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आत्म दर्शन : अभिमान, अपमान और स्वमान

 बी के ब्रम्हानंद, रायपुर (छत्तीसगढ़)


हम सभी अपने जीवन में तीन शक्तिशाली अनुभवों से गुजरते हैं—अभिमान, अपमान और स्वमान। ये तीनों भावनाएँ न केवल हमारे व्यवहार को प्रभावित करती हैं, बल्कि हमारी आध्यात्मिक यात्रा को भी दिशा देती हैं। ये आत्मज्ञान के गहरे सूत्रों को प्रकट करते हैं।

अभिमान : सबसे बड़ी बाधा

अभिमान का अर्थ है—अपने ज्ञान, धन, सत्ता या पद का गुमान। खुद को ज्ञानवान, धनवान, ताकतवर, प्रभावशाली मान लेने से अभिमान बढ़ता है। जहाँ अभिमान (अहंकार) होता है, वहाँ आध्यात्मिक विकास नहीं हो सकता।
ज्ञान का अभिमान हमें दूसरों की सीख सुनने से रोकता है। सत्ता या पद का अभिमान सेवा की भावना को नष्ट करता है। धन का अभिमान दूसरों को तुच्छ मानने की प्रवृत्ति को जन्म देता है। अभिमान को 'मन का विष' कहा गया है। यह न केवल दूसरों से बल्कि स्वयं के सत्य स्वरूप से भी दूर कर देता है।

हमेशा विनम्रता का अभ्यास करें। सत्संग, सेवा और आत्म-निरीक्षण को जीवन में स्थान दें। ध्यान और समता के भाव से मन को शुद्ध करें। तो अभिमान धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगा। क्योंकि अभिमान हमें ऊँचा नहीं, बल्कि भीतर से खोखला करता है। विनम्रता से ही परमात्मा (शिव बाबा) की कृपा का पात्र बना जा सकता है।

अपमान : आत्म-निर्माण की अग्नि परीक्षा

अपमान का कड़वा अनुभव हर किसी के जीवन में आता है, लेकिन इसका प्रतिउत्तर क्रोध या द्वेष नहीं, बल्कि संयम और विवेक होना चाहिए। अपमान को सीढ़ी बनाएंगे, तो आत्मा ऊँचाई को छू सकेगी। माता-पिता, गुरु या समाज द्वारा हुआ अपमान हमें झकझोरता है लेकिन वही हमारी आत्मशक्ति को जागृत करता है। अपमान होने पर भी धैर्य रखें, क्योंकि यह आत्मा की अग्नि-परीक्षा है।
अपमान को अमृत की तरह ग्रहण करें, यह अभिमान (अहंकार) को गलाकर विनम्रता की ओर ले जाता है। बार-बार अपमान हो, तब भी क्रोध से नहीं, आत्म-बोध से प्रतिउत्तर देना चाहिए। अपमान को अन्तर्मन से देखा जाए, तो हमारे भीतर छिपी शक्ति को बाहर लाने का माध्यम बन सकता है।

स्वमान : आत्मा की सच्ची गरिमा

स्वमान का अर्थ है—स्वयं के 'आत्म-मूल्य' को जानना और उसका सम्मान करना। यह अहंकार से भिन्न है, क्योंकि स्वमान में विनम्रता होती है, जबकि अभिमान (अहंकार) में दिखावा। स्वमान हमें आत्मबल, आत्मविश्वास और सकारात्मक दृष्टिकोण देता है। यह हमें जीवन में संतुलित रहना सिखाता है। न दबना है, न दबाना है। यह परमात्मा से आत्मा के मिलन में दृढ़ता और सत्य पर टिके रहने की शक्ति प्रदान करता है। स्वमान माना, अपने आप में विश्वास करो। स्वमान से ही व्यक्ति सत्य और अहिंसा के पथ पर चलता है।

हम नियमित आत्म-निरीक्षण करें। ध्यान और सत्संग से मन को जाग्रत रखें। हर पल परमात्मा और परमधाम की याद रहे। क्योंकि, जहाँ अभिमान समाप्त होता है, वहीं आत्मा जागृत होती है। जहाँ अपमान सहने की शक्ति आती है, वहीं आत्मबल खिलता है। और जहाँ स्वमान होता है, वहीं परमात्मा का दर्शन होता है।

अभिमान छोड़िए, क्योंकि वह सत्य से दूर करता है।

अपमान को स्वीकारिए, क्योंकि वह आत्मा को मजबूत बनाता है। स्वमान को अपनाइए, क्योंकि वही आत्मिक प्रगति की नींव है।
अभिमान को त्यागना, अपमान को सहना, और स्वमान को बनाए रखना—यही आत्म दर्शन की कुंजी है। इन तीनों के संतुलन से ही जीवन शांत, सार्थक और सफल हो सकता है।

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