उल्बा गांव ग्राउंड जीरो से आनंदराम साहू की खास रिपोर्ट
"छत्तीसगढ़ में सरकार जितना संवेदनशील है। अफसर उतने ही ज्यादा संवेदनहीन। अब तो गरीबों की आंसू से भी इन्हें कोई सरोकार नहीं रहा।" यह हम नहीं उल्बा गांव के लोग कह रहे हैं। बेटी की मौत के सदमें ने पूरा गांव को रुलाया है। लेकिन, अफसोस कि अब तक कोई अफसर गांव तक झांकने भी नहीं आया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की संवेदनशील कार्यवाही कागजी औपचारिकता की भेंट चढ़ कर रह गई है। छात्रावास अधीक्षक के सिर पर लापरवाही का ठीकरा जितनी जल्दी फूटा। पीड़ित परिवार को राहत राशि देने में उतनी ही ज्यादा लापरवाही बरती जा रही है। मुख्यमंत्री ने 26 जनवरी की देर शाम स्पष्ट निर्देश दिया था कि पीड़ित परिवार को 5 लाख रुपये तत्काल दिया जाए। जन सामान्य के जुबां पर एक ही सवाल है-तत्काल का मतलब क्या होता? तीन दिन तो बीत चुके। राहत राशि देना तो दूर, संवेदनहीन प्रशानिक अफसर पीड़ित परिवार से मिलने भी गांव नहीं आए।
देवकी दीवान |
बेटी का करो सम्मान , जिन्होंने तिरंगे के खातिर दे दी जान
गरीब आदिवासी परिवार की बेटी ने तिरंगा के आन-बान-शान के लिए अपनी जान तक कुर्बान कर दी। तिरंगा झुकने नहीं दी, तिरंगा झंडा ऊंचा रखा। तिरंगा को झुकने नहीं दिया। जमीन पर गिरने नहीं दिया। उस बेटी की शहादत को नमन करें, यह सभी की नैतिक जिम्मेदारी है। बेटी की स्मृति को चिर स्थायी बनाए रखने के लिए छात्रावास में प्रतिमा स्थापित करने की मांग भी लोग कर रहे हैं।
किरण दीवान |
गणतंत्र दिवस की वह मनहूस शाम, जब दो बेटियां पटेवा के छात्रावास में फहराए गए तिरंगा झंडा को उतार रही थीं। देशभक्ति के जज्बे के साथ किरण और काजल ने राष्ट्र गान 'जन-गण-मन' गाया। झंडे को सलामी दी। और लोहे के खम्बे सहित झंडा को उतारने लगीं। काजल बताती हैं कि झंडा नीचे गिरने लगा। तब किरण ने उसे नीचे गिरने से बचाने जी-जान लगा दी। खम्बे को जमकर जकड़ लिया। इसी समय वह दुर्भाग्यपूर्ण घटना घट गई। खम्बा हाईटेंशन विद्युत तार के संपर्क में आ गया। और बेटी किरण, ढलती सूरज के साथ ही सबको अलविदा कह गई। |
गरीब परिवार की प्रतिभा संपन्न बेटी थी किरण
जीतू दीवान |