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आरंग और कलई के मध्य स्थित है नगर का एकमात्र श्रीगणेश मंदिर

आरंग। मंदिरों की नगरी आरंग में सैकड़ों मंदिर देवालय है। यहां कण कण में भगवान शिव विराजमान हैं।साथ शिवालयों में गौरी पुत्र गणेश जी की प्राचीन प्रतिमाएं भी नगर के विभिन्न मंदिरों में दर्शन करने सहज ही मिलता है। वही नगर के पश्चिम में आरंग और ग्राम कलई के मध्य में स्थित है नगर का एकमात्र श्रीगणेश जी की मंदिर।जो बहुत ही प्राचीन पाषाण से निर्मित है। ग्राम कलई निवासी 80 वर्षीय रामनाथ यादव बताते हैं श्रीगणेश जी की मंदिर कितनी पुरानी है इसकी वास्तविक जानकारी किसी को नहीं है। उनके दादा परदादा को भी यह गणेश जी की प्रतिमा कब की है नहीं बता पाए।


वहीं ग्रामीण  श्रीगणेश जी की प्रतिमा को करीब 800 सौ वर्ष पुरानी बताते है। प्रतिमा काफी पुरानी प्रतीत होती है। कुछ हिस्सा खंडित हो चुका है। प्रतिमा करीब 3 फिट ऊंची और डेढ़ फीट चौड़ी है।सिंदूर का काफी मोटा लेप लगा हुआ है।मंदिर डंगनिया तालाब किनारे पत्थर से निर्मित है।परिसर को बाद में ग्रामीणों ने जीर्णोद्धार कराया है। मंदिर से लगा हुआ बहुत पुरानी बेल का विशाल वृक्ष है। ग्रामीण बताते हैं 20/25 वर्ष पहले इस प्रतिमा को कुछ लोग कहीं ले जाने की कोशिश भी किए पर सफल नहीं हुए।


वहीं पीपला फाउंडेशन के संयोजक महेन्द्र पटेल ग्रामीणों से जानकारी लेकर बताया जब भी गांव में कोई शुभ व मांगलिक कार्य होता है। लोग श्रीगणेश जी का आशीर्वाद लेने जरूर आते हैं। आरंग से प्रतिदिन श्रद्धालु यहां पहुंचकर पूजा आराधना करते हैं।कुछ वर्ष पहले डंगनिया तालाब की सफाई के दरम्यान यहां कुछ प्राचीन अवशेष भी मिले हैं। जिसे ग्रामीणों ने संरक्षित कर मंदिर परिसर में रखे है। वहीं ग्रामीण इस मंदिर को भव्य रूप देने की मांग कर रहे हैं।

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