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निजी विद्यालयों को बिक्री केंद्र मे तब्दील न करें स्कूल संचालक - डॉ. सुरेश शुक्ला (सदस्य RTE फोरम छ.ग.)

 जिले मे निजी स्कूलों द्वारा शिक्षा सुविधा के नाम पर मनमाने तरीके शुल्क वसूली व् पुस्तक - कापी, यूनिफार्म तथा बच्चों के शिक्षा सामाग्री के नाम पर स्कूल से ही खरीदी किये जाने की शिकायत लगातार मिल रही है, शैक्षणिक संस्थानों को इस प्रकार के कृत्य से बचने की जरुरत है I


शैक्षणिक संस्थानों का मुख्य उद्देश्य शिक्षा का प्रसार और विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास होना चाहिए । परंतु हाल के वर्षों में कई शैक्षणिक संस्थानों पर आरोप लगे हैं कि वे विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों पर पुस्तकें और यूनिफार्म उन्हीं से खरीदने का दबाव बनाते हैं। यह एक गंभीर मुद्दा है जो कई पहलुओं से विचारणीय है । कई बार शैक्षणिक संस्थान विशेष बुक स्टोर्स या आपूर्तिकर्ताओं के साथ मिलकर विद्यार्थियों के लिए आवश्यक पुस्तकें और यूनिफार्म उन्हीं से खरीदने की शर्त रखते हैं इसका परिणाम यह होता है कि अभिभावकों पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ता है क्योंकि ये सामग्री बाजार मूल्य से अधिक कीमत पर बेची जाती है । अभिभावकों और विद्यार्थियों के पास सीमित विकल्प होने के कारण उन्हें मजबूरी में महंगी सामग्री खरीदनी पड़ती है। यह न केवल उनकी आर्थिक स्थिति पर प्रभाव डालता है बल्कि यह शिक्षा के मूल उद्देश्य से भी भटकाव है ।

अधिकतर शैक्षणिक संस्थानो में गुणवत्ता और विविधता का अभाव है, कई बार संस्थान द्वारा निर्धारित सामग्री की गुणवत्ता भी मानकों पर खरी नहीं उतरती, वहीं दूसरी ओर, स्वतंत्र रूप से सामग्री खरीदने पर गुणवत्ता और विविधता के अधिक विकल्प उपलब्ध होते हैं । कई राज्यों और देशों में इस प्रकार के दबाव बनाने के खिलाफ कानून बने हुए हैं, भारत में भी कई राज्य सरकारों ने इस पर नियंत्रण रखने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं  यह जरूरी है कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम और उपभोक्ता संरक्षण कानूनों के अंतर्गत इस प्रकार की गतिविधियों को नियंत्रित किया जाना चाहिए ।

उपरोक्त विषय के प्रति ध्यानाकर्षण हेतु शिक्षा मंत्री से बैठक कर अभिभावकों और विद्यार्थियों पर अनावश्यक दबाव बनाने वाले ऐसे शैक्षणिक संस्थानों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हेतु सुझाव प्रेषित किया जायेगा I स्कुल प्रबंधन को पठन पाठन सामाग्री हेतु अभिभावकों को विभिन्न विकल्पों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए ताकि वे स्वतंत्र रूप से उचित और गुणवत्तापूर्ण सामग्री खरीद सकें,  शैक्षणिक संस्थानों को पुस्तकें और यूनिफार्म खरीदने की प्रक्रिया में पारदर्शिता रखनी चाहिए और किसी भी प्रकार के अनुचित लाभ से बचना चाहिए । अभिभावकों और शिक्षकों की सहकारी समितियों का गठन किया जा सकता है जो सस्ते दरों पर गुणवत्तापूर्ण सामग्री उपलब्ध करा सकें ।

अंततः, शिक्षा का उद्देश्य विद्यार्थियों को ज्ञान और मूल्य प्रदान करना है, न कि उन्हें आर्थिक शोषण का शिकार बनाना, शैक्षणिक संस्थानों को इस महत्वपूर्ण जिम्मेदारी को समझते हुए विद्यार्थियों और अभिभावकों के हित में कार्य करना चाहिए ।

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