये घटना भूस्खलन के सामान ही होती है, लेकिन इसमें मिट्टी और शैल के मुकाबले हिमखंड सरककर नीचे आ जाते हैं। ऊंचे पर्वतीय ढलानों के सहारे जैसे ही हिमखंड नीचे आते हैं तो इनकी रफ्तार अप्रत्याशित रूप से बढ़ जाती हैं, जिस कारण छोटे से छोटे हिमस्खलन होने पर भी भारी क्षति होती है। 

इस तरह की घटना ऊंचे पर्वतीय और उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों में घटित होती है। ये आमतौर पर किसी ऊंचे क्षेत्र में उपस्थित हिमपुंज में अचानक अस्थिरता पैदा होने से शुरू होते हैं। शुरु होने के बाद ढलान पर नीचे जाता हुआ हिम गति पकड़ने लगता है और इसमें बर्फ की और भी मात्रा शामिल होने लगती है। हिमपुंज में शुरु की अस्थिरता होने के कई कारण हो सकते हैं। 

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