रायपुर : मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में राज्य सरकार पर्यटन और ऐतिहासिक, धार्मिक व पौराणिक महत्व के स्थलों को चिन्हांकित कर धार्मिक एवं पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर रहा है। इसी कड़ी में छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के अंतर्गत पर्यटन और रोमांच से भरपूर सरायपाली स्थित शिशुपाल पर्वत नए पर्यटन डेस्टिनेशन के रूप में उभर कर सामने आया है। इस पर्वत का ऐतिहासिक, धार्मिक और पौराणिक महत्व भी है। मकर संक्रांति और महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां विशाल मेला का आयोजन भी होता है।
शिशुपाल पर्वत की प्राकृतिक सुंदरता और शांत वातावरण इसे एक आदर्श पर्यटन स्थल के रूप में अपनी पहचान बना रही हैं। यहां का वातावरण, झरने की आवाज, ठंडी हवा एवं प्राकृतिक सुंदरता व शांति का संगम पर्यटकों को मानसिक शांति और सुकून का अनुभव कराती है। यह स्थान फोटोग्राफी और प्रकृति के अद्भुत दृश्यों के लिए भी प्रसिद्ध है। शिशुपाल पर्वत न केवल रोमांचक ट्रैकिंग स्थल है, बल्कि इतिहास और प्रकृति का अद्भुत संगम भी है। यह स्थान ट्रैकिंग, फोटोग्राफी और प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेने के लिए एक बेहतरीन विकल्प है। यदि आप प्राकृतिक सुंदरता, रोमांच और इतिहास का अनुभव करना चाहते हैं, तो शिशुपाल पर्वत आपकी सूची में होना चाहिए। अपनी ऐतिहासिक महत्व और प्राकृतिक आकर्षण के साथ, शिशुपाल पर्वत आज के दौर में पर्यटन का नया केंद्र बनता जा रहा है।
शिशुपाल पर्वत पर्यटन स्थल में हर वर्ष मकर संक्रांति और महाशिवरात्रि के अवसर पर भारी संख्या में भक्त दर्शन और पूजन के लिए आते हैं। इस दौरान मंदिर के आसपास भव्य मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें लोग धार्मिक अनुष्ठानों के साथ-साथ मेले की चहल-पहल का आनंद लेते हैं। मकर संक्रांति पर लगने वाला यह मेला इतिहास और प्राकृतिक सौंदर्य का संगम है। धार्मिक आस्था, ऐतिहासिकता, साहसिक पर्यटन का अद्भुत अनुभव इसे एक संपूर्ण पर्यटन स्थल बनाता है। यह मेला न केवल स्थानीय लोगों के लिए, बल्कि दूर-दूर से आने वाले पर्यटकों के लिए भी विशेष आकर्षण का केंद्र है। यहां रोजगार के नए अवसर भी सृजित हो रहा है।
शिशुपाल पर्वत का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्त्व है। इसे लेकर स्थानीय नागरिकों का कहना है कि शिशुपाल पर्वत (बूढ़ा डोंगर) का नाम स्थानीय लोककथाओं से जुड़ा हुआ है। इस संदर्भ में किंवदंती है कि इस पहाड़ पर कभी राजा शिशुपाल का महल हुआ करता था। यहां का गौरवशाली इतिहास रहा है पर्वत के उपर ही अभेद्य दुर्ग, सुरंग एवं शिवमंदिर का निर्माण किया गया है, जिसका भग्नावशेष आज भी अतीत की गौरवगाथा सुनाती है। जब अंग्रेजों ने राजा को घेर लिया, तो उन्होंने वीरता का प्रदर्शन करते हुए अपने घोड़े की आंखों पर पट्टी बांधकर पहाड़ से छलांग लगा दी। इस घटना के कारण इस पर्वत का नाम शिशुपाल पर्वत और यहां स्थित झरने का नाम घोड़ाधार जलप्रपात पड़ा। यह बारहमासी झरना अत्यधिक ऊँचाई से गिरने के कारण अद्भुत सौंदर्य का अप्रतिम उदाहरण है।
इस क्षेत्र को पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित किए जाने की पहल शासन द्वारा विश्ेाष प्रयास किए जा रहे हैं। पिछले दिनों वन विभाग द्वारा पर्यटन और रोजगार की संभावनाओं को देखते हुए स्थल का निरीक्षण किया गया। चूंकि आसपास के क्षेत्र में बंसोड़ जाति बहुतायत संख्या में पाए जाते हैं, जो बांस की कलाकृति बनाते हैं। उन्हें भी रोजगार से जोड़ा जा सके। साथ ही एक पर्यटन परिपथ के रूप में भी विकसित किया जाए। विशेषज्ञों का कहना है कि यहां से चंद्रहासिनी देवी मंदिर, गोमर्डा अभ्यारण, सिंघोड़ा मंदिर, देवदरहा जलप्रपात एवं पर्यटन स्थल नरसिंहनाथ को जोड़ा जा सकता है।
पोषण साहू, सहायक संचालक ( ओ.पी. डहरिया, सहायक जनसंपर्क अधिकारी )