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Charcha Chaurahe Par : मतदाता की बोली लग रही, चुनावी चंदा में बिचौलिया बट्टा, वर्दी वालों की पीड़ा भी जायज है जनाब

चर्चा चौराहे पर- भाग 03

# 'मतदाता' की बोली लग रही है !


छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में ऐसा लग रहा है, जैसे एक-एक वोट की बोली लग रही है। एक दल धान का समर्थन मूल्य 3100 रुपये देने की गारंटी देता है। दूसरा दल 3200 रुपये का वादा करता है। एक दल महिलाओं को 12000 रूपये सालाना देने की गारंटी देता है तो दूसरा दल 15000 रूपये वार्षिक सीधे बैंक खाते में जमा कराने का वादा । ऐसे ही अनेक लोक लुभावन वादे किए जा रहे हैं। 


चौराहे पर चर्चा चल रही थी कि हम 'मत दान' करने जा रहे हैं कि अपने 'वोट का सौदा'। एक-एक वोट को अपने पक्ष में करने जन सामान्य को रिझाने का यह कैसा तरीका है? यह कैसा लोकतंत्र है, जिसमें मत के लिए बोली लग रही है। यह भारतीय लोकतंत्र के भविष्य के लिए बड़ा खतरा नहीं है? नेता जब जनता को स्वार्थी बनाकर चुनाव जीतेंगे तो ईमानदारी से कैसे काम कर पाएंगे? अर्थव्यवस्था चरमराने पर पूरा बोझ मध्यमवर्गीय परिवार पर ही नहीं पड़ेगा? इस पर संवैधानिक संस्थाओं को संज्ञान लेने, आदर्श आचार संहिता में कड़े प्रावधान करने और इसके लिए विशिष्ट नीति निर्धारण की आवश्यकता नहीं है? क्या सोचते हैं आप?

# चुनावी चंदा में बिचौलिया बट्टा


एक राष्ट्रीय पार्टी के उम्मीदवार दुखी हैं। कारण बताया जा रहा है कि चुनावी चंदा में बिचौलिया बट्टा मार रहे हैं। चुनावी खर्च के लिए ऊपर से एक खोखा भेजा जाता है तो निकल रहा है 70 से 80 पेटी। उम्मीदवार की पीड़ा यह है कि वे जमीन बेचकर चुनाव लड़ रहे हैं। और नगदी की ट्रांसपोर्टिंग करने वाले 20 से 30 प्रतिशत तक बट्टा मार ले रहे हैं। पार्टी फण्ड में कई पेटी जमा करने के बाद बड़ी मुश्किल से तो टिकट मिली है। वर्षों की मेहनत से जोड़-जोड़कर रखे धन की राजनीतिक बलि चढ़ने से दुःखी नेताजी राजनीति से तौबा करने का सोच रहे हैं। इस चुनाव में जीत गए तो ठीक, वर्ना आजीवन टिकट नहीं मांगने का प्रण कर रहे हैं।  

# आम सभा के बहाने वसूली !

एक राष्ट्रीय दल के अंतरराष्ट्रीय नेता विजय संकल्प महारैली को संबोधित करने महासमुन्द आ रहे हैं। वसूलीबाजों की तो जैसे दीपावाली और होली साथ-साथ मन रही है। आमसभा के खर्चे के नाम पर उम्मीदवारों की जेब तो ढीली हो ही रही है। संगठन में हाई लेबल से अनेक खर्चे मैनेज हो ही रहा है। स्थानीय स्तर पर भी जमकर चंदा उगाही किए जाने की जानकारी मिल रही है। एक नेताजी 'स्वागत-अभिनंदन ' के लिए अखबारों में विज्ञापन के नाम पर चंदा मांगने अफसर के पास पहुंच गए। अफसर भी 'खाटी' निकले। दीपावली के दूसरे दिन अखबार नहीं आने के बहाने चंदा देने से बच निकले। चौराहे पर जब यह चर्चा चली तो एक कलमकार ने कहा- "हरामखोरी की हद हो गई। अब तो मीडिया का हिस्सा भी नेता गटक रहे हैं और डकार तक नहीं ले रहे हैं।"

# वर्दी वालों की पीड़ा भी जायज है जनाब


ऐसा कहा जाता है कि दीपावली पर पुलिस विभाग की चाँदी होती है। जुआ अड्डों पर छापेमारी से 'हींग लगे न फिटकरी और रंग चोखा' के तर्ज पर खूब ऊपरी कमाई हर साल होती है। इस साल चुनावी  सभा के लिए 'दाढ़ी वाले बाबा' के प्रवास के मद्देनजर वर्दी वालों की कमाई मार खा गई। सुरक्षा इंतजाम के नाम पर लक्ष्मी पूजा तक करने की फुर्सत नहीं। अब लक्ष्मी भी नहीं आयी, लक्ष्मी पूजा पर समय पर घर नहीं पहुँचे तो गृह लक्ष्मी का रुष्ट होना स्वाभाविक है। एक वर्दी वाले जनाब चौराहे पर रोना रो रहे थे- "इस दीवाली दिवाला निकल गया भाई। कभी नहीं भूलने वाली दीवाली है, जब बोहनी भी नहीं हुआ। उल्टा चुनावी चंदे का बट्टा अलग लग रहा है। बड़े साहब ने खर्चा मैनेज करने कहा है। समझ नहीं आ रहा है कि कैसे होगा?" 

-: Disclaimer :- 

इस कालम का संपादन वरिष्ठ पत्रकार व 'श्रीपुर एक्सप्रेस' और 'मीडिया24मीडिया' समूह के प्रधान संपादक श्री आनंदराम पत्रकारश्री कर रहे हैं। इसमें उल्लेखित तथ्यों की जानकारी संचार के विभिन्न माध्यमों, जन चर्चा और कानाफूसी पर आधारित है। व्यंग्यात्मक शैली में प्रस्तुत आलेख से किसी की भी मानहानि नहीं होगी, इसका विशेष ख्याल रखा गया है। आलेख में किसी व्यक्ति विशेष, संस्था अथवा दल विशेष पर कटाक्ष नहीं है। किसी घटना अथवा कड़ी का आपस में जुड़ जाना महज एक संयोग होगा। इस संबंध में कोई दावा-आपत्ति स्वीकार्य नहीं है। 

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