भगवान गणेश का व्यक्तित्व जितना आकर्षक है, उतना ही गहन आध्यात्मिक रहस्यों से भरा हुआ भी है। उनके सिर पर हाथी का मस्तक और वाहन छोटा-सा चूहा है। उनकी पाँच पत्नियाँ मानी गई हैं— रिद्धि, सिद्धि, तुष्टि, पुष्टि और श्री। सभी गणों के अधिपति होने के कारण उनका नाम 'गणेश' या 'गणनायक' पड़ा। सनातन परंपरा में हर शुभ कार्य का प्रारंभ उनके स्मरण से किया जाता है।
गणेश को ‘विघ्नहर्ता’ कहा जाता है— अर्थात जो जीवन से विघ्न एवं बाधाओं का नाश करें और मार्ग को सुगम बनाएं। यही कारण है कि उन्हें देवताओं में भी अग्रपूज्य माना गया है।
वेद और पुराणों में महत्व
ऋग्वेद में उल्लेख है – “न ऋते त्वं क्रियते किंचनारे” — अर्थात्, हे गणेश, तुम्हारे बिना कोई भी कार्य प्रारंभ नहीं किया जा सकता। गणेश को वैदिक देवता और आदिदेव की उपाधि प्राप्त है। गणेश पुराण में यह वर्णित है कि स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और शिव भी उनकी आराधना करते हैं।
वाहन चूहा क्यों?
भगवान गणेश का वाहन छोटा-सा चूहा है, जो देखने में उनकी विशाल देह से विपरीत प्रतीत होता है। किंतु चूहे का स्वभाव हर वस्तु को कुतरकर उसकी गहराई तक पहुँचना है। यह गुण सूक्ष्म विवेचना और तार्किक विश्लेषण का प्रतीक है।
गणेश बुद्धि और विद्या के अधिष्ठाता हैं, और चूहा उनके इसी गुण का वाहन है।
सूंड का रहस्य
गणेश की सूंड निरंतर गतिशील रहती है, जो उनकी सजगता का संकेत है। मान्यता है कि उनकी सूंड के संचालन से दुःख और दारिद्र्य दूर होते हैं तथा अनिष्टकारी शक्तियाँ नष्ट हो जाती हैं।
दायें मुड़ी सूंड – सुख-समृद्धि और उन्नति का प्रतीक।
बाएँ मुड़ी सूंड – शत्रु पर विजय और ऐश्वर्य की प्राप्ति का प्रतीक।
लंबोदर का संदेश
गणेश जी का बड़ा उदर उन्हें लंबोदर नाम देता है। यह इस बात का प्रतीक है कि वे अच्छी-बुरी दोनों बातों को पचा जाते हैं और हर स्थिति में धैर्य एवं विवेक से निर्णय करते हैं। बड़ा पेट ज्ञान, वेद-वेदांग और कलाओं के भंडार का प्रतीक भी है।
गजकर्ण –लंबे कानों का रहस्य
गणेश के लंबे कान उन्हें गजकर्ण उपाधि देते हैं। ये कान सतत चौकन्नेपन, सबकी बातें सुनने और सही विवेक से तर्क करने का द्योतक हैं। लंबे कान भाग्यशाली होने की भी निशानी माने जाते हैं।
मोदक प्रिय क्यों?
मोदक गणेश का सर्वाधिक प्रिय भोजन है। मोदक का भीतर छिपा हुआ स्वाद आनंद और ब्रह्मशक्ति का प्रतीक है— क्योंकि जो दिखाई नहीं देता, वही सर्वोच्च सत्य है। इसकी गोल आकृति अद्वैत और महाशून्य का प्रतीक मानी गई है, जिससे सृष्टि की उत्पत्ति और लय होती है।
टूटा हुआ दांत
भगवान गणेश का एक दांत टूटा हुआ है। किंवदंती है कि परशुराम जी से युद्ध के दौरान उनका दांत टूट गया। उन्होंने उसी दांत को लेखनी बनाकर महाभारत जैसा महान ग्रंथ लिखा। यह उनका त्याग, तप और ज्ञान का प्रतीक है।
पाश और परशु
गणेश के हाथ में पाश और परशु होते हैं।
पाश – राग, मोह और अज्ञान का प्रतीक है। गणेश इस पाश से पाप और नकारात्मक प्रवृत्तियों को अपने वश में कर अंकुश लगाते हैं।
परशु – तीक्ष्ण धार का प्रतीक है, जो तर्कशक्ति और विवेक से असत्य, भ्रांति और तमोगुण को काट डालता है।
वरमुद्रा
प्रायः गणेश वरमुद्रा में विराजते हैं, जो सत्त्वगुण का प्रतीक है। इससे भक्तों की मनोकामनाएँ पूरी होती हैं और उन्हें आश्रय मिलता है।
अंग-अंग से शिक्षा
भगवान गणेश का सम्पूर्ण व्यक्तित्व अद्वितीय प्रतीकात्मकता से परिपूर्ण है।
उनका उदर हमें सहनशीलता और विवेक सिखाता है।
उनकी सूंड सजगता और शक्ति का द्योतक है।
उनका वाहन सूक्ष्म विवेचना और ज्ञान की गहराई का प्रतीक है।
उनका मोदक, शून्य से सृष्टि और आनंद के रहस्य की अनुभूति कराता है।
गणेश हमें सिखाते हैं कि जीवन में बुद्धि को जाग्रत रखें, सद्गुणों को अपनाएँ, आसुरी प्रवृत्तियों पर अंकुश लगाएँ और सत्वगुण का विस्तार करें।