आरंग। शिवालियों की नगरी आरंग में एक शिवलिंग ऐसा है जिसकी पूजा पहले तंत्र साधना के लिए किया जाता था। जानकार बताते हैं कि इस प्रकार के शिवलिंग को धारा लिंग कहा जाता है। षोडश कोणीय वाले शिवलिंग देश भर में यदा-कदा ही दिखाई पड़ती है। वही आरंग के पंचमुखी महादेव में स्थापित एक शिवलिंग ऐसा है जिसमें 16 फलकें है।
यह शिवलिंग करीब ढाई फिट ऊंची और काफी बड़ा है।इसी प्रकार के षोडश कोणीय वाले शिवलिंग सिरपुर में भी होने की जानकारी मिली है। पहले इस प्रकार के शिवलिंगों की उपासना तांत्रिक लोग तंत्र साधना के लिए किया करते थे।
जानकार बताते हैं कि आरंग में इस प्रकार के शिवलिंग मिलने से सातवीं - आठवीं शताब्दी में यहां तांत्रिक क्रिया कलापों से संबंधित संप्रदाय अवश्य रहा होगा।प्राचीन काल में शैव उपासक अलग-अलग संप्रदायों में विभक्त थे जैसे- पाशुपत संप्रदाय, कालामुख संप्रदाय, कापालिक संप्रदाय, वीरशैव या लिंगायत संप्रदाय एवं कश्मीरी शैव संप्रदाय।
वही शास्त्रों में शिव के पांच स्वरूपों का वर्णन किया गया है। त्रिनेत्रधारी शिव के पांच मुख से ही पांच तत्व जल, वायु, अग्नि, आकाश, पृथ्वी की उत्पत्ति हुई है। इसलिए भगवान शिव के ये पांच मुख पंचतत्व माने गए हैं। जगत के कल्याण की कामना से भगवान सदाशिव के विभिन्न कल्पों में अनेक अवतार हुए। जिनमें उनके सद्योजात, वामदेव, तत्पुरुष, अघोर और ईशान अवतार प्रमुख हैं। शिव को संगीत, नृत्य और योग का प्रणेता माना जाता है।
वहीं नगर के सामाजिक संगठन पीपला वेलफेयर फाउंडेशन के संयोजक महेन्द्र पटेल ने बताया नगर के विभिन्न शिवलिंगो की जानकारियों का संकलन व इतिहासकारों से अध्ययन कराया जा रहा है।