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वट सावित्री पर्व पर मुख्यमंत्री निवास में सुहागन महिलाओं ने की वटवृक्ष की पूजा-अर्चना, कौशल्या साय ने दिया पर्यावरण संरक्षण का संदेश

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 रायपुर। आज वट सावित्री व्रत के अवसर पर मुख्यमंत्री निवास में मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की धर्मपत्नी श्रीमती कौशल्या साय की अगुवाई में दर्जन भर महिलाओं ने पूजा-अर्चना की। इस अवसर पर सुहागन महिलाओं ने बरगद के पेड़ की विधि-विधान पूर्वक पूजा-अर्चना करते हुए वटवृक्ष की परिक्रमा की और अपने-अपने पति की दीर्घायु और स्वस्थ जीवन की कामना की। पूजा के दौरान महिलाओं ने सावित्री और सत्यवान की कथा भी सुनी।


पूजा-अर्चना के बाद कौशल्या साय ने सभी सुहागन महिलाओं को अपनी शुभकामनाएं दी। उन्होंने कहा कि यह पर्व पति-पत्नी के बीच अटूट प्रेम, स्नेह और विश्वास का प्रतीक माना जाता है। यह पर्व हिंदू धर्म की महिलाओं का, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह प्रकृति पूजा का भी पर्व है।

इस पर्व में हम सब पेड़ों की पूजा, मिट्टी की पूजा भी करते हैं। इस व्रत को सुहागन स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु के लिए करती हैं। इस अवसर पर मैं देश और प्रदेश की सभी सुहागन महिलाओं को अपनी बधाई एवं शुभकामनाएं देती हूँ। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते हुए कहा कि हम सबको मिलकर पेड़ों के संरक्षण की दिशा में काम करना है।

क्यों किया जाता है वट सावित्री व्रत, जानिए क्या है इसकी महिमा और पूजा विधि, पढ़े पूरी खबर

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Vat Savitri Vrat 2024: वट सावित्री का व्रत विवाहित महिलाओं के लिए बेहद खास होता है. इस दिन सुहागिन महिलाएं अपनी पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं. साथ ही, इस दिन भगवान शिव और पार्वती की पूजा की जाती है. वट सावित्री के दिन बरगद के पेड़ की पूजा करने का रिवाज है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा क्यों की जाती है?


क्यों की जाती है बरगद के पेड़ की पूजा?
पौराणिक कथाओं के अनुसार बरगद के पेड़ के नीचे ही सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस देने के लिए अनुरोध किया था. वहीं, माना जाता है कि बरगद के पेड़ में त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास वास है. इसलिए वट सावित्री के दिन बरगद के पेड़ की पूजा का काफी महत्व माना जाता है.

कैसे करें वट सावित्री पूजा?
इस दिन सुहागिन महिलाएं बरगद के पेड़ ki परिक्रमा करती हैं और सात बार पेड़ पर सूत का धागा लपेटती हैं. इसके बाद, बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर त्‍यवान सावित्री की कथा सुनाई जाती है.

वट सावित्री के दिन क्या करें
वट सावित्री व्रत के दिन सादा खाना खाएं. खाने में लहसुन और प्याज न डालें. इसके अलावा, इस दिन दान करने से भी लाभ मिलेगा. इस दिन सुहागिन महिलाओं को श्रृंगार से जुड़ी चीज़ें दान करें.

कब है वट सावित्री व्रत?
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस बार अमावस्या तिथि की शुरुआत 5 जून को रात 7 बजकर 54 मिनट पर होगी और समापन 6 जून को शाम 6 बजकर 07 मिनट पर होगा. ऐसे में उदयातिथि के अनुसार, इस बार वट सावित्री का व्रत 6 जून को ही रखा जाएगा.

Vat Savitri 2023 : वट सावित्री व्रत और शनि देव की पूजन विधि , ज्येष्ठ अमावस्या आज

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 Vat Savitri 2023: आज (19 मई) को ज्येष्ठ अमावस्या, शनि जयंती और वट सावित्री व्रत है। इस दिन किए गए पूजा-पाठ से घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है, वैवाहिक जीवन में आपसी प्रेम बढ़ता है। ज्येष्ठ अमाव्या पर शनि पूजा करें, वट सावित्री रखें और पितरों के लिए धूप-ध्यान करें।


उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, ज्येष्ठ अमावस्या पर शनि देव का जन्म हुआ था। शनि सूर्य और छाया के पुत्र हैं। यमराज और यमुना के भाई हैं। पुराने समय में इसी तिथि पर सावित्री ने यमराज को तप से प्रसन्न किया था और अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा की थी।

शनि देव से जुड़ी खास बातें

पं. शर्मा के मुताबिक, सूर्य देव का विवाह प्रजापति दक्ष की पुत्री संज्ञा से हुआ था। इनकी तीन संतानें हुईं थी मनु, यम और यमुना। संज्ञा सूर्य का तेज सहन नहीं कर पा रही थीं। संज्ञा ने अपनी छाया को सूर्य की सेवा में लगा दिया और सूर्य के बताए बिना वहां से चली गईं। कुछ समय बाद सूर्य और छाया के पुत्र के रूप मे शनि देव का जन्म हुआ। शनि देव श्याम वर्ण, लंबे शरीर, बड़ी आंखों वाले और लंबे केश वाले हैं।

सावित्री, यमराज और सत्यवान से जुड़ा है वट सावित्री व्रत

महिलाएं वट सावित्री व्रत अपने पति के लंबे जीवन, अच्छे स्वास्थ्य और सौभाग्य की कामना से करती हैं। मान्यता है कि जो महिलाएं ये व्रत करती हैं, उनके पति की सारी समस्याएं खत्म हो जाती हैं और वैवाहिक जीवन सुखी हो जाता है। महिलाएं वट यानी बरगद के नीचे पूजा करती हैं, सावित्री और सत्यवान की कथा सुनती हैं। इस कथा के अनुसार सावित्री ने मृत्यु के देवता यमराज को प्रसन्न करके अपने पति सत्यवान के प्राण वापस ले आई थीं।

ज्येष्ठ अमावस्या पर करें पितरों के लिए धूप-ध्यान

ज्येष्ठ अमावस्या पर गंगा, यमुना, शिप्रा, नर्मदा जैसी पवित्र नदियों में स्नान करने की परंपरा है। स्नान के बाद नदी किनारे पर ही जरूरतमंद लोगों को जूते-चप्पल, कपड़े, अनाज और धन का दान करना चाहिए। अगर नदी स्नान नहीं कर पा रहे हैं तो घर पर तीर्थों का और नदियों का ध्यान करते हुए स्नान करना चाहिए। इस दिन पितरों के लिए धूप-ध्यान, श्राद्ध कर्म करना चाहिए। दोपहर में गाय के गोबर से बने कंडे जलाएं और कंडे के अंगारों पर गुड़-घी डालें, हथेली में जल लेकर अंगूठे की ओर से पितरों को अर्पित करें। पितरों का ध्यान करें।

 

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