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क्षमा करने वाला बुजदिल नहीं, क्षमा तो वीरों का आभूषण है- जैन

पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व महासमुंद में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया


महासमुंद । जैन संप्रदाय का आठ दिवसीय पर्युषण महापर्व का अंतिम दिवस संवत्सरी पर्व शनिवार को हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। दुर्ग से पधारे स्वाध्यायी प्रसिद्ध सर्जन डा. धरमचंद जैन एवम् श्रीमती डा. मीना जैन की विशेष उपस्थिति में धूमधाम से 'क्षमा पर्व ' मनाया गया।

प्रात: 9.00 बजे से वल्लभ भवन में मूल बारसा सूत्र का वांचन प्रारंभ हुआ । वांचना के बाद जैन मंदिर से प्रारंभ होकर चैत्य परिपाटी गांधी चौक से होते हुए पुन: जैन मंदिर पहुंची। आज अनेक पुरुष, महिलाएं और बच्चों ने पौषध लिया अर्थात एक दिन के साधु साध्वी बने। शाम को सामुहिक प्रतिक्रमण जैन मंदिर और शांतिनाथ भवन में हुआ, तत्पश्चात सभी ने अपने द्वारा जाने अनजाने में की गई गलतियों के लिए एक दूसरे से क्षमा याचना की ।

सभी जीवों से माफी मांगने की प्रथा

जैन संप्रदाय का यह विशेष पर्व है, जिसमे अपने अहंकार को खत्म करके सभी जीवों से माफी मांगने की प्रथा है । 31 अगस्त से 7 सितंबर तक पर्युषण महापर्व की आराधना की गई । प्रतिदिन प्रतिक्रमण और कल्पसूत्र वांचन स्वाध्यायीगण द्वारा सम्पन्न कराया गया । प्रतिदिन शाम को जैन मंदिर में प्रभु की आरती और भक्ति धूमधाम से की गई । आठ दिन प्रभु की मनमोहक आँगी रचाई गई । आठ दिवसीय पर्व के पांचवे दिवस भगवान महावीर का जन्म कल्याणक बड़े उत्साह के साथ मनाया गया । माता त्रिशला के चौदह स्वप्नों की बोलियों का लाभ समाज के अनेक सदस्यों ने लिया।

ये रहे बोली-पूजा के लाभार्थी

पालनाजी की बोली का लाभ श्री चंपालालजी बस्तीमलजी प्रेमचंदजी चोपड़ा परिवार ने लिया। लक्ष्मी जी की बोली का लाभ श्री सोहनलालजी राजेशजी लूनिया परिवार ने लिया । दीपावली जी के दिन पट खोलने का लाभ श्री कांतिलालजी नीलमचंदजी कोचर परिवार ने लिया ।

सामूहिक क्षमापना 9 को

पर्युषण महापर्व के समापन पश्चात 9 सितम्बर को जैन मंदिर में परम पूज्य रजतमणि जी मसा की पावन निश्रा में सामुहिक क्षमापना का कार्यक्रम रखा गया है । और उसी दिन सभी तपस्वियों का सम्मान, वरघोड़ा का आयोजन किया गया है । सामूहिक क्षमापना के पश्चात श्री केशरीचंदजी स्वरूपचंदजी गुमानजी लुनिया परिवार की तरफ़ से स्वामी वात्सल्य रखा गया है। जैन श्री संघ के सचिव रितेश गोलछा ने बताया की इस वर्ष बहुत से आराधकों ने मासक्षमण, सिद्धि तप, अठाई, नौ उपवास, समवशरण, विजय कसाय, अक्षय निधि, तेला, एकांतर तप, 51 दिवसीय एकासना व बियासना, मोक्ष तप, नवकार तप आदि अनेक तपस्याएँ की है । इस वर्ष श्री शांतिनाथ धर्मरक्षक मंडल द्वारा लुनिया भवन में परमात्मा की मनमोहक झांकी रचाई गई है, जहां रोज़ आरती और मंगलदीया किया जा रहा है ।

स्वाध्यायी डा. धरमचंद जैन ने क्षमा के महत्व का वर्णन करते हुए कहा कि ये न सोचें कि क्षमा करने से लोग तुम्हें बुजदिल समझेंगे, बल्कि क्षमा तो वीरों का आभूषण है । जो वीर होता है उसी में क्षमा करने की क्षमता होती है ।

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