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Veer Bal Diwas 2024: शहीद हो गए पर धर्म नहीं बदला, साहिबजादों ने छोटी सी उम्र में जान न्योछावर कर दी थी, पढ़े पूरी खबर

 Veer Bal Diwas 2024: वीर बाल दिवस हर वर्ष 26 दिसंबर को देश भर में मनाया जाता है। सिख धर्म के 10वें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे साहिबजादों को सम्मानित करने के लिए इस दिन को मनाया जाता है। ये दो साहिबजादे थे जोरावर सिंह और फतेह सिंह, जिन्होंने कम उम्र में ही अपने प्राणों की आहूति धर्म और मानवता के लिए दे दी थी। इनके सम्मान में ही 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस मनाया जाता है। इस दिन की बेहद अहम खासियत है।


दसवें गुरु ने की थी खालसा पंथ की स्थापना
सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह नौवें गुरु श्री तेगबहादुर के पुत्र थे. मुगलों के शासनकाल में साल 1675 में कश्मीरी पंडितों की फरियाद पर श्री गुरु तेगबहादुर जी ने दिल्ली में अपना सर्वोच्च बलिदान दे दिया था. इसके बाद श्री गुरु गोविंद सिंह जी 11 नवंबर 1675 को दसवें गुरु के रूप में गुरु गद्दी पर आसीन हुए थे. उन्होंने धर्म और समाज की रक्षा के लिए साल 1699 ई. में खालसा पंथ की स्थापना की थी. पांच प्यारों को गुरु का दर्जा देकर स्वयं उनके शिष्य बन गए थे. गुरु गोविंद सिंह जी की पत्नियां थी माता जीतो जी, माता सुंदरी जी और माता साहिबकौर जी. उनके बड़े साहिबजादे बाबा अजीत सिंह और बाबा जुझार सिंह ने चमकौर के युद्ध में शहादत हासिल की थी.

वीर बाल दिवस की कहानी

सिख धर्म के 10वें गुरु श्री गोबिंद सिंह जी ने 1699 में बैसाखी के दिन ही खालसा पंथ की नींव रखी थी। श्री गोबिंद सिंह जी के चार बेटे थे, अजीत सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह। ये सभी खालसा पंथ का हिस्सा थे। ये वो समय था जब पंजाब में मुगल शासन करते थे। वर्ष 1705 में मुगलों ने गुरु गोबिंद सिंह जी को पकड़ने पर जोर दिया था। यही कारण था कि उन्हें परिवार से भी दूर जाना पड़ा था। गुरु गोबिंद सिंह जी की पत्नी माता गुजरी देवी और उनके दो छोटे पुत्र जोरावर सिंह और फतेह सिंह और रसोइए गंगू के साथ के ऐसे स्थान पर छिपी थी जिसकी जानकारी नहीं थी।

मुगलों से लिया लोहा

लालच के कारण उनका रसोइया गंगू अंधा हो गया था। उसने लालच में आकर मुगलों से सुलह की। उसने माता गुजरी और उनके पुत्रों को मुगलों को पकड़वाया। मुगलों ने इन तीनों पर ही भयंकर अत्याचार किए। उन्हें उनका धर्म परिवर्तन करने के लिए मजबूर किया। धर्म परिवर्तन करने से तीनों ने इंकार किया। बता दें कि इस समय तक गुरु गोबिंद सिंह जी के दो बड़े पुत्र शहीद हो चुके थे, जो मुगलों के खिलाफ लोहा ले रहे थे। मुगलों ने दोनों छोटे साहिबजादों के मजबूत इरादों को देखते हुए 26 दिसंबर के दिन बाबा जोरावर साहिब और बाबा फतेह साहिब को जिंदा दीवार में चुनवाया था। जैसे ही माता गुजरी को दोनों साहिबजादों के शहादत की जानकारी मिली, उन्होंने भी अपने प्राण त्याग दिए।

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