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कलेक्टर लंगेह ने कराया स्वयं का प्रकृति परीक्षण, जिले मे अब तक 4100 से अधिक लोगों का प्रकृति परीक्षण पूर्ण

 महासमुंद : संचालनालय आयुष छत्तीसगढ़ के निर्देशानुसार व जिला आयुष अधिकारी डॉ. प्रवीण चंद्राकर के मार्गदर्शन में जिले में देश का प्रकृति परीक्षण’ अभियान प्रभावी ढंग से 26 नवम्बर 2024 से चल रहा है। यह अभियान 25 दिसम्बर 2024 तक राज्य सहित जिले में संचालित रहेगा। आज कलेक्ट्रेट कक्ष में कलेक्टर  विनय कुमार लंगेह ने स्वयं का प्रकृति परीक्षण करवाया। कलेक्टर ने सभी नागरिकों से अपील की है आप सभी लंबे समय तक स्वस्थ रहने के लिए स्वयं की प्रकृति का जाँच करवाएं।


जिला पंचायत कार्यालय, पुलिस अधीक्षक कार्यालय, वन विभाग व विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में अब तक कार्यशाला व शिविर लगाकर प्रकृति परीक्षण किया जा चुका है। अब तक कुल 4100 से अधिक लोगों द्वारा जिले में प्रकृति परीक्षण करवाया जा चुका है। यह प्रकृति परीक्षण समस्त आयुष की संस्थाओं व निजी प्रैक्टिस कर रहे आयुर्वेद चिकित्सकों द्वारा निःशुल्क किया जा रहा है। भारत सरकार द्वारा जारी डिजिटल ऐप के माध्यम से इसका आंकलन किया जा रहा है। एंड्रॉयड मोबाइल सेट लेकर गूगल प्ले स्टोर से इस ऐप को डाउनलोड किया जा सकता है। प्रकृति परीक्षण ऐप एन सी आई एस एम को डाउनलोड करके अपने एक मोबाईल नम्बर को प्रविष्ट करें जिस पर ओ टी पी आएगा। ओ टी पी को प्रविष्ट करने के उपरांत सिटीजन कॉलम में कुछ व्यक्तिगत जानकारियों को प्रविष्ट करना होता है। अंततः एक क्यू आर कोड जनरेट होगा जिसे आयुष चिकित्सक स्कैन करके प्रश्नावली में अंकित प्रश्नों को पूछकर व व्यक्ति को देखकर उस व्यक्ति का प्रकृति निर्धारित करते हैं।

आयुर्वेद में प्रकृति का सिद्धांत यह बताता है कि किसी भी मनुष्य के प्रकृति का निर्धारण उसके गर्भ में रहने के दौरान ही हो जाता है। सात प्रकार के दैहिक/शारीरिक प्रकृतियों का वर्णन आयुर्वेद में मिलता है। त्रिदोष ( वात, पित्त व कफ) शारीरिक प्रकृतियों का निर्माण करते हैं। वातज, पित्तज, कफज, कफ पित्तज, कफवात, वात पैत्तिक व त्रिदोषज कुल सात शारीरिक प्रकृतियों का निर्माण होता है। तीनों दोषों के मिलने से समधातुज प्रकृति का निर्माण होता है जो कि सर्वश्रेष्ठ होती है। आयुर्वेद में वर्णित चरक का सिद्धांत कहता है कि ऐसे भाव या कारण जो सामान्य होते हैं वे वृद्धि का कारण हैं और ऐसे भाव या कारण जो विशेष या भिन्न होते हैं वे क्षय या ह्रास का कारण होते हैं।

इस प्रकार यदि व्यक्ति अपने प्रकृति के बारे में जान जाएगा तो उसे यह भी ज्ञात हो जाएगा कि वह क्या खाएं व क्या ग्रहण न करे। इस प्रकार हम यह समझ सकते हैं कि हमारे लिए स्वयं की प्रकृति का ज्ञान होना कितना आवश्यक होता है।
शासकीय आयुष पॉली क्लिनिक महासमुंद में कार्यरत आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी डॉ. सर्वेश दूबे प्रकृति परीक्षण के महत्व को बताया कि मनुष्य की प्रकृति आजीवन नहीं बदलती है। मनुष्य के शरीर का निर्माण पंचमहाभूतों (आकाश, वायु, अग्नि, जल व पृथ्वी) से हुआ है व मनुष्य की दोषिक प्रकृति इन्हीं पंचमहाभूतों का हमारे शरीर में प्रतिनिधित्व करती हैं। मानव शरीर व सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड पांच महाभूतों से मिलकर निर्मित हुआ है।

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