भोरमदेव अभ्यारण में एक दुर्लभ प्रजाति का बार्न उल्लू पाया गया है। वन विभाग ने उल्लू को रेस्क्यू कर लिया है। पहले भी पहले भी कई बार दुर्लभ प्रजातियों के वन्य प्राणी अभ्यारण में देखे जा चुके हैं।
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इस दुर्लभ पक्षी को वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 के शेड्यूल में तीसरा स्थान दिया गया है।जिले का ज्यादातर हिस्सा वनों से घिरा हुआ है और यही वजह है कि जिले के भोरमदेव अभ्यारण समेत अन्य जंगलों में तरह-तरह के वन्य प्राणी आसानी से देखे जा सकते हैं। वहीं एक बार फिर भोरमदेव अभयारण्य के चिल्फी में सर्चिंग के दौरान दो दुर्लभ प्रजाति के बार्न उल्लू पाए गए हैं। वन विभाग की टीम द्वारा दोनों उल्लुओं को सुरक्षित स्थान पर लाया गया है। वन विभाग की टीम इन उल्लुओं की देख रेख में लग गई है।
15 साल तक होती है बार्न उल्लू की उम्र
वन मंडल अधिकारी दिलराज प्रभाकर के मुताबिक चिल्फी परिक्षेत्र के लोहाटोला परिसर में दुर्लभ प्रजाति के बार्न उल्लू देखने को मिले। इस उल्लू की आयु 4 साल होती है, लेकिन उल्लू 15 साल तक भी जीवित रह सकता है। साथ ही इस उल्लू को राज्य और देश के ग्रामीण अंचलों में पवित्र माना जाता है। लोगों की ऐसी मान्यता है कि इन उल्लुओं को घर या गांव के आसपास देखे जाने पर तरक्की, खुशहाली और उन्नति होती है।