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गिरफ्तारी के बाद भी खत्म नहीं होते सारे अधिकार, जिला जज ने दी अधिकारों की जानकारी

दुर्ग जिला-सत्र न्यायाधीश राजेश श्रीवास्तव, अतिरिक्त जिला न्यायाधीश भानु प्रताप सिंह त्यागी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से बताया कि पुलिस जब गिरफ्तारी कर लेती है तो इसका मतलब ये नहीं है कि गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के सारे अधिकार खत्म हो गए और वह मुजरिम बन गए बल्कि अभी भी उसके काफी अधिकार है, जिनके बारे में उसे जानना चाहिए ताकि उसके कानूनी अधिकारों का उल्लंघन न हो। 


भारतीय संविधान द्वारा भारत के नागरिकों को कुछ मूल अधिकार प्रदान किए हैं, जिनमें स्वतन्त्रता का अधिकार भी शामिल है। संविधान के अनुच्छेद 21 में नागरिकों के प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का मूल अधिकार दिया है। गिरफ्तारी की दशा में गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के अधिकार और गिरफ्तारी की प्रक्रिया को समझना आवश्यक है तभी नागरिकों के मौलिक अधिकार की रक्षा की जा सकती है। भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता 1973 में गिरफ्तारी की प्रक्रिया बताई गई, जिसमें गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के अधिकार और गिरफ्तारी करने बाले पुलिस अधिकारी के अधिकार और कर्तव्य बताए गए हैं।

 महिला कॉन्स्टेबल की उपस्थिति महिला की गिरफ्तारी

गिरफ्तारी करने वाले पुलिस अधिकारी का कर्तव्य होगा कि वह अपने नाम का टोकन धारण करें और गिरफ्तार किए गए व्यक्ति का गिरफ्तार पंचनामा तैयार करे, जिस पर दो व्यक्तियों और गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के हस्ताक्षर कराएगा। गिरफ्तार करते समय गिरफ्तार किए गए व्यक्ति का कोई रिश्तेदार मौजूद नहीं है तो गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को अविलंब ऐसी गिरफ्तारी की सूचना देगा। एक महिला को सिर्फ एक महिला कॉन्स्टेबल की उपस्थिति में गिरफ्तार किया जाना चाहिए और सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद कोई भी महिला गिरफ्तार नहीं की जानी चाहिए। 

कानून का उल्लंघन

ये सिर्फ तभी हो सकता है जब व्यक्ति को गिरफ्तार करना बेहद जरूरी है। पुलिस अधिकारी गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तार करते के 24 घंटे में  के अंदर  मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करेगा। CRPC की धारा 41 के मुताबिक पुलिस किसी भी व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है। अगर  वह भारत के किसी भी कानून का उल्लंघन कर चुका है या करने वाला है या करने की तैयारी कर रहा है, लेकिन ऐसी गिरफ्तारी के लिए भी पुलिस के लिए कुछ नियम है और गिरफ्तार व्यक्ति के कुछ अधिकार है, जिसका पालन करना आवश्यक है। 

कानूनी प्रक्रिया 

पुलिस किसी को भी अपनी मनमर्जी  तरीके से गिरफ्तार नहीं कर सकती बल्कि उसे गिरफ्तारी के लिए पूरी कानूनी प्रक्रिया अपनानी होती है। अन्यथा गिरफ्तारी गैरकानूनी मानी जाती है। अगर कोई पुलिस किसी को गैरकानूनी तरीके से गिरफ्तार करती है तो यह न सिर्फ भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता का उल्लंघन माना जाता है, बल्कि यह स्थिति भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20, 21और 22 में दिए गए मौलिक अधिकारों के भी खिलाफ है। लिहाजा मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर पीड़ित पक्ष संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट जा सकता है।

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