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देवों की नगरी उत्तराखंड में नाबालिगों की गुमशुदगी बनी चुनौती, सामने आए चिंताजनक आंकड़े


देवों की नगरी उत्तराखंड में नाबालिगों की गुमशुदगी के चौंकाने और चिंताजनक आंकड़े सामने आए हैं। बीते 3 साल के आंकड़ों पर गौर करें तो स्थिति चिंताजनक है। उत्तराखंड के गढ़वाल रेंज के 7 जिलों में नाबालिगों की गुमशुदगी के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। ये आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं कि उत्तराखंड में नाबालिग सुरक्षित नहीं हैं और इसके लिए पुलिस को एक बड़े स्तर पर अभियान चलाकर नाबालिगों की बरामदगी के लिए कोशिश करने की आवश्यकता है।





3 सालों में नाबालिगों की गुमशुदगी के आंकड़े





  • साल 2019 में 74 नाबालिग गुमशुदा, पुलिस ने 57 को लौटाया घर।
  • साल 2020 में 56 नाबालिग गुमशुदा, पुलिस ने 32 को लौटाया घर।
  • साल 2021 में मई महीने तक 96 नाबालिग गुमशुदा, पुलिस ने 71 को लौटाया घर।




नाबालिगों की गुमशुदगी के आंकड़ों को देखते हुए DIG गढ़वाल नीरू गर्ग ने नाराजगी जताई है और सभी जिलों के कप्तानों को नाबालिगों की बरामदगी के लिए एक्शन मोड में आकर काम करने की हिदायत दी है। DIG ने कहा है कि ये बेहद सीरियस क्राइम हैं। इसको देखते हुए पुलिस जिला प्रभारियों को कहा गया है कि वो खुद ऐसे मामलों को देखेंगे, इसकी जिम्मेदारी सिर्फ थाना अध्यक्ष पर नहीं छोड़ी जाए।





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बता दें कि देशभर के अलग-अलग राज्यों से ऐसे कई आंकड़े सामने आए हैं, जो बहुत चिंताजनक है। वहीं कई मामलों में परिवार को कभी लापता सदस्य वापस नहीं मिलता है। लापता होने वाले ज्यादातर मामले में मानव तस्करी और हत्या के एंगल सामने आते हैं। कई मामलों में आपसी विवाद के कारण या पूरानी रंजिश के चलते नाबालिगों को अपनी जान गंवानी पड़ती है। ऐसे कई मामले सामने आए है जिसमें नाबालिगों और बच्चों को मौत के घाट उतार दिया गया है। वहीं गुमशुदगी के साथ ही देश में हत्या और अन्य अपराध भी लगातार बढ़ रहे हैं। रोजाना देश के अलग-अलग कोनों से हत्या, दुष्कर्म, अपहरण, चोरी, लूट और ऑनलाइन ठगी जैसे कई मामले सामने आ रही है।


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