पिछले 11 वर्षों में पूर्वोत्तर भारत की सुरक्षा स्थिति में ऐतिहासिक बदलाव आया है। जहां एक समय यह क्षेत्र उग्रवाद, जातीय संघर्ष और हिंसा के लिए जाना जाता था, वहीं अब यह शांति, स्थिरता और समावेशी विकास की दिशा में बढ़ रहा है। वर्ष 2014 से 2025 के बीच केंद्र सरकार की निरंतर कोशिशों, ऐतिहासिक शांति समझौतों और विश्वास-निर्माण उपायों ने हजारों उग्रवादियों को मुख्यधारा में लौटने के लिए प्रेरित किया है।
वहीं 2019 से 2023 के बीच केंद्र सरकार द्वारा कराए गए शांति समझौतों के परिणामस्वरूप बोडो, कार्बी, NSCN और ULFA जैसे कई उग्रवादी संगठनों के 8,000 से अधिक कैडरों ने हथियार छोड़ दिए हैं। यह शांति प्रयास न केवल भूमिगत नेटवर्क को खत्म करने में सफल रहे, बल्कि समावेशी शासन की राह भी प्रशस्त की।
इस अवधि में उग्रवाद से जुड़े घटनाक्रमों में 89% की गिरावट आई है, जबकि आम नागरिकों की हत्याएं 86% और सुरक्षा बलों की मौतें 76% तक कम हुई हैं। इस उल्लेखनीय सुधार के बाद सरकार ने त्रिपुरा और मेघालय से पूरी तरह AFSPA (आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर्स एक्ट) हटा लिया है, जबकि असम, मणिपुर, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश के कई हिस्सों से आंशिक रूप से इसे हटाया गया है। यह कदम क्षेत्र में सामान्य स्थिति की बहाली की दिशा में एक बड़ा संकेत है।
सुरक्षा के साथ-साथ सीमावर्ती विवादों को भी शांतिपूर्वक हल किया गया है। असम सरकार ने इसी अवधि में मेघालय और अरुणाचल प्रदेश के साथ सीमाई समझौते किए, जिससे वर्षों पुराने विवाद समाप्त हुए और स्थानीय तनावों में कमी आई।
इसके अलावा सरकार ने आत्मसमर्पण करने वाले उग्रवादियों के लिए पुनर्वास योजनाएं भी शुरू की हैं, जिनके तहत उन्हें शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण और रोजगार सहायता उपलब्ध कराई जा रही है। इन सब प्रयासों ने मिलकर पूर्वोत्तर भारत की सुरक्षा नीति को टकराव से सहयोग की ओर ले जाने में मदद की है, जो एक सकारात्मक बदलाव का प्रतीक है।