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नहीं रहे फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह, PM से लेकर कई हस्तियों ने जताया दुख


फ्लाइंग सिख नाम से मशहूर भारत के महान धावक मिल्खा सिंह का बीती रात कोरोना के चलते निधन हो गया है। 91 वर्षीय मिल्खा सिंह को 3 जून को ऑक्सीजन लेवेल कम होने की वजह से आईसीयू में भर्ती कराया गया था, जहां गुरुवार को उनकी रिपोर्ट निगेटिव आ गई थी, लेकिन कल उनकी हालत नाजुक हो गई और उन्होंने जिंदगी का साथ छोड़ दिया। मिल्खा सिंह भारत के खेल इतिहास के सबसे सफल एथलीट थे। देश के पहले PM जवाहर लाल नेहरु से लेकर पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान तक सब मिल्खा के हुनर के मुरीद थे।





20 नवंबर 1929 को हुआ था जन्म





मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवंबर 1929 गोविंदपुरा जो अब पाकिस्तान का हिस्सा हैं में एक सिख परिवार में हुआ था। उनका बचपन बेहद कठिन दौर से गुजरा। भारत के विभाजन के बाद हुए दंगों में मिल्खा सिंह ने अपने मां-बाप और कई भाई-बहन को खो दिया। उनके अंदर दौड़ने को लेकर एक जुनून बचपन से ही था। वो अपने घर से स्कूल और स्कूल से घर की 10 किलोमीटर की दूरी दौड़ कर पूरी करते थे।





ऐसे मिला था फ्लाइंग सिख का खिताब





मिल्खा सिंह को मिले 'फ्लाइंग सिख' के खिताब की कहानी बेहद दिलचस्प है और इसका संबंध पाकिस्तान से जुड़ा हुआ है। 1960 के रोम ओलिंपिक में पदक से चूकने का मिल्खा सिंह के मन में खासा मलाल था। इसी साल उन्हें पाकिस्तान में आयोजित इंटरनेशनल एथलीट कम्पटिशन में हिस्सा लेने का न्योता मिला। मिल्खा के मन में लंबे समय से बंटवारे का दर्द था और वहां से जुड़ी यादों के चलते वो पाकिस्तान नहीं जाना चाहते थे। हालांकि बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के समझाने पर उन्होंने पाकिस्तान जाने का फैसला किया।





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पाकिस्तान में उस समय एथलेटिक्स में अब्दुल खालिक का नाम बेहद मशहूर था। उन्हें वहां का सबसे तेज धावक माना जाता था। यहां मिल्खा सिंह का मुकाबला उन्हीं से था। अब्दुल खालिक के साथ हुई इस दौड़ में हालात मिल्खा के खिलाफ थे और पूरा स्टेडियम अपने हीरो का जोश बढ़ा रहा था लेकिन मिल्खा की रफ्तार के सामने खालिक टिक नहीं पाए। रेस के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने मिल्खा सिंह को 'फ्लाइंग सिख' का नाम दिया और कहा 'आज तुम दौड़े नहीं उड़े हो। इसलिए हम तुम्हें फ्लाइंग सिख का खिताब देते हैं।' इसके बाद से ही वो इस नाम से दुनिया भर में मशहूर हो गए। खेलों में उनके अतुल्य योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें भारत के चौथे सर्वोच्च सम्मान पद्मश्री से भी सम्मानित किया है।





1951 में हुए थे सेना में भर्ती





चार बार कोशिश करने के बाद साल 1951 में मिल्खा सिंह सेना में भर्ती हुए। भर्ती के दौरान हुई क्रॉस-कंट्री रेस में वो छठे स्थान पर आये थे, इसलिए सेना ने उन्हें खेलकूद में स्पेशल ट्रेनिंग के लिए चुना था। इस दौरान सिकंदराबाद के EME सेंटर में ही उन्हें धावक के तौर पर अपने टैलेंट के बारे में पता चला और वही से उनके करियर की शुरुआत हुई। मिल्खा पर एथलीट बनने का जुनून इस कदर हावी हो गया था कि वो अभ्यास के लिए चलती ट्रेन के साथ दौड़ लगाते थे। इस दौरान कई बार उनका खून भी बह जाता था और सांस भी नहीं ली जाती थी, लेकिन फिर भी वो दिन-रात लगातार अभ्यास करते रहते थे।





200 मीटर और 400 मीटर की रेस





1956 में मेलबर्न में आयोजित हुए ओलंपिक खेलों में उन्होंने पहली बार 200 मीटर और 400 मीटर की रेस में भाग लिया। एक एथलीट के तौर पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनका ये पहला अनुभव भले ही अच्छा न रहा हो लेकिन ये टूर उनके लिए आगे चलकर बेहद फायदेमंद साबित हुआ। उस दौरान विश्व चैंपियन एथलीट चार्ल्स जेनकिंस के साथ हुई मुलाकात ने उनके लिए भविष्य में बहुत बड़ी प्रेरणा का काम किया।





400 मीटर स्पर्धा में बनाए रिकॉर्ड





मिल्खा सिंह ने साल 1958 में कटक में आयोजित नेशनल गेम्स में उन्होंने 200 मीटर और 400 मीटर स्पर्धा में रिकॉर्ड बनाए। इसके बाद उसी साल टोक्यो में आयोजित हुए एशियन गेम्स में उन्होंने 200 मीटर और 400 मीटर की दौड़ में भी गोल्ड मेडल अपने नाम किया। साल 1958 में ही इंग्लैंड के कार्डिफ में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स में मिल्खा ने एक बार फिर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते हुए 400 मीटर की रेस में गोल्ड मेडल अपने नाम किया। उस समय आजाद भारत में कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत को स्वर्ण पदक जीताने वाले वे पहले भारतीय थे।





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1958 के एशियाई खेलो में मिली सफलता के बाद मिल्खा सिंह को आर्मी में जूनियर कमीशन का पद मिला। साल 1960 में रोम में आयोजित ओलंपिक खेलों में उन्होंने 400 मीटर की रेस में शानदार प्रदर्शन किया लेकिन अंतिम पलों में वे जर्मनी के एथलीट कार्ल कूफमैन से सेकेंड के सौवें हिस्से से पिछड़ गए थे और कांस्य पदक जीतने से मामूली अंतर से चूक गए थे। इस दौरान उन्होंने इस रेस में पूर्व ओलंपिक कीर्तिमान भी तोड़ा और 400 मीटर की दौड़ 45।73 सेकेंड में पूरी कर नेशनल रिकॉर्ड भी बनाया। 400 मीटर की रेस में उनका ये रिकॉर्ड 40 साल बाद जाकर टूटा।





1964 के ओलंपिक में मिल्खा सिंह ने किया था शानदार प्रदर्शन





1960 के रोम ओलंपिक और टोक्यो में आयोजित 1964 के ओलंपिक में मिल्खा सिंह अपने शानदार प्रदर्शन के साथ दशकों तक भारत के सबसे महान ओलंपियन बने रहे। 1962 के जकार्ता एशियाई खेलों में मिल्खा सिंह ने 400 मीटर और चार गुना 400 मीटर रिले दौड़ में भी गोल्ड मेडल हासिल किया था।






https://twitter.com/narendramodi/status/1405962666565201921




पीएम मोदी ने शनिवार को कहा कि देश ने एक महान खिलाड़ी खो दिया है। मोदी ने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा 'श्री मिल्खा सिंह जी के निधन से, हमने एक महान खिलाड़ी खो दिया है। एक ऐसा खिलाड़ी, जिसने देश की कल्पना पर राज किया। उनके प्रेरक व्यक्तित्व ने खुद को लाखों लोगों को पसंद किया। उनके निधन से दुखी हैं।





PM ने जताया दुख





एक अन्य ट्वीट में PM मोदी ने कहा कि उन्होंने कुछ दिन पहले ही मिल्खा सिंह से बात की थी। पीएम मोदी ने लिखा, मुझे नहीं पता था कि यह हमारी आखिरी बातचीत होगी। कई नवोदित एथलीट उनकी जीवन यात्रा से ताकत हासिल करेंगे. उनके परिवार और दुनिया भर में कई प्रशंसकों के प्रति मेरी संवेदना।






https://twitter.com/AmitShah/status/1405966293245644800




वहीं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा 'भारत महान धावक श्री मिल्खा सिंह जी, द फ्लाइंग सिख के दुखद निधन पर शोक व्यक्त करता है। उन्होंने विश्व एथलेटिक्स पर एक अमिट छाप छोड़ी है। राष्ट्र उन्हें हमेशा भारतीय खेलों के सबसे चमकीले सितारों में से एक के रूप में याद करेगा। उनके परिवार और अनगिनत अनुयायियों के प्रति मेरी गहरी संवेदना है।






https://twitter.com/FarOutAkhtar/status/1406070061241040900




बॉलीवुड एक्टर फरहान अख्तर ने ऑन स्क्रीन मिल्खा सिंह का किरदार निभाया था। फिल्म 'भाग मिल्खा भाग' में फरहान अख्तर लीड रोल में थे। इस फिल्म को राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने डायरेक्टर किया था। फिल्म ब्लॉकबस्टर साबित हुई थी। अब मिल्खा सिंह के निधन पर बॉलीवुड एक्टर-प्रोड्यूसर फरहान अख्तर ने दुख जताया है। एक संवेदनाओं से भरा भावुक नोट लिखा है। इसके साथ उन्होंने मिल्खा सिंह के साथ वाली एक तस्वीर भी शेयर की है।





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फरहान अख्तर ने लिखा 'प्रिय मिल्खा जी, मेरा एक हिस्सा अभी भी यह मानने से इंकार कर रहा है कि आप नहीं रहे। हो सकता है कि यह वो जिद्दी पक्ष है जो मुझे आपसे विरासत में मिला है। वह पक्ष जब वह किसी चीज पर अपना मन लगाता है, तो कभी हार नहीं मानता और सच तो यह है कि आप हमेशा जीवित रहेंगे। क्योंकि आप एक बड़े दिल वाले, प्यार करने वाले, गर्मजोशी से भरे, जमीन से जुड़े इंसान से ज्यादा थे।'





मैं आपको पूरे दिल से चाहता हूं: फरहान अख्तर





फरहान अख्तर ने आगे लिखा 'आपने एक विचार का प्रतिनिधित्व किया। आपने एक सपने का प्रतिनिधित्व किया। आपने (आपके अपने शब्दों में) प्रतिनिधित्व किया कि कितनी मेहनत, ईमानदारी और दृढ़ संकल्प किसी व्यक्ति को उसके घुटनों से उठकर आसमान को छू सकता है।' फरहान अख्तर ने आगे लिखा 'आपने हम सभी के जीवन को छुआ है। जो लोग आपको एक पिता और एक दोस्त के रूप में जानते हैं, उनके लिए यह एक आशीर्वाद था। जिन लोगों ने नहीं किया, उनके लिए आपकी कहानी प्रेरणा का एक निरंतर स्रोत और सफलता में विनम्रता की याद दिलाने वाली है। मैं आपको पूरे दिल से चाहता हूं।'


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