Responsive Ad Slot

Latest

latest


 

महाधिवेशन में राहुल गांधी बोले - यात्रा में हाथ पकड़ते ही लोगों का दर्द समझा

Document Thumbnail

रायपुर : छत्तीसगढ़ के रायपुर में आज कांग्रेस के महाधिवेशन का तीसरा और आखिरी दिन है। राहुल गांधी ने कांग्रेस महाधिवेशन को संबोधित करते हुए कहा कि चार महीने कन्याकुमारी से श्रीनगर तक भारत जोड़ो यात्रा हमने की। वीडियो में आपने मेरा चेहरा देखा, लेकिन मेरे साथ लाखों लोग चले थे। हर राज्य में चले। बारिश में गर्मी में, सर्दी में एक साथ हम सब चले। बहुत कुछ सीखने को मिला। अभी मैं जब वीडियो देख रहा था। मुझे बातें याद आ रही थीं। वीडियो में आपने देखा होगा। पंजबा में एक मेकानिक आकर मुझ से मिला। मैंने उसके हाथ पड़के और सालों की जो तपस्या थी उसकी। सालों का जो दर्द था, जैसे ही मैंने उसके हाथ पकड़े, हाथों से मैंने उसकी बात पहचान ली। वैसे ही लाखों किसानों के साथ जैसे हाथ पकड़ते थे, जैसे ही गले लगते थे। एक ट्रांसमिशन सा हो जाता था। शुरूआत में बोलने की जरूरत होती थी। क्या करते हो, कितने बच्चे हैं। क्या मुश्किलें है। यह एक डेढ़ महीना चला। उसके बाद बोलने की जरूरत नहीं पड़ती थी। जैसे ही हाथ पकड़ा, गले लगे, सन्नाटे में एक शब्द नहीं बोला जाता था। मगर जो उनका दर्द था, उनकी मेहनत थी, एक सेकेंड में मुझ समझ आ जाया करती थी। उनसे जो मुझे कहना होता था बिना कुछ बोले वह समझ जाते थे।

राहुल गांधी ने कहा, अभी मैंने देखा आपने वह बोटरेज देखी होगी केरल में। उस समय मैं जब मैं नाव में बैठा था। पूरी टीम के साथ था, मेरे पैर में भयंकर दर्द था। मैं उस फोटो में मुस्कुरा रहा हूं, लेकिन उस समय मुझे रोना आ रहा था। इतना दर्द था। मैंने यात्रा शुरू की काफी फिट आदमी हूं। 10-12 किलोमीटर ऐसे ही दौड़ लेता हूं। घमंड था, मैंने सोचा था कि 10-12 किलोमीटर चल लेता हूं। तो 20-25 किलोमीटर चलने में कौन सी बड़ी बात है। मेरे दिमाग में यह बात थी। पुरानी इंजनरी थी। कॉलेज में चोट लगी थी फुटबॉल खेलते समय। मैं दोड़ रहा था कि मैरे दोस्त में पीछे अड़ंगी मार दी और घुटने में चोट लगी। दर्द गायब हो गया था सालों के लिए। और अचानक जैसे मैंने यात्रा शुरू की दर्द वापस आ गया। आप मेरे परिवार हो तो मैं आप से कह सकता हूं। सुबह उठता, सोचता था कि कैसे चला जाए, फिर उसके बाद सोचता था कि 25 किलोमीटर नहीं, 3500 किलोमीटरर चलना है कैसे चलूंगा। और फिर कंटेनर से उतरता था और चलना शुरू करता था। लोगों से मिलता तो पहले 10-15 दिन में जिसको अहंकार कह सकते हो, घमंड कह सकते हो वह सारा गायब हो गया। क्यों गायब हुआ? क्योंकि भारत माता ने मुझे मैसेज दिया कि देखो अगर तुम कन्याकुमारी से कश्मीर चलने निकले हो तो अपने दिल से अहंकार मिटा, घमंड मिटाओ नहीं तो मत चलो। मुझे यह बात सुननी पड़ी, मुझमें इतनी शक्ति नहीं थी कि मैं इस बात को ना सुनूं। और धीरे-धीरे मैंने यह ध्यान दिया कि मेरी आवाज चुप होती गई। पहले किसान से मिलता था मैं उसको अपने ज्ञान समझाने की कोशिश करता था, थोड़ी बहुत मुझमें जो जानकारी है, खेती के बारे में, मनरेगा के बारे में खाद के बारे में, मैं कहने की कोशिश करता था। धीरे-धीरे यह सब बंद हो गया। शांति सी आ गई। और सन्नाटे में सुनने लगा। यह धीरे-धीरे बदलाव आया। और जब मैं जम्मू-कश्मीर पहुंचा तो मैं बिलकुल चुप हो गया।

कांग्रेस सांसद ने आगे कहा, मैं मंच पर बैठीं हैं, मैं छोटा सा था 1977 की बात है। चुनाव आया, मुझे चुनाव के बारे में मालूम नहीं था। मैं 6 साल का था। एक दिन घर में अजीब सा माहौल था। मैं मां के पास गया, मैंने मां से पूछा कि मां क्या हुआ? मां ने कहा कि हम घर छोड़ रहे हैं। तब तक मैं सोचता था कि मैं सोचता था कि वह घर हमारा था। मैंने अपनाी मां से पूछा कि मां हम अपने घर को क्यों छोड़ रहे हैं? पहली बार मेरी मां ने मुझे बताया कि यह घर हमारा नहीं है। यह सरकार का घर है, अब हमें यहां से जाना है। मैंने मां से पूछा कि हमें कहां जाना है। उन्होंने कहा कि नहीं मालूम कहां जाना है? मैं हैरान हो गया। मैंने सोचा था कि वह हमारा घर था। 52 साल हो गए मेरे पास घर नहीं है। आज तक घर नहीं है। हमारे परिवार का जो घर है। वह इलाहाबाद में है। वह भी हमारा घर नहीं है। तो घर होता है उसके साथ मेरा अजीब सा रिश्ता है। मैं 12 तुगलक लेन में रहता हूं। लेकिन मेरे लिए वह घर नहीं है। जब मैं निकला कन्याकुनारी से निकला, मैंने अपने आप से पूछा कि मेरी जिम्मेदारी क्या बनती है। अब मैं चल रहा हूं भारत का दर्शन करने निकला हूं, हजारों लाख लोग निकले हैं।

Don't Miss
© Media24Media | All Rights Reserved | Infowt Information Web Technologies.