महासमुंद। लायंस क्लब इलाहाबाद द्वारा शिक्षक दिवस के अवसर पर आयोजित शिक्षक सम्मान समारोह में भारत भर के चुनिंदा पांच शिक्षकों का सारस्वत सम्मान किया गया, जिसमें मनोज कुमार शर्मा, सतीश कुमार सिंह, प्रीति पांडेय, वंदना शुक्ला और प्रोफेसर (डॉ.) अनसूया अग्रवाल, प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष हिंदी, हिंदी अध्ययन एवं शोध केंद्र, शासकीय महाप्रभु वल्लभाचार्य स्नातकोत्तर महाविद्यालय महासमुंद को सम्मानित किया गया।
इस भव्य आयोजन में मुख्य अतिथि डॉ अनसूया थी। कार्यक्रम की अध्यक्षता लायंस क्लब के अध्यक्ष लायन उदय चंदानी ने किया। कार्यक्रम में सर्वप्रथम अत्यंत सुमधुर आवाज में ध्वज वंदना प्रशांत मिश्रा प्रयागराज ने किया। उसके बाद आए हुए अतिथियों के लिए स्वागत उद्बोधन प्रस्तुत करते हुए लॉयन उदय चंदानी ने कहा कि शिक्षक का स्थान प्रभु से भी ऊपर है। क्योंकि कबीर के अनुसार शिक्षक ने ही ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग बताया है। इस तरह पथप्रदर्शक और परमात्मा तक पहुंचाने वाला शिक्षक ही है। इसलिए उसकी बराबरी कोई नहीं कर सकता। तत्पश्चात लायन वाद के नैतिक सिद्धांत लायन राकेश मोहन वालिया ने प्रस्तुत किया।
शिक्षकों का सम्मान है राष्ट्र का सम्मान
इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में प्रो अनसूया अग्रवाल ने कहा कि शिक्षकों का सम्मान राष्ट्र का सम्मान है। शिक्षक की गोद में में निर्माण एवं प्रलय दोनों पलते हैं। शिक्षक सभी के प्रति समभाव रखता है किंतु विद्यार्थियों के बीच से ही कोई चंद्रगुप्त बनता है कोई विवेकानंद। आज एक बार फिर चाणक्य और रामकृष्ण परमहंस जैसे गुरु की आवश्यकता है। गुरु की महिमा अनादिकाल से लेकर वर्तमान तक और आगे भी ऐसे ही बनी रहेगी। शिक्षक सभी धर्मों से ऊंचा धर्म है।
गुरु-शिष्य परंपरा भारत की संस्कृति का अहम हिस्सा
कार्यक्रम को लायंस क्लब के पूर्व मंडल अध्यक्ष मिथिलेश ने संबोधित करते हुए कहा कि 'योगस्थः कुरु कर्माणि संग त्यक्त्वा धनंजय।' अर्थात तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए तू फल की दृष्टि से कर्म मत कर और न ही ऐसा सोच कि फल की आशा के बिना कर्म क्यों करूं। कार्यक्रम में दिलीप जायसवाल, डॉ महमूद अहमद, डॉ जमीर , निधि यशार्थ, प्रमोद शर्मा, श्याम सुंदर सिंह, कैलाश गुप्ता ने भी विचार व्यक्त किए। जिसका सार था कि गुरु-शिष्य परंपरा भारत की संस्कृति का एक अहम और पवित्र हिस्सा है।
'जीने का असली सलीका सिखाते हैं शिक्षक'
जीवन में माता-पिता का स्थान कभी कोई नहीं ले सकता, क्योंकि वे ही हमें इस रंगीन खूबसूरत दुनिया में लाते हैं। कहा जाता है कि जीवन के सबसे पहले गुरु हमारे माता-पिता होते हैं। भारत में प्राचीन समय से ही गुरु और शिक्षक परंपरा चली आ रही है। लेकिन जीने का असली सलीका हमें शिक्षक ही सिखाते हैं। सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।
डॉ बालकृष्ण ने किया कार्यक्रम का संचालन
सम्मानित होने वाले शिक्षिकाओं में वंदना शुक्ला और प्रीति पांडे ने कविता पाठ कर समारोह को ऊंचाइयां प्रदान की। इस अवसर पर छत्तीसगढ़ अभनपुर जनपद से पधारी डॉ मुक्ता कौशिक ने भी कविता पाठ किया। कार्यक्रम में अनिल पांडेय, सुनील शुक्ला, शारदा सिंह, सुशीला श्रीवास्तव, दीपक श्रीवास्तव, कमल क्रांति सहित प्रयागराज के गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन लायन डॉ बालकृष्ण पांडेय ने किया।