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बीते साल के लॉकडाउन में रेल की पटरियों पर हुई 8,733 लोगों की मौत, प्रवासी मजदूरों की संख्या सबसे ज्यादा


कोरोना महामारी के कारण बीते साल यानी साल 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश में राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन लगाया था। जिसके चलते यात्री ट्रेन सेवाओं में भारी कटौती की गई थी। इसके बावजूद 2020 में 8,700 से ज्यादा लोगों की रेलवे पटरियों पर कुचले जाने से मौत हो गई थी। अधिकारियों ने कहा है कि मृतकों में से अधिकतर प्रवासी मजदूर थे।





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रेलवे बोर्ड ने 2020 में जनवरी से दिसंबर तक हुई ऐसी मौतों के आंकड़े MP के कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में साझा किए हैं। रेलवे बोर्ड ने कहा कि 'राज्य पुलिस से मिली सूचना के मुताबिक जनवरी 2020 और दिसंबर 2020 के बीच रेल पटरियों पर 805 लोग घायल हुए और 8,733 लोगों की मौत हुई।'





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अधिकारियों ने अलग से बताया कि मृतकों में अधिकतर प्रवासी मजदूर थे, जिन्होंने पटरियों के साथ-साथ चलकर घर पहुंचने का विकल्प चुना था। क्योंकि रेल मार्गों को सड़कों या राजमार्गों की तुलना में छोटा रास्ता माना जाता है। उन्होंने बताया कि इन श्रमिकों ने पटरियों से होकर गुजरने का विकल्प इसलिए भी चुना क्योंकि इससे वे लॉकडाउन नियमों के उल्लंघन के लिए पुलिस से बच सकते थे और उनका यह भी मानना था कि वे रास्ता नहीं भटकेंगे। एक अधिकारी ने कहा कि 'उन्होंने यह भी माना कि लॉकडाउन की वजह से कोई भी ट्रेन नहीं चल रही होगी।'





छोटा मार्ग अपनाने से बचने की अपील





रेलवे के प्रवक्ता DJ नारायण ने कहा कि पटरियों पर ऐसी घटनाएं हादसों की वजह से नहीं बल्कि अनधिकृत प्रवेश के चलते घटीं। उन्होंने कहा कि 'यह नागरिकों की चिंता का मुद्दा है। रेलवे ने पटरियों पर चलने से बचने के बारे में हमेशा ही लोगों को संवेदनशील बनाने का भारी प्रयास किया है। देश में करीब 70,000 किलोमीटर रेल पटरियां फैली हुईं हैं और रोजाना उन पर सभी प्रकार की 17,000 से अधिक ट्रेनें चलती हैं। रेल पटरियों पर चलने के दौरान लोगों की मौत दुर्भाग्यपूर्ण और दुखद है। यात्रियों और नागरिकों की सुरक्षा के प्रति हमारी चिंता बिल्कुल दोयम नहीं है। ' उन्होंने लोगों से पटरियों पर चलने का छोटा मार्ग अपनाने से बचने की अपील की है।





रेलवे प्रवक्ता ने दी जानकारी





नारायण ने कहा कि 'उन्हें समझना चाहिए कि छोटा मार्ग खतरनाक हो सकता है और उन्हें पटरियों पर नहीं चलना चाहिए।' बीते साल ट्रेनों द्वारा कुचले जाने से हुई मौतें उससे पहले के 4 सालों की तुलना में भले ही कम हो, लेकिन ये संख्या तब भी काफी बड़ी है क्योंकि 25 मार्च को कोरोना के मद्देनजर लॉकडाउन की घोषणा के बाद से यात्री रेलगाड़ी सेवाएं प्रतिबंधित थीं।





1,100 विशेष रेलगाड़ियों का परिचालन





लॉकडाउन के दौरान सिर्फ मालवाहक रेलगाड़ियां परिचालित की जा रही थीं और बाद में रेलवे ने प्रवासी मजदूरों को लाने-ले जाने के लिए एक मई से श्रमिक विशेष रेलगाड़ियां चलाई थीं। यात्री सेवाएं चरणबद्ध तरीके से फिर से खोली गईं और दिसंबर तक करीब 1,100 विशेष रेलगाड़ियों का परिचालन किया जाने लगा। उनमें 110 नियमित यात्री ट्रेनें थीं।





70 % रेलगाड़ी सेवाएं बहाल





कोविड से पहले की अवधि में चलने वाली 70 % रेलगाड़ी सेवाएं अब बहाल कर दी गई हैं। वैसे तो बीते साल पटरियों पर हुई कई मौतों का किसी न किसी कारण से पंजीकरण नहीं किया गया, लेकिन बीते साल मई में महाराष्ट्र के औरंगाबाद में माल गाड़ी से कुचलने से 16 मजदूरों की जान चले जाने से लोग दहशत में आ गए। दरअसल ये लोग यह सोचकर पटरी पर सो गए थे कि कोविड के चलते कोई ट्रेन नहीं आ रही होगी।


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