रायपुर । हम सभी ने दशहरा मनाया और हर साल मानते है | हम रावण का बुत बनाकर उसे जलाते है | एक बार जली हुई चीज बार जलाने कि आवश्यकता नही होती | रावन का पुतला हर साल बड़ा बड़ा बनाकर जलाते है | रावण का पुतला तो जला लेकिन असली रावण तो जिन्दा है | वह हर वर्ष बढ़ता ही जा रहा है | वास्तव में माँ मानव मन के मनोविकार ही रावण है दिन प्रतिदिन हर मानव में बढ़ते ही जा रहे है | काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या, नफरत, घृणा, द्वेष, वेर यह है दस सिर जब तक इन मनोविकारो पर जीत नहीं पायेगे तब सच्चा सुख और शांति जीवन में नहीं मिलेगी |
उन्होंने बताया कि यदि हम अपने चारों ओर देखें तो पाते हैं कि मनुष्य काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, आलस्य, भय, लापरवाही, घृणा और ईर्ष्या जैसी बुराइयों के आगे झुक गया है। ये सभी 10 बुराइयां रिश्तों में कलह और दुनिया में हिंसा का कारण बन रही हैं। उन्होंने बताया कि एक रावण आज हर एक मानव के अंदर भी विराजित है। मानव मन के अंदर लोभ वृत्ति के कारण आज समाज में नफरत, अस्वच्छता, बीमारियां बढ़ती जा रही है। जब हम हमारे अंदर के रामत्व अर्थात अच्छाइयों को जागृत करेंगे तो ही हम विजय प्राप्त कर पाएंगे | यदि हम अपने चारों ओर देखें तो पाते हैं कि मनुष्य काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, आलस्य, भय, लापरवाही, घृणा और ईर्ष्या जैसी बुराइयों के आगे झुक गया है। ये सभी 10 बुराइयां रिश्तों में कलह और दुनिया में हिंसा का कारण बन रही हैं।
कार्यक्रम के अंत में बी के भगवान भाई जी ने विकारों पर संस्कारों पर जीत पाने हेतु राजयोग मेडिटेशन भी कराया और मेडिटेशन से हमारे कर्मेन्द्रियो पर सयम आता है जिससे हम तनाव मुक्त विकार मुक्त बन सकते है | उन्होंने अपने संस्कारों को बुराई पर जीत पाने हेतु विभिन्न युक्तिया बताई |