बी के ब्रम्हानंद, रायपुर (छत्तीसगढ़)
हम सभी अपने जीवन में तीन शक्तिशाली अनुभवों से गुजरते हैं—अभिमान, अपमान और स्वमान। ये तीनों भावनाएँ न केवल हमारे व्यवहार को प्रभावित करती हैं, बल्कि हमारी आध्यात्मिक यात्रा को भी दिशा देती हैं। ये आत्मज्ञान के गहरे सूत्रों को प्रकट करते हैं।
अभिमान : सबसे बड़ी बाधा
हमेशा विनम्रता का अभ्यास करें। सत्संग, सेवा और आत्म-निरीक्षण को जीवन में स्थान दें। ध्यान और समता के भाव से मन को शुद्ध करें। तो अभिमान धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगा। क्योंकि अभिमान हमें ऊँचा नहीं, बल्कि भीतर से खोखला करता है। विनम्रता से ही परमात्मा (शिव बाबा) की कृपा का पात्र बना जा सकता है।
अपमान : आत्म-निर्माण की अग्नि परीक्षा
स्वमान : आत्मा की सच्ची गरिमा
स्वमान का अर्थ है—स्वयं के 'आत्म-मूल्य' को जानना और उसका सम्मान करना। यह अहंकार से भिन्न है, क्योंकि स्वमान में विनम्रता होती है, जबकि अभिमान (अहंकार) में दिखावा। स्वमान हमें आत्मबल, आत्मविश्वास और सकारात्मक दृष्टिकोण देता है। यह हमें जीवन में संतुलित रहना सिखाता है। न दबना है, न दबाना है। यह परमात्मा से आत्मा के मिलन में दृढ़ता और सत्य पर टिके रहने की शक्ति प्रदान करता है। स्वमान माना, अपने आप में विश्वास करो। स्वमान से ही व्यक्ति सत्य और अहिंसा के पथ पर चलता है।
हम नियमित आत्म-निरीक्षण करें। ध्यान और सत्संग से मन को जाग्रत रखें। हर पल परमात्मा और परमधाम की याद रहे। क्योंकि, जहाँ अभिमान समाप्त होता है, वहीं आत्मा जागृत होती है। जहाँ अपमान सहने की शक्ति आती है, वहीं आत्मबल खिलता है। और जहाँ स्वमान होता है, वहीं परमात्मा का दर्शन होता है।