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अजय कांकरिया के इन आँखों से कोई देख सकेगा दुनिया, अजय : जो कभी नहीं हारे, वे मौत से कैसे हारे?

हमारी यादों में एक 'अजेय' समाजसेवी अजय कांकरिया


आनंदराम पत्रकारश्री.

नाम- अजय। उम्र- पचपन। दिल हमेशा बचपन का। वह दिल कैसे धोखा दे गया, जो दिल हरदम सेवा के लिए धड़कता था। कहा जाता है 'बचपन हर गम से बेगाना होता है।' पिता की मौत का इन्हें इतना गम था, कि हम सबको गमगीन कर चल दिए। दिल आज भी रो-रोकर पुकारता है-लौट आओ, अजय भैया। आप अजेय हैं, मौत आपको कैसे हरा सकती है। जाने की इतनी भी क्या जल्दी थी? अभी तो आपके सपनों के आरंग में अनेक रंग भरने बाकी है। कहा जाता है कि 'अजय' भगवान कृष्ण से जुड़ा हुआ एक नाम है। जिसका अर्थ है- जीवन और मृत्यु का विजेता। हमारा अजय मौत से कैसे हार सकते हैं। वे हमारे दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगे।
समाजसेवी स्व. अजय कांकरिया, संरक्षक-पीपला ग्रुप

काश ! हम उन्हें रोक पाते 


मुझे अच्छे से याद है 21 नवम्बर की वह शाम। माँ विद्या बीज भंडार आरंग में उनसे अंतिम मुलाकात हुई। उत्साह का वातावरण था। पीपला ग्रुप के साथी उल्लासमय वातावरण में एकत्रित हुए थे। मेरे जन्मदिन पर केक काटने की तैयारी कर रहे थे। इसी बीच अजय भैया के मोबाइल में कॉल आया। उन्होंने कहा- पिता जी को बालाघाट में माइनर अटैक आया है, मुझे जाना होगा। मैंने पूछा- अभी तत्काल जाना है? सुबह जल्दी से निकलूंगा, कहकर वे बैठ गए। हम कुछ और साथियों का इंतजार कर रहे थे। 5 मिनट के भीतर ही उन्होंने तीन बार कहा- "मुझे जल्दी जाना है, मैं निकलता हूँ, सफर बहुत लंबा है।" तब हमें जरा भी आभास नहीं हुआ कि यह उनसे अंतिम मुलाकात है। हमें क्या मालूम था कि वे अनंत यात्रा पर जा रहे हैं। काश ! हम उन्हें इस शरीर यात्रा को विश्राम देने से रोक पाते। अच्छा होता उन्हें हम ब्रम्हलीन होने से रोक पाते। विधि के विधान को कौन बदल सका है? जो हम बदल लेंगे। नतमस्तक होकर स्वीकार कर लेने की हम सब की विवशता है।
पीपला ग्रुप के सेवाभावी साथियों ने सजाई अंतिम सैय्या



कभी नहीं हारे, मौत से हारे


अजय कांकरिया जीवन में कभी हार नहीं माने। बड़ी से बड़ी विपत्ति आई, मुस्कुराकर टाल गए। संकटों का दौर आया, धैर्य रखा। सभी को समाज सेवा करने के लिए प्रेरित करते रहे। परिस्थितियों से कभी हार नहीं मानी। हमेशा तत्पर रहे। दुनिया को अलविदा कहने में भी इतनी तत्पर हो जाएंगे, सोचा नहीं था। जीवन में किसी से हार नहीं मानने वाले अजय, मौत से इतनी जल्दी हार मान गए? यकीन कर पाना कठिन है। 

देना ही जिनका स्वभाव था


धन तो बहुतों के पास है। धनवान भी बहुत मिल जाएंगे। समाज सेवा में दिल खोलकर देने वाले बिरले होते हैं। अजय भी वह दाता थे, जिनके भीतर दयालुता कूट-कूट कर भरी थी। कोई जरूरतमंद मिला नहीं कि मुट्ठी खुल जाती थी। हमने इनकी दानशीलता को बहुत करीब से देखा है। चाहे जरूरत मंद अपना हो, पराया हो। अमीर हो-गरीब हो, सभी की परेशानी में मदद करना इनकी विशेषता थी। उन्होंने अपने जीवनकाल में दानशीलता की अनेक मिसाल पेश किया। 

अजय की आँखों से कोई देख सकेगा दुनिया


जाते-जाते भी बहुत कुछ दे गए अजय। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई बार रक्तदान किया। अनेकों जरूरतमंद की आर्थिक मदद की। देह त्याग के बाद उनके परिजनों ने नेत्रदान कर उनकी अंतिम इच्छा पूरी किया। अजय ने नेत्रदान करने का संकल्प पत्र गत दिनों भरा था। आरंग नगर की समाजसेवी संस्था पीपला फाउंडेशन ने एक अनमोल रत्न खो दिया है। अजय की कमी कभी पूरी नहीं हो सकती है। हम सब के लिए अपूरणीय क्षति है। 


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