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आरंग के तालाब में मिली प्राचीन पाषाण प्रतिमा, यहां भूगर्भ में दफन हैं वैभवशाली इतिहास


आरंग। नगर के सबसे बड़े व प्राचीन झलमला तालाब की सफाई की जा रही थी। इस दौरान गत दिनों एक बहुत ही प्राचीन पाषाण प्रतिमा मिली। जिसे पुरावेत्ता भैरव की खंडित प्रतिमा बता रहे हैं। इसके निर्माण काल का निर्धारण अभी नहीं हो पाया है। आरंग, छत्तीसगढ़ के प्राचीन और ऐतिहासिक नगरों में से एक है। इससे यहां के भूगर्भ में वैभवशाली इतिहास दफन होने का अनुमान पुरावेत्ता व इतिहासकार लगा रहे हैं। पुरावशेषों व खण्डहरों की खोदाई करने से यहां के ऐतिहासिक महत्व को प्रकट किया जा सकता है। लेकिन, घनी आबादी वाले इस नगर के नागरिकों की सहमति के अभाव में यह संभव नहीं हो पा रहा है।










 आरंग निवासी नवाचारी शिक्षक महेंद्र कुमार पटेल ने स्थानीय लोगों के हवाले से जानकारी दी है कि पखवाड़े भर पहले तालाब की सफाई की जा रही थी।  जेसीबी मशीन से मलबा और कीचड़ हटाया जा रहा था। तालाब से निकली मिट्टी से तालाब किनारे मेड़ को सुदृढ़ किया जा रहा था। तभी कीचड़ व मिट्टी से सना मूर्ति बाहर निकला। यह खंडित पाषाण प्रतिमा भैरव की मानी जा रही है। काले पत्थर से निर्मित प्रतिमा बहुत प्राचीन प्रतीत हो रहा है। प्रतिमा का आकार लगभग डेढ़ से दो फिट चौड़ा व धड़ का भाग लगभग एक फिट है। नीचे का भाग खंडित हो चुका है। लोग इसे अपने-अपने ढंग से देवी देवताओं का रुप मान रहे हैं।










 शिक्षक महेन्द्र ने इस प्रतिमा के बारे में इतिहास के जानकारों से जानकारी ली। उन्होंने प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व, पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर के प्रोफेसर . दिनेश नंदनी परिहारके हवाले से बताया कि  यह शैव धर्म से संबंधित भैरव की 8वी-9वी शताब्दी ई. में निर्मित  प्रतिमा प्रतीत होती है। 









पुरातत्व के शोधार्थी हेमंत वैष्णव ने प्रतिमा का विवरण प्रस्तुत करते हुए बताया कि प्रतिमा दायें हाथ में त्रिशूल व बायें हाथ में सर्प धारण किये हुए है। देवता की दोनों आंखे बड़ी व मस्तक पर तीसरा नेत्र स्पष्ट दिखाई दे रहा है एवं दाँत मुख से बाहर निकले हुए है,जिससे प्रतिमा का स्वरूप विकराल दिखाई दे रहा है। प्रतिमा के कानों में कुंडल तथा सिर पर जटाबन्ध शोभमान है। भैरव प्रतिमा के इस स्वरुप का वर्णन विष्णुधर्मोत्तर पुराण में ज्ञात होता है। यह प्रतिमा शिल्पकार के द्वारा पुराणों में वर्णित प्रतिमा लक्षणों को ध्यान में रख कर बनाया गया है। इस प्रतिमा के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व को समझते हुए इसे संरक्षित करने की आवश्यकता  महसूस की जा रही है। खंडित प्रतिमा को संरक्षित करने अभी तक किसी भी स्तर पर पहल नहीं हुई है।


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