मौनी अमावस्या (mauni amavasya 2021) 11 फरवरी यानी गुरुवार को है। हिन्दू पंचांग के मुताबिक माघ माह की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहते हैं। वायु पुराण , देवी पुराण, ब्रह्म पुराण और व्यास ग्रंथों के मुताबिक भी यह तिथि बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। मौनी अमावस्या के दिन मौन रहकर स्नान और दान करने का विशेष महत्व होता है।
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ऐसी मान्यता है कि अगर इस अमावस्या पर मौन रहें तो इससे अच्छे स्वास्थ्य और ज्ञान की प्राप्ति होती है। ग्रह दोष दूर करने के लिए भी ये अमावस्या खास मानी गई है। विशेष तौर पर मां सरस्वती की कृपा के लिए उपयोगी माना गया है। इससे सरस्वती प्रसन्न होती हैं। नदियों में या नदी के जल से स्नान का विशेष महत्व है।
- माघ माह की अमावस्या या मोनी अमावस्या तिथि शुरू - 01:08 रात
- तिथि समाप्त - 12:35 रात 12 फरवरी
ज्योतिष की दृष्टि-
श्रवण नक्षत्र और ग्रह योग के कारण पितर पूजा और उनकी कृपा आशीर्वाद का पर्व हो गया है। तुला,मकर,कन्या,वृषभ राशि वालों को और प्रचलित नाम के प्रथम अक्षर (ई, उ,ए, ओ, वा,वी, वू,वे, टो,प,पी, पू,ष,ण,ठ,पे, पो. वो. रा, री, रू,रे, रो, ता,ती, तू, ते. भो,जा, जी, खी,खू,खे, खो, ग,गी ) वालों को भविष्य में आने वाली आपत्ति विपत्ति रोकने के लिए उपयोगी दिन जप,तर्पण,दान के सर्वाधिक फल प्राप्ति का उपयोगी दिन है।
दिन में किस समय क्या करें?
स्नान जप ध्यान हवन प्रातः 10:52 तक।
पौराणिक कथन है की इस दिन गंगा जल अमृत तुल्य हो जाता है।अगर देवी गंगा नदी में स्नान संभव न हो तो सरल उपाय है की स्नान पत्र में गंगा जल डाले और सामान्य जल
मिलकर स्नान करें। नदियों के जल में या जल से स्नान करना शुभ होता है।
स्नान के बाद पीपल वृक्ष पूजा मन्त्र-
स्पर्श कर कहे-
मूलतो ब्रह्म रूपाय मध्यतो विष्णु रूपिणे।
अग्रत: शिव रूपाय वृक्ष राजाय ते नम:।।
आयु: प्रजां धनं धान्यं समृद्धि देहि में नम:।
हाथ जोड़ कर दीपक प्रज्वलित कर कहे-
आयु: प्रजां धनं धान्यं सौभाग्यं शरणं गत:।
देहि देव महावृक्ष त्वामहं शरणं गत:।।
अश्वत्थ ह्युतझुग्वास गोविन्दस्य सदाप्रिय।
अशेषं हर मे पापं वृक्षराज नमोस्तुते।
ब्रह्मा और गायत्री का स्मरण जप ध्यान हवन सुबह 10:52 तक करने का विशेष मुहूर्त है। माघ माह की अमावस्या को मोनी अमावस्या भी कहा जाता है। इस दिन मौन व्रत धारण या मौन व्रत रहना श्रेष्ठ फलदाई माना गया है। स्नान के समय भी मौन रहना चाहिए। दिन में मौन रहने का विशेष प्रभाव माना गया है।
दान वस्तु और पात्र 10:53-2:45 बजे तक
- साधु सन्यासी ब्राह्मण को दान करना चाहिए।
- कंबल ,काले या नील वस्त्र ,दर्पण और काजल दान करना चाहिए।
- साधु सन्यासी और ब्राह्मण वर्ग को कंबल दान का भी विशेष महत्व है।
- काले तिल के लड्डू बनाकर लाल वस्त्र में बांधकर ब्राह्मण को दान करने का उल्लेख मिलता है।
- इस दिन दान का फल मेरु पर्वतके समान विशाल विराट माना गया है।
पित्र तर्पण या पितरों का स्मरण कर उन्हें जल अर्पण समय - 2:46 से 6:10 बजे तक
2:46 से 6:10 बजे तक पितरों का स्मरण उनका तर्पण या उनके निमित्त दान करने का महत्व है।
पितर प्रार्थना मंत्र :-
ॐ नमो व: पितरो रसाय नमो व: पितर:शोषाय नमो व:
पितरो जीवाय नमो व: पितर:स्वधायै नमो व: पितरो घोराय नमो व:
पितर:पितरो नमो नमो मम जलअंजलीम गृहाण पितरो वास आधत।।
तिल और जल छोड़े :-
तृप्यन्तु पितर:सर्वे पितामाता महादय:।
त्वम प्रसन्ना भव इदम ददातु तिलोदकम।।
तर्पण सरल विधि :-
दक्षिण दिशा में मुह कर ,हथेली के अंगूठे और तर्जनी के मध्य भाग से, हथेली के जल में तिल मिला कर अपने गोत्र का नाम लेकर गोत्रे अस्मत्पितामह (पितामह का नाम) शर्मा वसु रूपत् तृप्यत मिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः। इस मंत्र से पितामह को भी 3 बार जल दें।
गुरु,श्रवण एवं अमावस्या के देवताओं से प्रार्थना :-
- ग्रह गुरु के दोष शांति के लिए -
स्नान जल में मिला नदी या तीर्थ जल,-चमेली पुष्प ,सफेद के अभाव में पीली सरसों ,गूलर ,मुलेठी ,मिला कर स्नान करें।
- बाधा मुक्ति के लिए दान -
पीला अनाज ,चना, शकर, पीले पुष्प और हल्दी,केसर, पीला वस्त्र, पीला फल, पपीता और केला का दान करें।
- दान किसको दे -
गुरु,ज्ञानी पुरुष,ब्राह्मण या ज्ञान,शिक्षा कर्म करने वाले को या शिक्षण संस्था,शिक्षक,विष्णु,कृष्ण,राम मंदिर में दान करना चाहिए।
ओम गं गणपतए नमः। विष्णवे नमः। मधुसूदनाय नमः।
ब्रह्माय नम: -
कृपया शुद्ध उच्चारण करिए और पूरा बोलिए 'तत्स वितुर्वरेण्यं ' शुद्ध सही नहीं…
ऊं भूर्भुव: स्व: तत सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्।।
आपो ज्योति रसोंमृतम ,परो रजसे सावदोम।
गुरु ग्रह का गायत्री मंत्र: -
ओम अंगिरसाय विद्महे दिव्य देवताय धीमहि तन्नो जीवः प्रचोदयात।
आपो ज्योति रस अमृतम।
परो रजसे साव दोम।
पौराणिक मंत्र -ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरूवे नमः॥
जैन मंत्र : -
ॐ ह्रीं णमो आयरियाणं।
ॐ ह्रीं गुरु ग्रहारिष्ट निवारकश्री महावीर जिनेन्द्राय नम:।
सर्वशांतिं कुरु कुरु स्वाहा।
मम (अपना नाम ) दुष्ट ग्रह रोग कष्ट निवारणं सर्वशांतिं कुरू कुरू हूं फट् स्वाहा।
श्रवण मंत्र :-
ॐ विष्णोरराटमसि विष्णो श्नपत्रेस्थो विष्णो स्युरसिविष्णो
धुर्वोसि वैष्णव मसि विष्नवेत्वा।
ॐ विष्णवे नम:।
पौराणिक मंत्र :-
शांताकारं चतुर्हस्तं श्रोणा नक्षत्रवल्लभम्।
विष्णु कमलपत्राक्षं ध्यायेद् गरुड वाहन्।।
नक्षत्र देवता .मंत्र:- ॐ विष्णवे नमः।
नक्षत्र ॐ श्रवणाय नमः।
आगामी माघ अमावस्या योग :-
साल | तारीख | दिन |
2021 | 11 फरवरी | गुरूवार |
2022 | 1 फरवरी | मंगलवार |
2023 | 21 जनवरी | शनिवार |
2024 | 9 फरवरी | शुक्रवार |
2025 | 29 जनवरी | बुधवार |