प्रो. घनाराम साहू
आज सद्गुरु घासीदास बाबा की जयंती है। उन्हें नमन करते हुए पुण्य स्मरण करता हूँ । वे संत कबीर और महात्मा गांधी के बाद छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक पूज्य महापुरुष हैं। सतनाम पंथ के अध्येता बताते हैं कि गुरु घासीदास के पूर्वज नरनौल ( हरियाणा) के थे। मुग़ल बादशाह औरंगजेब से युद्ध में पराजित होने के उपरांत पलायन कर उनके पूर्वज 5 लोग छत्तीसगढ़ आये थे। उत्तर भारत में सतनाम पंथ के अधिकांश गुरु और अनुयायी क्षत्रिय हैं। गुरु घासीदास जी के धरा अवतरण (जन्म) उपरांत उनकी माता को दूध नहीं उतरा था। तब उन्हें अन्य माताओं ने दूध पिलाने का प्रयास किया। जिसे अबोध बालक अवस्था में भी उन्होंने स्वीकार नहीं किया।
प्रो. घनाराम साहू |
उन्होंने गाय का दूध भी ग्रहण नहीं किया। इस तरह प्राकृतिक रूप से स्वाभिमान का गुण उन्हें मिला था। अंततः करुणा साहू नामक माता के हाथों से बकरी का दूध ग्रहण किया। "तपश्चर्या एवं आत्मचिंतन : गुरु घासीदास" के लेखक डॉ बलदेव, जय प्रकाश मानस, रामशरण टंडन ने अपनी किताब में इस प्रसंग का उल्लेख किया है। माता करुणा साहू का पुत्र बंशी साहू गुरु घासीदास के बाल सखा हुए हैं। यह भी उल्लेखित है।
कबीर दास और गुरू घासीदास के दर्शन में है समानता
गुरु घासीदास बचपन से एकाकी स्वभाव के आध्यात्मिक चिंतक थे। उन्हें वनस्पति और औषधियों की अच्छी परख थी। उन्होंने आध्यात्मिक साधना उपरांत छत्तीसगढ़ी में जो उपदेश दिया, वह मूलतः संत कबीर का दर्शन है । बाबा कबीर दर्शन से प्रभावित हुए हैं। उन्होंने सांसारिक आडंबर और मूर्ति पूजा को पाखंड बताया। गुरु घासीदास और संत कबीर की वाणियों में साम्यता है ।
दो बातों पर दिया ज्यादा जोर
गुरु घासीदास ने संत कबीर से इतर इन दो बातों पर अधिक जोर दिया है। पहला पराई स्त्री को माता-बहन मानो। पर स्त्रीगमन सबसे बड़ा पाप है। दूसरा गाय को नागर (हल) नहीं जोतना है और किसी भी गौ वंश को दोपहर बाद नागर नहीं जोतना है ।
हजारों लोगों ने गुरु घासीदास से सतनाम पंथ की दीक्षा ली
उपलब्ध तथ्यों के अनुसार गुरु घासीदास गिरौद के गोपाल मरार के घर सौंजिया लगते थे। गोपाल मरार को कुष्ठ रोग था, जिसे गुरु घासीदास ने औषधि और सतनाम मंत्र जाप से उपचार किया था। स्वस्थ होने पर गोपाल मरार ने अपनी कृषि भूमि गुरु घासीदास को समर्पित कर दिया था। उनकी इस विधा को लोक में बहुत प्रसिद्धि मिली। जिससे भंडार के मालगुजार झुमुक लोहार उनके शरण में आया। झुमुक लोहार को भी कुष्ठ रोग था, जिसका उपचार कर उन्होंने रोग मुक्त कर दिया। झुमुक लोहार ने भी अपनी भूमि गुरु घासीदास को समर्पित कर दिया। इस प्रकार गुरु घासीदास को 12 से अधिक गांव के मालगुजारों ने भूमि समर्पित किया था। जिसे उन्होंने परोपकार में लगाया। अल्पकाल में हजारों लोग गुरु घासीदास से सतनाम मंत्र की दीक्षा लिए थे।
74 से अधिक जाति के लोगों ने ली थी सतनाम पंथ की दीक्षा
सतनाम पंथ के शोधार्थियों के अनुसार 74 से अधिक जातियों के लोगों ने सतनाम पंथ की दीक्षा लिया और वे सतनामी कहलाये। जिसमें ब्राह्मण से लेकर ढेढ़-चमार जाति तक (सभी जाति) के लोग शामिल थे। सतनाम पंथ में जाति भेद नही होने का सर्वाधिक प्रभाव कबीर पंथियों पर पड़ा था। गुरु घासीदास धृतलहरे गोत्र के थे और जो अन्य जाति के लोग उनसे सतनाम पंथ की दीक्षा लिए थे। दीक्षार्थियों के पूर्व की जाति के मूल गोत्र को यथावत रखा गया । यह भी दावा किया जाता है कि सतनाम पंथ को स्वीकारने वालों में बड़ी संख्या साहूओं की भी थी और वर्तमान सतनामियों में गुरूपंच, गुरूपंचांग, सोनवानी, किरण, मंडल इत्यादि गोत्र नामधारी मूलतः साहू ही हैं। यह जानकारी मुझे एक विद्वान मित्र स्व भीषण गुरूपंच से मिली थी, जो बलौदाबाजार जिला के पलारी से जिला पंचायत सदस्य थे ।
तेलासी गांव बसाने का है अपना अलग इतिहास
गुरु घासीदास जी के दो पुत्र हुए अमरदास और बालक दास। अमरदास संत स्वभाव के थे लेकिन बालक दास राजसी प्रवृति के थे। बालकदास ने 200 से अधिक गांवों में अपने समर्थकों का अखाड़ा लगाया और सैंकड़ों गांवों में रावटी ( गुरु दरबार ) लगाए थे। उसी दौरान बालकदास की हत्या हो गई थी। अमरदास ने पलारी के निकट तेलासी गांव को अपना मुख्यालय बनाया और वहीं रहकर योग-साधना में लीन रहते हुए सतनाम पंथ का प्रचार किया। इसी गांव में मेरे मित्र यशवंत सतनामी लोक कलाकार हैं। उनका कहना है कि उनके पूर्वज धमतरी क्षेत्र से इस गांव में आये थे। जो साहू समाज के सोनवर्षा गोत्र के थे। उनके पूर्वजों के 4 परिवार जब वहां आये थे, तब पूरा भूमि भाठा (बंजर) था। जिसमें तिल-अरसी बोया जाता था। उनके पूर्वजों ने अंग्रेजों से मालगुजारी लेकर इस गांव को बसाया था। खेती के लिए अधिक लोगों की आवश्यकता थी इसलिए उनके पूर्वजों ने पौनी-पसारी जातियों सहित 80 से अधिक परिवार यहां बसाए। तिल-अरसी की खेती के कारण गांव का भी प्रारम्भ में नाम तिल-अरसी था। जो कालांतर में अपभ्रंश होकर 'तेलासी' हो गया।
छत्तीसगढ़ की प्रथम महिला सांसद 'मिनीमाता' से रिश्ता
यशवंत सतनामी के अनुसार उनके पूर्वज कबिरहा थे और गुरु अमरदास के साथ सत्संग किया करते थे। वे जात-पांत को न मानकर स्थानीय स्तर पर सभी जाति के लोगों से वैवाहिक संबंध जोड़ लिए थे। सन 1931 की जातिगत जनगणना में अपना पंथ सतनामी लिखवाए। तभी से सभी 80 घर के लोग सतनामी कहलाने लगे हैं। इस गांव के कुछ यादव परिवार के लोगों ने सतनामी नहीं लिखवाए थे, इसलिए वे सतनामी होकर भी अनुसूचित जाति की सुविधा से वंचित हो गए हैं ।
देवी से वंश चलाने विवाह प्रस्तावित
गुरु घासीदास के वंश में गुरु अगमदास हुए, जिनकी प्रथम पत्नी का नाम करुणा माता था । इस दंपत्ति का कोई संतान नहीं था। गुरु अगमदास धर्म प्रचार के लिए असम गए हुए थे। वहां उनकी भेंट देवमती के परिवार सेहुई और गुरु अगमदास ने देवमती की पुत्री मीनाक्षी देवी से वंश चलाने विवाह प्रस्तावित किया। गुरु अगमदास के प्रस्ताव को देवमती के परिवार ने स्वीकार कर मीनाक्षी देवी का विवाह करा दिया। वही मीनाक्षी देवी कालांतर में "मिनीमाता" के नाम से प्रसिद्ध हुई और छत्तीसगढ़ से प्रथम महिला सांसद होने का गौरव भी उन्हें प्राप्त है।
रायपुर के पूर्व सांसद स्व केयूर भूषण जी, जो मिनीमाता के निजी सहायक होते थे। उन्होंने छत्तीसगढ़ के नारी रत्न पुस्तक में लिखा है कि देवमती की माता-पिता का हैजा से देहांत हो जाने से बाल्यकाल में वह अनाथ हो गई थी। तब असम के चाय बागान के ढोलगांव के अस्पताल के साहुन मौसी नामक नर्स ने उसका पालन-पोषण किया। अर्थात उस नर्स का परिवार साहू था। इसलिए मीनाक्षी देवी भी साहू ही थी। इस संबंध में स्व केयूर भूषण जी से मैंने अधिक जानकारी लेने का प्रयास भी किया था। किंतु वे अधिक उम्र अवस्था की वजह से अधिक स्मरण नहीं कर पाए थे।
सतनाम पंथ के अध्येताओं ने किया रहस्योद्घाटन
सतनाम पंथ के अध्येयताओं के अनुसार इनकी आध्यात्मिक साधना पद्धति सहजयान की है। लेकिन जो मैदानी साक्ष्य मिलते हैं, उसके अनुसार मेरा मत है कि सहजयान के साथ वज्रयान भी शामिल था। तभी तत्कालीन समाज में प्रतिक्रिया हुई थी । फिलहाल मैं अंतिम निष्कर्ष में नहीं पहुंचा हूं। सतनाम पंथ में साहू समाज के संबंधों को रेखांकित करने वाली कुछ जानकारियां एक बुजुर्ग सामाजिक नेता से मिली थी और उसके आधार पर मैंने और ज्यादा छानबीन किया। स्वतंत्र भारत के शुरुआती दौर में साहू समाज अल्प शिक्षित था, तब बड़ी संख्या में " रखौद साहू " होते थे लेकिन शिक्षा के प्रसार के साथ अब इस बिरादरी का विलोप हो गया है। फिर भी महासमुन्द जिला के फुलझर अंचल में अनेक परिवार हैं, जो रखौत साहू कहलाते हैं। ये साहू समाज के मुख्य संगठन से अभी भी दूरी बनाए हुए हैं। इन रखौत परिवारों के छानबीन से नए तथ्य अवश्य निकलेंगे।
सर्वाधिक संगठित हैं सतनामी समाज
छत्तीसगढ़ में सतनामी समाज सर्वाधिक संगठित है और जिस किसी गांव में 15 घर के भी सतनामी हैं, वहां उनका जैतखाम और सतनाम भवन अवश्य मिलता है। वे अपने महापुरुष को सर्वसमाज में स्थापित करने में सफल हुए हैं। साहू समाज में कर्मा जयंती का आयोजन 1974 से प्रारम्भ हुआ था जबकि गुरु घासीदास जयंती का प्रचार 1982 से ही अधिक हुआ है । वर्तमान में साहू समाज की युवा पीढ़ी में मानसिक दासता से मुक्ति की छटपटाहट अवश्य दिखने लगी है। जो सुखद भविष्य की आशा की किरण है।
(नोट:- इस आलेख में उल्लेखित तथ्य और इतिहास का संकलन लेखक ने विभिन्न स्रोतों/पुस्तकों से किया। इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है। किसी अंश/इतिहास पर दावा-आपत्ति हो तो हमें अवगत करा सकते हैं। उसे ससम्मान स्थान प्रदान करने का प्रयास करेंगे। -संपादक)