महासमुंद । यह कारागृह नही , बल्कि सुधारगृह है । इसमें आपको स्वयं में सुधार लाने के लिए रखा गया है। शिक्षा देने के लिए नहीं । इस कारागृह को संस्कार परिवर्तन का केंद्र बना लो | यह कारागृह आपके जीवन में सुधार लाने के लिए तपोस्थल है । एक दूसरे से बदला लेने के बजाय स्वयं को बदलना है। बदला लेने से समस्या और भी बढ़ जाती है | बदला लेने के बजाय स्वयं को ही बदलकर दिखाने की प्रवृति रखनी है । मनुष्य जीवन बड़ा अनमोल होता है । उसे व्यर्थ कर्म कर, व्यर्थ ऐसा ही नहीं गंवाना चाहिए। मजबूरी को परीक्षा समझकर उसे धैर्यता और सहनशीलता से पार करना है, तो अनेक दुखों और धोखे से बच सकते हैं। उक्त बातें माउंट आबू (राजस्थान) से प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय से आये हुए ब्रह्मकुमार भगवान भाई ने कही | वे जिला कारागृह (जेल) में बंद कैदियों को कर्म गति और व्यवहार शुद्धि विषय पर बोल रहे थे।
भगवान भाई ने कहा कि कारागृह के इस एकांत स्थान पर बैठकर स्वयं को परिवर्तन करने के लिए सोचें कि मैं इस संसार में क्यों आया हूं? मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है , मुझे परमात्मा ने किस उद्देश्य से यहां भेजा है ? मैं यहां आकर क्या कर रहा हूं ? ऐसी बातों का चिंतन करने से संस्कार , व्यवहार परिवर्तन होगा । उन्होंने कहा कि जीवन में परिवर्तन लाकर श्रेष्ठ चरित्रवान बनने का लक्ष्य रखना है। तब कारागार आपके लिए सुधारगृह साबित होगा। हमारे जीवन से काम ,क्रोध,लोभ ,मोह अहंकार, इर्ष्या, नफरत आदि बुराई को अपने जीवन से खदेड़कर हमें अपने आंतरिक बुराईयों को निकालना है | स्वयं के अवगुण या बुराईयां है, उसे दूर भगाना हैं। ईर्ष्या करना , लड़ना , झगड़ना , चोरी करना , लोभ , लालच , यह मनोविकार तो हमारे दुश्मन हैं । जिसके अधिन होने से हमारे मान , सम्मान को चोट पहुंचती हैं । इन अवगुणों ने और बुराईयों ने हमें कंगाल बनाया, इससे दूर रहना है ।
भगवान भाई ने कैदियों से कहा कि हम किसके बच्चे हैं? जिस परमात्मा के हम बच्चे हैं , वह तो शांति का सागर , दयालु, कृपालू , क्षमा का सागर है । हम स्वयं को भूलने से ऐसी गलतियां कर बैठते हैं । उन्होंने कहा कि हम ऐसा कोई कर्म ना करें जिस कारण धर्मराज पूरी में हमें सिर झुकाना पड़े, पछताना पड़े , रोना पड़े । जिन भूलों के कारण हम यहाँ आये हैं, उन भूलोन को या बुराईयां दूर करना है। तो हमारे अंदर की आपराधिक प्रवृत्ति में परिवर्तन आएगा।
उन्होंने बन्दियों को बताया कि बीती बात को भुला देना चाहिए तथा आगे की सोचनी चाहिए कि हे परमात्मा मेरे से कोई बुरा कार्य न हो। गलती करने वाले से माफ करने वाला बड़ा होता है। बदला लेने वाला दूसरों को दुख देने से पहले अपने आप को दुख देता है। सभी इंसान ईश्वर की संतान हैं और सभी एक महान आत्मा हैं, संसार में सभी अपना-अपना कर्तव्य करने के लिए आते हैं। यही सोचना चाहिए कि मैंने अच्छे कर्म करने के लिए संसार में जन्म लिया है।
महासमुन्द सेवा केंद्र की ब्रह्माकुमारी राजयोग शिक्षिका बी के सुमन बहन ने बताया कि मनुष्य ने विषय वासनाओं की चादर ओढ़ी हुई है। जो भगवान से विमुख कर देती है। अगर भगवान को सर्व सम्बन्धों से याद किया जाए तो हममें भगवान की शक्ति आ जाएगी और तन-मन में खुशी शान्ति आ जाएगी व सर्व मनोकामनाएं पूर्ण हो जाएगी ।