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देश पर मंडरा रहा अंधेरे का साया, जानिए क्या है वजह

देश पर अंधेरे का साया मतलब बिजली संकट (Electricity Crisis) का खतरा मंडरा रहा है। दरअसल, भारत के 72 पावर प्लांटों में सिर्फ तीन दिनों का ही कोयला बचा है। ऊर्जा मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि अगर वक्त पर कोयले की आपूर्ति नहीं हुई तो देश के कई पावर प्लांट ठप हो सकते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी कोल इंडिया का कोयला उत्पादन सितंबर में मामूली रूप से बढ़कर 4.7 करोड़ टन रहा। कोल इंडिया के उत्पादन में ऐसे समय बढ़ोतरी हुई है जब देश के तापीय बिजलीघर कोयले की कमी से जूझ रहे हैं।


ऊर्जा मंत्रालय के मुताबिक 135 पावर प्लांट में से 72 प्लांट में 3 या 3 दिन से कम का 50 प्लांट में 4 से 10 दिन का और 13 प्लांट में सिर्फ 10 से ज्यादा दिन का स्टॉक बचा है। बीते दो महीने में भारी बारिश की वजह से घरेलू कोयला उत्पादन प्रभावित रहा मानसून की शुरुआत से पहले भी स्टॉक इस साल से देर से शुरू हुआ। महाराष्ट्र, राजस्थान, यूपी, तमिलनाडु, एमपी ने कोयला कंपनियों के बकाए का भुगतान भी नहीं हुआ, जिस वजह से बिजली कंपनियों पर आर्थिक संकट आ गया। 

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयले की कीमत 

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयले की कीमत बढ़ने से भी आपूर्ति पर असर पड़ा है। देश में कोरोना काल की वजह से बिजली की खपत में भी एकाएक काफी बढ़ोतरी हुई। इसके अलावा देश में आए इस बिजली संकट के लिए चीन भी जिम्मेदार है, जिसने अपने यहां बिजली संकट को देखते हुए भारत का 20 लाख टन से ज्यादा कोयला अपने बंदरगाहों पर रख लिया है। जो ऑस्ट्रेलिया से वाया चीन-भारत आ रहा था।

आंकड़ों पर डाले एक नजर

जानकारी के मुताबिक कोल इंडिया लिमिटेड का सितंबर 2020 में कोयला उत्पादन 4.5 करोड़ टन था। चालू वित्त वर्ष में अप्रैल-सितंबर के दौरान कोल इंडिया का उत्पादन 5.8 प्रतिशत बढ़कर 24.98 करोड़ टन पर पहुंच गया, जो इससे पिछले वित्तीय वर्ष की समान अवधि में 23.6 करोड़ टन था। बता दें कि घरेलू कोयला उत्पादन में कोल इंडिया का हिस्सा करीब 80%  है। बता दें कि चालू वित्तीय वर्ष के पहले पांच माह अप्रैल-अगस्त में बिजली संयंत्रों को कोल इंडिया की आपूर्ति 27.2 प्रतिशत बढ़कर 20.59 करोड़ टन पर पहुंच गई। इससे पिछले वित्तीय वर्ष की समान अवधि में यह आंकड़ा 16.18 करोड़ टन रहा था।

बिजली की खपत से बढ़ी समस्या 

अधिकारी के अनुसार अगस्त-सितंबर की अवधि के लिए बिजली की खपत 2019 में प्रति माह 106.6 बीयू से बढ़कर 2021 में 124.2 बीयू प्रति माह हो गई है। इस अवधि के दौरान, कोयले की हिस्सेदारी- आधारित उत्पादन भी 2019 में 61.91 प्रतिशत से बढ़कर 2021 में 66.35 प्रतिशत हो गया, जिसकी वजह से अगस्त-सितंबर, 2021 में कुल कोयले की खपत 2019 में इसी अवधि की तुलना में 18 प्रतिशत बढ़ी है। इंडोनेशियाई कोयले की  कीमत मार्च में 60 डॉलर-टन से बढ़कर सितंबर-अक्टूबर में 200 डॉलर हो गई। बढ़ती कीमतों के कारण 2019-20 की तुलना में आयात में कमी आई। अधिकारी ने कहा कि आयात में कमी की भरपाई बिजली उत्पादन के लिए घरेलू कोयले से की जाती है, जिससे घरेलू कोयले की मांग और बढ़ जाती है। बाकी 50 संयंत्रों में से भी चार के पास सिर्फ 10 दिन और 13 के पास 10 दिन से कुछ अधिक की खपत लायक ही कोयला बचा है।

भंडार में कमी भी कारण

वहीं अप्रैल-जून में मानसून के दौरान आपूर्ति की कमी और अप्रैल-जून में कम स्टॉक के निर्माण के साथ कोयला आधारित बिजली में अभूतपूर्व वृद्धि के कारण बिजली संयंत्रों में कोयले के स्टॉक में कमी आई है। 1 अगस्त  2021 को 13 दिन 23.97 मीट्रिक टन  थी और अब 1 अक्टूबर को 4 दिन  8.08 मीट्रिक टन की स्थिति है। दैनिक आधार पर निगरानी किए जाने वाले 135 बिजली प्लांट्स में से 72 के पास 3 दिनों से कम के कोयले का भंडार है। वहीं 50 प्लांट्स के पास 4 से 10 दिनों का स्टॉक है और 13 प्लांट्स में ज्यादा का स्टॉक है। ऐसे में जल्द से जल्द कोयले की आपूर्ति जरूरी है। नहीं तो देश के कई पावर प्लांट ठप (Electricity Crisis) हो सकते हैं।

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