सूरजपुर जिले की धरती प्राकृतिक सौंदर्य से सराबोर है। यहां पर्यटन के ऐसे स्थान मौजूद हैं जो दूर-दूर से पर्यटकों को यहां आने पर मजबूर करते हैं। जिले में कई ऐसे स्थल हैं जो काफी समय से पर्यटन के लिए प्रख्यात रहे हैं। जबकि सूरजपुर की गोद में कई ऐसे स्थान समाएं हुए हैं, जो प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण हैं। बीते कुछ समय से स्थानीय लोगों के माध्यम से पर्यटकों का ध्यान इस ओर भी आर्कषित हुआ है।
प्रख्यात स्थानों में कुदरगढ़ देवी धाम, सारासोर, कुमेली घाट, बांक घाट, रकसगंडा जलप्रपात तो हैं ही कुछ नए स्थान जैसे सूरजपुर विकासखंड का केनापारा, ओड़गी विकासखंड का लफरी घाट, भैयाथान विकासखंड में झनखा और प्रेमनगर विकासखंड में सरसताल ऐसी जगहें हैं जो अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए लोकप्रियता हासिल करते जा रहे हैं।
कुदरगढ़ देवी धाम
सूरजपुर तहसील के भैयाथान, ओड़गी विकासखंड मुख्यालय से लगभग 20 किमी की दूरी पर एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है मां बागेश्वरी मंदिर 'कुदरगढ़ धाम'। यहां एक प्राचीन किला भग्नावशेष रूप से अपनी प्राचीनता की कहानी अपने गर्भ में छिपाए मौन खड़ा है, यहां भग्नावशेष खंडित रूप में पड़ी देव और शक्ति की आकृतियां प्राचीन कलाशिल्प पर प्रकाश डालती है।
आदिवासियों की शक्ति उपासना की प्रमुख देवी
कुदरगढ़ की लगभग 2000 फीट की ऊंची पहाड़ी पर एक देवी मूर्ति है, जिसे कुदरगढ़ी देवी नाम से जाना जाता है। देवी मूर्ति कुदरती होने के कारण यह देवी कुदरगढ़ी के नाम से प्रसिद्ध है। आदिकाल में इस देवी को बनवासी लोग आदिशक्ति वन देवी के नाम से पूजा करते थे, लेकिन यह देवी आज सवर्णो की भी पूज्य और मान्य है। यह कुदरती देवी इस अंचल के आदिवासियों की शक्ति उपासना की प्रमुख देवी है। कुदरगढ़ी देवी को 'बागेश्वरी देवी' के नाम से भी पुकारा जाता है, ये कुदरगढ़ी देवी वाणी की देवी सरस्वती की अवतार मानी जाती है, मैहर की मां शारदा देवी की जो महत्ता प्राप्त है। वहीं महत्ता इस क्षेत्र में कुदरगढ़ी देवी की है।
सारासोर जलकुंड
भैयाथान विकाखंड के प्रतापपुर रोड पर 15 किलोमीटर की महज दूरी पर महान नदी के तट पर सारासोर नामक स्थान हैं। यहां महान नदी की निर्मल जलधारा दो पहाड़ियों को चीरते हुए बहती है और इस स्थान पर हिन्दुओं का धार्मिक स्थल भी है। सारासोर जलकुंड है, यहां महान नदी खरात और बड़का पर्वत को चीरती हुई पूर्व दिशा में प्रवाहित होती है।
पौराणिक महत्व
मान्यता है कि पूर्व काल में खरात और बड़का पर्वत दोनों आपस में जुड़े हुए थे। राम वन गमन के समय राम-लक्ष्मण और सीता माता यहां आए थे तब पर्वत के उस पार यहां ठहरे थे। पर्वत में एक गुफा है जिसे जोगी महाराज की गुफा कहा जाता है। सारासोर के पार सरा नामक राक्षस ने उत्पात मचाया था तब उनके संहार करने के लिए रामचंद्रजी के बाण के प्रहार से ये पर्वत अलग हो गए और उस पार जाकर उस सरा नामक राक्षस का संहार किया था। तब से इस स्थान का नाम सारासोर पड़ गया।
ओडगी के पास रेण नदी का संगम
सारासोर में 2 पर्वतों के बीच से अलग होकर उनका हिस्सा स्वागत द्वार के रूप में विद्यमान है। नीचे के हिस्से में नदी कुंडनुमा आकृति में काफी गहरी है इसे सीताकुंड कहा जाता है। सीताकुंड में माता सीता ने स्नान किया था और कुछ समय यहां व्यतीत कर नदी मार्ग से पहाड़ के उस पार गए थे। आगे महान नदी ग्राम ओडगी के पास रेण नदी से संगम करती है। दोनों पर्वतों की कटी हुई चट्टाने इस तरह से दिखाई देती हैं जैसे किसी ने नदी को इस दिशा में प्रवाहित करने के लिए श्रम पूर्वक पर्वत को काटा हो।
श्रद्धालुओं का सतत प्रवास
वर्तमान में नदी बीच की छोटी पहाड़ी पर मंदिर बना हुआ है। यहां कुछ साधु पर्णकुटी बना कर निवास करते हैं और वे भी मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं। इस स्थान पर श्रद्धालुओं का सतत प्रवास रहता है। इस सुरम्य स्थल पर पहुंचने के बाद यहां एक-दो दिन नदी के तीर पर ठहरने का मन करता है। यहां मंदिर समिति द्वारा निर्मित यात्री निवास भी हैं। जहां समिति की आज्ञा से रात्रि निवास किया जा सकता है।
कुमेली घाट
सूरजपुर जिले के रामानुजनगर विकासखंड के ग्राम में स्थित कुमेली घाट जलप्रपात पर्यटन के लिए जिला मुख्यालय से सबसे निकट का क्षेत्र है, मुख्यालय से महज 20 किमी की दूरी पर स्थित है प्रकति का यह सुंदर रूप प्रकट करता झरना। यहां जाते ही झरने की खल-खल करती आवाज मनमोह लेने में पर्याप्त हैं। प्रशासन ने भी पर्यटन को दृष्टिगत रखते हुए यहां झरने तक जाने के लिए सीढ़ियां और 35 फिट ऊंचा मचान भी बनाया है, जिसमें चढ़कर पर्यटक पूरे क्षेत्र का आनंद ले सकते हैं। यहां शिव जी का पुराना मंदिर भी स्थित है स्थानीय लोग मंदिर में पूजा करने और शिवरात्रि के समय जल चढ़ाने भी भीड़ होती है।
रकसगंडा जल प्रताप
ओड़गी विकासखंड में बिहारपुर गांव के निकट बलंगी नामक स्थान के समीप रिहंद नदी (रेड नदी) पर्वत श्रृंखला की ऊंचाई से गिरकर रकसगंडा जल प्रताप का निर्माण करती है। इससे वहां एक संकरे कुंड का निर्माण होता है, रकसगंडा की पहचान छत्तीसगढ़ के सबसे गहरे जलप्रपात के रूप में है। छत्तीसगढ़ के साथ ही अन्य राज्य जैसे मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश से भी सैलानी यहां प्राकृतिक सौंदर्य के नजारे बटोरने हर साल पहुंचते हैं।
केनापारा पर्यटन स्थल
जिला प्रशासन के द्वारा जिला मुख्यालय से लगे ग्राम पंचायत केनापारा में साल 1991 से एसईसीएल के बंद पड़े खुले खदान जो कि जलाशय मे तब्दील हो चुका था उसे पर्यटन स्थल बनाने की पहल की गई। आज यह क्षेत्र खूबसूरत पर्यटन स्थल बनकर उभर रहा है। इसके साथ ही जिला प्रशासन के सहयोग से यहां महिला स्वसहायता समूह इस पर्यटन स्थल में तमाम सुविधाएं देकर अपनी आय में वृद्धि कर रही हैं और अपना भविष्य संवार रही हैं।
केनापारा में बोटिंग का लुत्फ
इस पर्यटन स्थल का आनंद उठाने दूर-दूर से सैलानी आते हैं, क्योंकि यहां का नजारा किसी हिल स्टेशन से कम नहीं है। नए साल की शुरुआत में पर्यटकों की बढ़ती संख्या महिलाओं की आर्थिक स्थिति को मजबूत कर रही है. नवम्बर 2019 माह में प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जी भी केनापारा में बोटिंग का लुत्फ उठा चुके हैं। सीएम ने महिला चालकों और पर्यटन स्थल की सराहना भी की थी।
रोजगार और पर्यटन की संभावनाएं
जिला प्रशासन को केनापारा में पर्यटन के लिए सुरक्षित और आकर्षक केन्द्र बनाने के निर्देश दिए थे, जिस पर कलेक्टर और जिला प्रशासन निरंतर प्रयासरत है, नित्य नये आयामों से यहां पर्यटन और रोजगार को प्रोत्साहित किया जा रहा है। भविष्य में इस स्थल को इको एथनीक टुरिज्म हब, वाटर स्पोर्ट, आडिटोरियम, कल्चर सेण्टर, मेडिटेशन सेंटर के रूप में विकसित करने की कार्ययोजना बनाई गई हैं। जिससे क्षेत्र में रोजगार और पर्यटन की संभावनाओं को विस्तृत रूप में विकसित किया जा सके।
लग्जरी फ्लोटिंग रेस्टोरेंट स्थापित
यहां के पर्यटन की संभावनाओं को देखते हुए प्रशासन के द्वारा लग्जरी फ्लोटिंग रेस्टोरेंट स्थापित किया गया है, जिसकी जानकारी मिलने के बाद दूर-दराज के पर्यटक भी जिला के केनापारा पहुंच रहे हैं। जिला मुख्यालय से केनापारा की दूरी लगभम 18 किमी है।
झनखा घाट
भैयाथान विकाखंड मुख्यालय से महज 4 किमी दूरी पर रिहंद नदी पर स्थित झनखा नामक घाट प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ ही साथ सुरक्षित स्थान भी है, स्थानिय लोगों में यह स्थान काफी प्रिय है। यहां लोग बच्चों के साथ आना काफी पंसद करते हैं क्योंकि यह स्थान मुख्यालय से काफी समीप होने के साथ ही सुरक्षित भी है।
सरसताल की खुबसुरती
सूरजपुर जिले के प्रेमनगर विकासखंड के सरसताल गांव का खुबसुरती मानो हर साल यहां लोगो को दुगनी संख्या में आने पर मजबुर करती है, अपने खुबसूरत नाम के साथ ही यह स्थान प्राकृतिक सुन्दरता से लबालब है। सूरजपुर जिला मुख्यालय से 60 किमी की दुरी पर स्थित हसदेव नदी का यह घाट अपनी बड़ी बड़ी चट्टानों के लिए काफी लोकप्रिय है। शाम की किरणें जब यहां पानी पर पड़ती है, और आस-पास की पहाड़ी मानों सपनों की दुनिया सी लगती है। नववर्ष का आनंद लेने के लिए यह स्थान बहुत ही उत्तम है, यहां जाने पर आप जरूर कहेंगें की सूरजपुर जिले में प्रकृति के नायाब नजारें छिपे हैं।
लफरी घाट
ओडगी विकासखंड के टमकी गांव के पास रिहंद नदी का यह घाट अपनी पहाड़ियों के कारण पर्यटकों का प्रिय स्थान है, नववर्ष में लोगों की काफी भीड़ इस स्थान पर देखी जा सकती है। यहां का नजारा मानों किसी का भी मन मोह लें। नदी की धारा ढाल की ओर बहने के कारण छोटे जलप्रपात सा चित्रण करती है, जिससे यहां की खुबसुरती और भी बढ़ जाती है। अगर आप नववर्ष मनाने को कोई नया स्थान खोज रहे हैं तो सूरजपुर के ओड़गी का यह घाट सबसे अच्छी जगह है।