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छत्तीसगढ़ के संस्कृति में रचा बसा है सुआ गीत, अंचल में मची सुआ नृत्य की धूम

आरंग। इन दिनों अंचल के गांव-गांव में सुआ नृत्य की धूम मची है। दीपावली का पर्व पास आते ही बालिकाएं व महिलाएं घर घर,गली गली में समूह में पहुंचकर सुआ गीत के साथ नृत्य करती है। जिसमें अनेक धार्मिक और सामाजिक संदेश परक गीत गाकर गोल घेरा में तालियों की थपोलियों बजाकर नृत्य करती है। जिसमें कुछ बालिकाएं गीत गाती है जिसे शेष बालिकाएं दोहराती हुए नाचती है।


वही सुआ नृत्य के पश्चात एक बालिकाएं सुआ के लिए अन्न धन मांगती है।अन्न धन मिलने पर आशीर्वाद स्वरुप आशीष देती है।जानकार बताते हैं सुआ नृत्य की परंपरा कब से चली आ रही है इसकी कोई लिखित साक्ष्य नहीं है। सुआ एक शाकाहारी पक्षी है जो  हू बहू मनुष्य की आवाज निकाल सकती है। 

कुछ लोगों का कहना है पहले युवतियां अपनी मन की बातों को सुआ पक्षी के सामने प्रकट करती रही होंगी जो आगे चलकर गीत और बाद में नृत्य का रूप ली होंगी। सुआ नृत्य समूह में किया जाता है जिसमें किसी भी प्रकार के वाद्ययंत्रों की आवश्यकता नहीं  होती।सुआ नृत्य छत्तीसगढ़ की संस्कृति में रचा बसा है। दीपावली,तीजा,

छेरछेरा,शरद पूर्णिमा पर सुआ नृत्य विशेष रूप से की जाती है। पर अब विभिन्न अवसरों पर सुआ नृत्य होने लगी है। गांव गांव में सुआ नृत्य प्रतियोगिता आयोजित होने लगी है।वही नगर के पीपला फाउंडेशन द्वारा निर्मित महान् दानी राजा मोरध्वज की महिमा पर आधारित गीत को भी  बालिकाएं गाकर सुआ नृत्य करने लगी है। सती मंदिर पारा आरंग की सुआ दल नगर में प्रतिदिन गली मोहल्ले में सुआ नृत्य कर रही है। 

इस टीम की संचालिका चुन्नी यादव बताती है उनकी टीम हर वर्ष दीपावली के पूर्व नगर के गली मोहल्ले में सुआ नृत्य करती है।

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