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सार्वजनिक जीवन से कल सन्यास लेंगे ललित चन्द्रनाहू, अलग अलग मसलों पर जीवनभर जूझते रहे हैं ये किसान नेता

आनंदराम पत्रकारश्री

छत्तीसगढ़ के महासमुन्द जिले के किसान नेता और जाने-माने आरटीआई एक्टिविस्ट ललित चन्द्रनाहू सार्वजनिक जीवन से सन्यास ले रहे हैं। श्री चन्द्रनाहू छत्तीसगढ़ में किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। छत्तीसगढ़ के प्रशासनिक अधिकारियों में इस नाम का बड़ा खौफ रहा है। जनहित से जुड़े किसी मुद्दे पर बड़े से बड़े अफसर, नेताओं के खिलाफ में खड़े हो जाना इनके स्वभाव में आ गया था। भ्रष्टाचार और भ्रष्ट तंत्र के खिलाफ लंबे संघर्ष के बाद स्वास्थ्यगत कारणों से अंततः उन्होंने सार्वजनिक जीवन से जुड़े मसलों से सन्यास लेने का निर्णय लिया है।

किसान नेता ललित चन्द्रनाहू

'मीडिया24मीडिया' से खास बातचीत में उन्होंने बताया कि 13 जनवरी 2024 को अपने 71वें जन्मदिन पर श्री चन्द्रनाहू सार्वजनिक जीवन से सन्यास लेकर आरटीआई एक्टिविस्ट और विभिन्न मामलों में दखल से खुद को अलग कर रहे हैं। अब शेष जीवनयात्रा स्वाध्याय और योग, पारिवारिक मित्रों से भेंट मुलाकात, परिजनों को समय देकर शांतिपूर्ण ढंग से जीवन यात्रा संपन्न करेंगे। उनके इस घोषणा से खासकर प्रशासनिक अमले ने राहत की सांस ली है। क्योंकि विभिन्न मसलों पर उनके द्वारा आरटीआई से जानकारी मांगने और अड़ियल अफसरों से तकरार के चलते कतिपय अधिकारी-कर्मचारी श्री चन्द्रनाहू से अप्रसन्न रहते थे।

जीवन परिचय: प्रारंभिक शिक्षा और संघर्ष की शुरुआत

किसान नेता ललित चन्द्रनाहू का जन्म 13 जनवरी 1953 को महासमुन्द में हुआ। प्राथमिक शिक्षा कक्षा चौथी तक प्राथमिक शाला पैतृक गांव बनपचरी (पटेवा) में हुई। पांचवी की शिक्षा प्राथमिक शाला ग्राम फरफौद (आरंग) और मिडिल स्कूल की शिक्षा भानसोज (आरंग) से ग्रहण किया। हाई स्कूल (मैट्रिक) की शिक्षा कालीबाड़ी स्कूल रायपुर से हुई। बाद महज साढ़े 17 साल की आयु में सन् 1970 में संयुक्त समाजवादी पार्टी के युवजन सभा की सदस्यता ग्रहण कर ली। इसके साथ ही छात्र राजनीति और सामाजिक न्याय के क्षेत्र में सक्रिय हो गए। संयुक्त समाजवादी पार्टी द्वारा भूमिहिनों को खेती के लिए भूमि का पट्टा दिलाने तब राष्ट व्यापीय आंदोलन चलाया जा रहा था। इसमें सक्रिय भूमिका निभाई। और ग्राम खट्टा, पटेवा के भूमिहीन लोगों के लिए आंदोलन किया और बहुत कम उम्र में जेल जाना पड़ा। इस दौरान प्रताड़ित करने के लिए आंदोलनकारियों को रातभर तुमगांव थाना के हवालात में रखा गया। यातनाएं दी गई। और जेल में बंद कर दिया गया। भूमिहीनों के लिए बहुत कम उम्र में 15 दिवस का कारावास उन्होंने सेन्ट्रल जेल रायपुर में बिताया। जेल से छूटने पर वे राजनीति में सक्रिय हो गए। सन् 1971 में संयुक्त समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन पुणे (महाराष्ट्र) में हुआ। जहां वे अविभाजित रायपुर जिला के जिला प्रतिनिधि चुने गए। इस बीच लोकसभा के मध्यावधि चुनाव में संसदीय क्षेत्र महासमुन्द और रायपुर में सक्रिय होकर प्रचार अभियान में अहम भूमिका निभाई। सन् 1972 में विधानसभा क्षेत्र महासमुन्द में पुरुषोत्तम लाल कौशिक (अब स्वर्गीय) और पिथौरा विधानसभा क्षेत्र में जीवनलाल साव (अब स्वर्गीय) का सघन प्रचार किया। सन् 1974 में छत्तीसगढ़ में भयंकर सूखा अकाल पड़ा। तब अकाल पीड़ितों के लिए राहत की मांग को लेकर तहसील महासमुन्द में स्व. पुरूषोत्तम लाल कौशिक, स्व. जीवनलाल साव, स्व. जीवराखनलाल गुप्ता, स्व. भेंटलाल चन्द्राकर, स्व. बिसनलाल, स्व. नरसिंग गुरूजी, स्व. नाथूराम साहू, स्व. वीरेन्द्र दीपक, स्व. श्याम कुमार शर्मा, फजल हुसैन पाशा, शिव कुमार शर्मा आदि के साथ करीब पांच हजार किसानों का नेतृत्व करते हुए अकाल पीड़ितों के लिए धरना- प्रदर्शन किया। सन् 1974 में आरंग (जिला रायपुर) में अकाल पीड़ित किसानों पर मध्यप्रदेश सरकार ने धान लेव्ही की जबरिया वसूली का फरमान जारी कर दिया। इसके विरूद्ध किसानों के द्वारा एक माह तक लेव्ही विरोधी आंदोलन किया गया। अनेक किसानों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। पहले जत्थे का नेतृत्त्व करते हुए इनके पिता भूषण लाल चंद्रनाहू 50 अन्य किसानों के साथ जेल भेजे गए। तब आंदोलन को आगे बढ़ाने ललित चंद्रनाहू सक्रिय भागीदारी निभाते रहे। इस लेव्ही आंदोलन की चर्चा राष्ट्रीय स्तर पर हुई। इसी दौरान उन्हें संयुक्त समाजवादी पार्टी ने बड़ी जिम्मेदारी देते हुए पिथौरा क्षेत्र का महामंत्री बनाया।

किसान राइस मिल के दो बार रहे अध्यक्ष

सन् 1975 में 25 जून का वह काला दिन, जब सम्पूर्ण भारत में आपतकाल लागू किया गया। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय नेता स्व. मधु लिमये और महासमुन्द क्षेत्र के तत्कालीन विधायक स्व. पुरूषोत्तम कौशिक की गांधी चौक महासमुन्द में आमसभा थी। इस दौरान दोनों नेताओं की गिरफ्तारी हुई। वहां विषम परिस्थितियों को भांपते हुए जीवनलाल साव और श्री चंद्रनाहू भूमिगत हो गए। इसके सन् 1976 में किसान सहकारी राइस मिल मर्या. महासमुन्द के संचालक मण्डल के चुनाव में निर्विरोध संचालक और निर्विरोध अध्यक्ष चुने गए। निर्वाचित होने के कुछ ही दिनों पश्चात आपतकाल के कारण दण्ड प्रक्रिया संहिता 151 के तहत गिरफ्तार कर उन्हें सेन्ट्रल जेल रायपुर भेज दिया गया। उन्होंने 15 दिनों तक जमानत नहीं ली और राइस मिल के कार्यों में रुकावट होने पर जमानत लेकर रिहा हुए।

1977 के लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी के लोकसभा क्षेत्र रायपुर से पुरुषोत्तम कौशिक और महासमुन्द क्षेत्र से बृजलाल वर्मा चुनाव मैदान में थे। उनके पक्ष में सक्रिय प्रचार अभियान में अहम भूमिका निभाई। सन् 1978 में किसान सहकारी राइस मिल मर्या. महासमुन्द के संचालक मण्डल के चुनाव में पुनः निर्विरोध संचालक एवं अध्यक्ष निर्वाचित हुए। इसके साथ ही जिला सहकारी केंद्रीय बैंक मर्यादित रायपुर के सदस्य भी बने।

1980 में महासमुन्द विधानसभा चुनाव लड़े, कांग्रेस लहर में हारे

सन् 1980 में जनता पार्टी के विघटन से लोकदल का उदय हुआ। नवगठित लोकदल पार्टी से श्री चंद्रनाहू विधानसभा चुनाव मैदान में उतरे। तब कांग्रेस पार्टी और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पक्ष में लोकसभा और विधानसभा चुनाव में जबरदस्त लहर थी। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को दो तिहाई बहुमत प्राप्त हुआ और राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी जबरदस्त लहर थी। इसके चलते चंद्रनाहू को चुनाव में सफलता नहीं मिली। मध्यप्रदेश विधानसभा के तत्कालीन चुनाव में जनता पार्टी और लोकदल के प्रत्याशी जहां 15-20 हजार से अधिक वोटों से पराजित हुए। वहीं चंद्रनाहू महज 5000 वोट से भी कम मतों के अंतर से पराजित हुए थे। 1980 से 2004 तक नगर पालिका महासमुन्द कर्मचारी संघ के सर्वसम्मत अध्यक्ष रहे। कर्मचारियों के हित में निरंतर संघर्ष करते रहे। इस बीच वर्ष 2000 से 2004 तक नगरीय निकाय कर्मचारी संगठन के संभागीय संयोजक की जिम्मेदारी भी निभाई।

विद्याचरण के विकास सम्मेलन का विरोध, गिरफ्तार

सन् 1980 में मध्यप्रदेश में कांग्रेस पार्टी की सरकार थी। अर्जुन सिंह मुख्यमंत्री मनोनीत हुए। अर्जुनसिंह से राजनीतिक प्रतिद्वदिता के चलते विरोध प्रदर्शन करने के लिए, दिसम्बर 1980 में केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल ने महासमुन्द में विधायकों और कार्यकर्ताओं का संभागीय सम्मेलन आयोजित किया। जिसका नाम विकास सम्मेलन रखा गया। स्व. वी सी शुक्ल सन् 1962 से (सन् 1971 से 1977 को छोड़कर) लगातार लोकसभा क्षेत्र महासमुन्द के सांसद रहे। उनके कार्यकाल में क्षेत्र का विकास नगण्य था। इसलिए इस विकास सम्मेलन का जबरदस्त विरोध हुआ। प्रशासन के द्वारा ललित चन्द्रनाहू के नेतृत्व में 38 व्यक्तियों को गिरफ्तार कर सेन्ट्रल जेल रायपुर भेज दिया गया।

1981 में किसानों को पहली बार मिला धान पर 10 रुपये बोनस

सन् 1981 में धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि के लिए स्व. पुरुषोत्तम कौशिक, स्व. सुधीर मुखर्जी तत्कालीन विधायक रायपुर, स्व. रामलाल चन्द्राकर पूर्व राज्यमंत्री म.प्र, और ललित चन्द्रनाहू के नेतृत्व में कलेक्टर कार्यालय रायपुर में किसानों का प्रदर्शन हुआ। मूल्य वृद्धि के संघर्ष को आगे बढ़ाते हुए चन्द्रनाहू के द्वारा कृषि उपज मंडी महासमुन्द में किसानों का अखण्ड धरना प्रदर्शन हुआ। किसानों के धरना का छ.ग. के सभी कृषि मंडियों में विस्तार हो गया। संघर्ष के प्रभाव को समझते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह बलौदाबाजार के आमसभा में प्रति किटल धान पर 10 रू. बोनस देने की घोषणा किये और प्रदान भी किये। किसानों के उत्पाद पर राज्य सरकार के द्वारा बोनस प्रदान करने की यह प्रथम घटना थी। जो राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हुआ और यहां से किसानों को बोनस दिलाने की दिशा में लड़ाई की शुरुआत हुई। वर्ष 1998 से 2004 तक तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार द्वारा कृषि उत्पादों पर प्रति वर्ष, प्रति क्विंटल बीस रुपये मात्र की वृद्धि किया जाता रहा। इसमें वृद्धि की मांग निरन्तर करते रहे। तब 2004 में कांग्रेस की नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार में कृषि मंत्री शरद पवार के द्वारा गेंहू का समर्थन मूल्य 40 रुपये प्रति किंवटल की वृद्धि और 50 रुपये बोनस प्रदान किया गया। और धान के समर्थन मूल्य में केवल 10 रुपये की वृद्धि की गई। इसका विरोध करते हुए ज्ञापन सौंपने दिल्ली गए और तत्कालीन संसद सदस्य जार्ज फर्नाडीज, अजीत जोगी, रामाधार कश्यप, लालकृष्ण आडवाणी एवं शरद यादव आदि से मिलकर ज्ञापन सौंपा। उनसे सहयोग लेकर कृषि मंत्री पर दबाव बनाया गया। इस तरह से धान पर प्रति किंवटल 40 रूपये बोनस दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। केंद्र सरकार द्वारा धान पर दिया गया यह पहला बोनस था।

किसानों को मुआवजा दिलाने किया संघर्ष

सन् 1981 में शहीद वीरनारायण सिंह जलाशय (कोडार परियोजना) के डूबान क्षेत्र के कृषि भूमि को शासन के द्वारा प्रति एकड़ 2500 रुपये मुआवजा निर्धारित कर अधिग्रहण का आदेश जारी किया गया। जिसके विरुद्ध श्री चन्द्रनाहू के द्वारा किसानों के साथ संघर्ष कर प्रति एकड़ 3700-3900 रूपये निर्धारित करवाया गया। उसके बाद ग्राम पिरदा के किसानों को संगठित कर न्यायालय में प्रकरण प्रस्तुत करवाकर लंबी लड़ाई लड़ी। अंतत: कई वर्षों बाद न्यायालय के आदेश से अधिग्रहित भूमि का 45000 रूपये प्रति एकड़ मुआवजा निर्धारित हुआ।

एक करोड़ रूपये से अधिक का फर्जीवाड़ा प्रमाणित

कोडार परियोजना के डूबान क्षेत्र के ग्राम कोडार में मकान, बाड़ी, कोठा, घुरवा आदि के अधिग्रहण में भूमि अधिग्रहण अधिकारी कलेक्टर रायपुर, कोडार परियोजना के कार्यपालन अभियंता, सहायक एवं उपयंत्री के द्वारा व्यापक फर्जीवाड़ा किया गया। जिसकी जानकारी पत्रकार मनोहर शर्मा, ईश्वर शर्मा, दिलीप सोनी, जसराज जैन के द्वारा राजनीतिक नेताओं को दिया गया। लेकिन कोई भी तत्कालीन कांग्रेस सरकार और तत्कालीन रायपुर कलेक्टर अजीत जोगी के विरूद्ध आवाज उठाने को तैयार नहीं हुए। तब पत्रकारों के द्वारा ललित चन्द्रनाहू से संपर्क किया गया। श्री चन्द्रनाहू ने वस्तुस्थिति की गहन पड़‌ताल कर पत्रकारवार्ता में कलेक्टर और कांग्रेस पार्टी पर भ्रष्टाचार का गम्भीर आरोप लगाया। जिसे सभी समाचार पत्रों ने प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित किया। इस तरह से भ्रष्टाचार का एक बहुत ही गंभीर मामला उजागर हुआ। और जांच शुरू हुई।

मुआवजा मामले में भ्रष्टाचार की शिकायत जांच कार्यवाही के लिए सतर्कता आयोग मध्यप्रदेश के संभागीय कार्यालय रायपुर में ललित चन्द्रनाहू द्वारा लिखित शिकायत पत्र प्रस्तुत किया गया। इस दरम्यान सकर्तता आयोग मध्यप्रदेश का अवसान हो गया। और मध्यप्रदेश लोकायुक्त संगठन भोपाल का गठन किया गया। यह सतर्कता आयोग का अंतिम और लोकायुक का प्रथम प्रकरण था। जिसका प्रथम सूचना रिपोर्टकर्ता का रिकार्ड भी ललित चन्द्रनाहू के नाम पर दर्ज है। मध्यप्रदेश शासन के द्वारा कमिश्नर बिलासपुर कृपाशंकर शर्मा से इसकी जांच कराई गई। जांच में एक करोड़ रूपये से अधिक का फर्जीवाड़ा प्रमाणित पाया गया। जिसमें उत्कालीन कलेक्टर अजीत जोगी को भी दोषी ठहराया गया। लोकायुक्त के अपराध प्रकरण में आरोप दर्ज होने के विरूद्ध श्री जोगी उच्च न्यायालय जबलपुर में याचिका प्रस्तुत किए। जहां से उन्हें राहत मिल गयी। इस बीच श्री जोगी सन् 1996 में कलेक्टर पद से त्याग पत्र देकर कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर लिए। और मध्यप्रदेश से राज्यसभा के लिए सदस्य निर्वाचित हो गए।

ऐसे ढह गया महासमुन्द में समाजवादियों का गढ़

सन् 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या से देशभर में दंगा हुआ। इस दौरान हत्याएं, लूट-पाट व आगजनी की घटनाएं हो रही थी। महासमुन्द नगर में भी आगजनी एवं लूटपाट की अनेक घटना हुई। लूट-पाट व आगजनी की घटनाओं की रोकथाम करने और सद्भाव बनाने चंद्रनाहू जान जोखिम में डालकर जुटे रहे। इस बीच गुरुद्वारा में कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा आगजनी का प्रयास किया गया। इससे बचाने में श्री चंद्रनाहू ने अहम भूमिका निभाई। इसके साथ ही अनेक सिक्ख परिवारों को सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाया।

इंदिरा गांधी की हत्या उपरांत उनके पुत्र राजीव गांधी प्रधानमंत्री निर्वाचित हुए। उनके नेतृत्व में लोकसभा चुनाव 1984 में दो तिहाई से भी अधिक बहुमत कांग्रेस पार्टी को प्राप्त हुआ। लोकसभा क्षेत्र महासमुन्द से तब पुरूषोत्तम लाल कौशिक प्रत्याशी थे, उन्हें हार का सामना करना पड़ा। तब ललित चन्द्रनाडू उनके केन्द्रीय चुनाव संचालक थे।

हार का ठीकरा चुनाव संचालक पर फूटा। उपरांत 1995 में मध्यप्रदेश विधानसभा का चुनाव हुआ। जिसमें लोकदल के नेता स्व. कौशिक के द्वारा कार्यकर्ताओं के आग्रह के बावजूद ललित चन्द्रनाडू को प्रत्याशी घोषित नहीं किया गया। जिससे नाराज होकर दो तिहाई से भी अधिक कार्यकर्ता पार्टी से त्यागपत्र दे दिये। और समाजवादियों का गढ़ कहा जाने चला 'महासमुन्द गढ़' ढह गया।


सामाजिक सरोकार : आदिवासी समाज को मंदिर बनाने दी निजी जमीन

आदिवासी समाज को मंदिर निर्माण के लिए बनपचरी गांव में चंद्रनाहू ने 70 के दशक में एक एकड़ बहुमूल्य भूमि दान किया। साथ ही शिव मंदिर के पास हनुमान जी का मंदिर बनाकर समाज के सुपुर्द किया। छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद जोगी शासनकाल में वर्ष 2003 में महासमुन्द में भारी मात्रा में धार्मिक साहित्य को कट्टरपंथी संगठन द्वारा जलाया गया। जिसके विरोध में सदभावना समिति गठित कर राजेन्द्र सायल, इब्राहिम कुरैशी आदि के साथ मिलकर साहित्य जलाने वालों के विरूद्ध श्री चंद्रनाहू ने अपराध पंजीबद्ध कराया।

प्रशासन में कसावट लाने आरटीआई एक्टिविस्ट का मोर्चा संभाला

सन् 1986 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी की कार्यशैली से प्रभावित होकर ललित चंदनाहू कार्यकर्ताओं के साथ कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर लिए। उन्हें जिला कांग्रेस कमेटी रायपुर का प्रबंधकारिणी सदस्य मनोनीत किया गया। राजीव गांधी के द्वारा देश के किसानों को प्राकृतिक आपदाओं से राहत के लिए राष्ट्रीय फसल बीमा योजना प्रभावशील किया गया। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 तथा राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति करवाया गया। परंतु विपक्षी पार्टी के द्वारा सैन्य उपकरण बोफोर्स तोप खरीदी में राजीव गांधी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर संसद के दोनों सदनों का कार्य बाधित किया गया। संसद के गतिरोध को दूर करने सन् 1989 में लोकसभा का मध्यावधि चुनाव कराए जाने की घोषणा कर दी गई। चुनाव के पूर्व कांग्रेस पार्टी के पूर्व वित्त मंत्री वी. पी. सिंह के नेतृत्व में फिर कुछ पार्टीयों का विलय कर जनता दल का गठन किया गया। इस बीच शासकीय कार्यालयों में चन्द्रनाहू विभिन्न कामकाज के लिए पहुंचते थे। उन्होंने महसूस किया कि आगंतुकों के साथ अफसरों और बाबुओं द्वारा बेरुखीपूर्ण व्यवहार किया जाता है। छोटे-छोटे काम के लिए चक्कर लगवाया जाता है। तब उन्होंने संघर्ष का शंखनाद किया। बाद में वे आरटीआई एक्टिविस्ट बनकर प्रशासन में कसावट लाने निरंतर प्रयास करते रहे।

सर्वाधिक सक्रिय आरटीआई एक्टिविस्ट रहे हैं ललित

देशभर में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हो रहा था। इस बीच लोकपाल बिल की मांग की जाती रही। 2005 में सूचना का अधिकार कानून बना। इसके बाद श्री चंद्रनाहू आरटीआई एक्टिविस्ट बन गए। सूचना के अधिकार के तहत महासमुन्द जिले में सर्वाधिक जानकारी मांगने वाले सक्रिय एक्टिविस्ट का रिकार्ड भी इनके नाम है।

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