आरंग। आरंग में गौरी गौरा का पर्व बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है। गौरी गौरा पर्व मनाने की परंपरा की शुरुआत कल से हो गई है।इस पर्व में गौरा अर्थात भगवान शंकर और गौरी अर्थात माता पार्वती का विवाह सम्पन्न होता है।धन तेरस के एक दिन पूर्व से यह पर्व की रस्म शुरू हो जाती है।
जिसमें महिलाओं और युवतियों द्वारा गौरी गौरा की गीत गाते फूल कुचरना,चांवल चढ़ाना, इत्यादि रश्में विधि विधान से की जाती है।यह रश्म पांच दिनों तक चलता है। लक्ष्मी पूजा के दिन एक निश्चित स्थान से पूजा आराधना कर बाजे गाजे के साथ गौरी गौरा निर्माण के लिए मिट्टी लाई जाती है।
उसी मिट्टी से रात्रि में गौरा गौरी की प्रतिमा बनाकर चमकीली पेपर लगाकर आसन में स्थापित कर पूजा आराधना की जाती है। वही रात्रि में युवतियां व महिलाएं घरों में कलसा को बहुत ही आकर्षक ढंग से सजाती है। और गौरी गौरा के विवाह पर मंगल गीत
गीत गाती हुई एक दूसरे के घर जाकर एकत्रित होती है। साथ ही गीत गाती और दोहराती हैं। वहीं पुरुष और महिलाएं बाजा के धुन में बेधुन होकर नाचते झूमते कांशी से निर्मित सांकड़ से बैगा या अन्य श्रद्धालुओं द्वारा हाथों और पैरों में मारा जाता हैं। जिसे सांकड़ लेना कहा जाता है।
श्रद्धालु इसे भगवान शंकर का प्रसाद मानते हुए खुशी खुशी सांकड़ लेते हैं।बाजे गाजे के साथ गौरी गौरा के गीत में बेधुन होकर नाचने झूमने को गौरा चढ़ना कहा जाता है। रात्रि में गौरी के घर गौरा का बाजे गाजे के साथ बारात लेकर पहुंचते हैं। बारात में सम्मिलित श्रद्धालु शिव गण के रूप में माना जाता है।इस प्रकार गौरी गौरा का विवाह सम्पन्न होता है।
गोवर्धन पूजा के दिन इन प्रतिमाओं को बाजे गाजे के साथ गौरी गौरा गीत गाते नाचते झूमते विसर्जित किया जाता है।यह पर्व प्रमुख रूप से गोंड जनजातियों द्वारा विशेष रूप से मनाया जाता है। जहां गोंड जनजातियां नहीं है वहां सभी जाति समुदाय के लोग मिल जुलकर यह पर्व हर्षोल्लास से मनाते हैं।इस तरह गौरी गौरा का पर्व प्रदेश भर में बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है।