छत्तीसगढ़ राज्य का सबसे बड़ा संभाग बस्तर है। बस्तर संभाग के अंतर्गत 7 जिले आते हैं, जिनमें बस्तर, कांकेर, कोंडागांव, दंतेवाड़ा, बीजापुर, सुकमा और नारायणपुर जिला शामिल है। पूरे बस्तर संभाग को अनुसूचित क्षेत्र घोषित किया गया है। यहां आदिवासियों की विभिन्न जातियां निवास करती है। ये जनजातियां सभी हिंदू त्यौहारों को पूरे उल्लास के साथ मनाती है। इसके साथ ही इन जनजातियों के अपने अलग-अलग त्योहार भी है।
आदिवासी अपना सबसे बड़ा त्योहार नवाखानी को मनाते हैं। आदिवासियों के नवाखानी त्योहार के बारे में नारायणपुर जिले के वरिष्ठ साहित्यकार शिवकुमार पांडेय बताते हैं कि बस्तर का सबसे बड़ा त्योहार नवा खानी आज पूरे बस्तर में गोंडवाना समाज मना रहा है । इस त्योहार को बड़े ही सुंदर अंदाज में धार्मिक स्वरूप भी दिया गया है। इसकी शुरुआत मंडा देव के नवा खाने से शुरू होता है।
निमंत्रण देने के लिए निकलती है 2 से 3 टोली
मंडा देव परगना के देव को कहा जाता है। यह गोत्र देवता भी होते हैं। मंडा देव के नया खाने के लिए समुदाय के लोग एक बैठक करते हैं। बैठक में परगना के अंतर्गत आने वाले देवताओं को निमंत्रण देने के लिए 2-3 टोली निकलती है। इसे पेन जोड़ींग कहा जाता है। यह मंडा देव के मंदिर में तीज के दिन जिस दिन महिलाएं अपने पति के दीर्घायु के लिए उपवास रखती हैं, उस दिन पहुंचते हैं और मंदिर में ही रात्रि विश्राम करते हैं। इनके साथ गांव से मिले हुए खाने पीने का सामान होता है, उसे उस दिन पका कर खाते हैं।
धान की बाली और खीर की जाती है अर्पित
दूसरे दिन सब देवता जो परगना के अंतर्गत आते हैं मंडा देव के मंदिर पहुंचते हैं। वहां परगना के माटी गांयता के द्वारा धान की बाली मंडा देव में अर्पित की जाती है और नए चावल से खीर बनाकर मंडा देव में चढ़ाया जाता है। इसे गोंडी में बाल कहा जाता है मंडा देव में बाल और धान की बाली अर्पित करने के बाद आना कुड़मा में खीर और धान की बाली अर्पित की जाती है।
एक साथ बैठकर खाते हैं खाना
आना कुड़मा गांव के बहुसंख्यक एक गोत्र के लोगों का पित्र देव का स्थान होता है, यहां के बाद गांव देवती स्थल में माटी माता को खीर और बाल यानी धान की बाली अर्पित की जाती है। इसके बाद दूसरे दिन गांव भर के लोग एक साथ अपने-अपने घर में नवा खाने का उत्सव मनाते हैं। यहां भी खीर बनाई जाती है। नए चावल का और धान की बाली नुकांग अड़का में अर्पित करने के बाद एक खानदान के लोग एक साथ बैठते हैं सबको नए चावल का खीर परोसा जाता है उसको सबसे पहले वे लोग टीका लगाते हैं और फिर सेवन करते हैं। इसे ही नवा खाने का त्योहार कहा जाता है।