Responsive Ad Slot


 

Showing posts with label rakshabandhan muhurta. Show all posts
Showing posts with label rakshabandhan muhurta. Show all posts

Raksha Bandhan 2021 : इस साल रक्षाबंधन पर नहीं है भद्रा का साया, बहनें दिनभर बांध सकेंगी भाइयों को राखी

No comments Document Thumbnail

रक्षा बंधन का त्योहार हर भाई-बहन के जीवन का महत्वपूर्ण दिन होता है। बहनों को भाइयों की कलाई में रक्षा का धागा बांधने का बेसब्री से इंतजार होता है। रक्षा बंधन का पर्व भाई-बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक है। इस दिन बहनें भाई की कलाई में राखी बांधती हैं और मुंह मीठा कराती हैं, इसके बाद भाई बहनों को स्नेह जताने के लिए उपहार देते हैं और उनकी रक्षा का वचन देते हैं। यह त्योहार मनाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है।



आमतौर पर इस तिथि पर लोगों को भद्राकाल और राहुकाल का विशेष ध्यान रखना होता है। इन काल में शुभ कार्य वर्जित होते हैं, इसलिए भद्राकाल और राहुकाल में किसी को राखी नहीं बंधवानी चाहिए। लेकिन राहत की बात है कि इस साल भद्रा का साया राखी पर नहीं है। भद्रा काल राखी के अगले दिन 23 अगस्त की सुबह 05:34 बजे से 06:12 बजे तक रहेगी। ऐसे में 22 अगस्त को पूरे दिन राखी बंधवाई जा सकती है।


राखी बांधने का मुहूर्त  


  • रक्षाबंधन की तिथि : रविवार 22 अगस्त
  • पूर्णिमा  21 अगस्त शाम 3:45 बजे से शुरू
  • पूर्णिमा  22 अगस्त की शाम 05:58 बजे समापन
  • शुभ मुहूर्त : सुबह 05:50 बजे से शाम 06:03 बजे तक 
  • रक्षाबंधन की समयावधि: : कुल 12 घंटे और 11 मिनट
  • भद्रा काल : 23 अगस्त सुबह 05:34 बजे से 06:12 बजे।



हर साल यह त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस साल रक्षाबंधन 22 अगस्त दिन रविवार को मनाया जाएगा। राखी बांधने के लिए शुभ मुहूर्त 21 अगस्त 2021 की शाम को ही शुरू हो जाएगा, लेकिन उदया तिथि 22 अगस्त को है, इसलिए इसी दिन बहनें भाई को राखी बांधेंगी। रक्षाबंधन के दिन बहनें थाली सजाती है। राखी की थाली सजाते समय रेशमी वस्त्र में केसर, सरसों, चंदन, चावल और दुर्वा रखकर भगवान की पूजा करनी चाहिए। राखी (रक्षा सूत्र) को भगवान शिव की प्रतिमा, तस्वीर या शिवलिंग पर अर्पित करें। फिर, महामृत्युंजय मंत्र का एक माला (108 बार) जप करें। इसके बाद देवाधिदेव शिव को अर्पित किया हुआ रक्षा-सूत्र भाइयों की कलाई पर बांधें। महाकाल भगवान शिव की कृपा, महामृत्युंजय मंत्र और श्रावण सोमवार के प्रभाव से सब शुभ होगा।


शुभ कार्यों की शुरुआत तिलक के साथ


रक्षाबंधन पर पूजा की थाली में कुमकुम, हल्दी, चावल, नारियल, रक्षा सूत्र,  मिठाई,  दीपक और गंगा जल से भरा कलश रखना जरूरी बताया गया है। इनमें कई चीजों के पीछे पौराणिक मान्यताएं हैं तो कुछ आध्यत्मिक रूप से जरूरी हैं। कुमकुम पूजा की सबसे पहली सामग्री है, जो थाली में अनिवार्य रूप से होनी चाहिए। मान्यताओं के मुताबिक शुभ कार्यों की शुरुआत तिलक के साथ होनी चाहिए।


पूजा की थाली में नारियल का बेहद महत्व 


थाली में चावल का इस्तेमाल होता है, चावल को अक्षत कहा गया है यानी जो अधूरा ना हो। यह शुक्र ग्रह से संबंधित होने से जीवन में सुख सुविधाओं का दाता है। माना जाता है कि तिलक-चावल लगाने से भाई के जीवन में हमेशा सुख सुविधाएं बढ़ती रहेंगी। इसके अलावा पूजा की थाली में नारियल का बेहद महत्व है, क्योंकि तिलक करने के बाद बहन भाई के बाद हाथ में नारियल दे देती है, श्रीफल यानी लक्ष्मी फल होने के चलते इसे सुख-समृद्धि का प्रतीक माना गया है।


रक्षाबंधन का इतिहास 


रक्षाबंधन की शुरुआत का सबसे पहला साक्ष्य रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूं हैं। मध्यकालीन युग में राजपूत और मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था। रानी कर्णावती चितौड़ के राजा की विधवा थीं। उस दौरान गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख रानी ने हुमायूं को राखी भेजी थी। तब हुमायूं ने उनकी रक्षा कर उन्हें बहन का दर्जा दिया था। असल में रक्षाबंधन की परंपरा ही उन बहनों ने डाली थी जो सगी नहीं थीं। भले ही उन बहनों ने अपने संरक्षण के लिए ही इस पर्व की शुरुआत क्यों न की हो लेकिन उसी बदौलत आज भी इस त्योहार की मान्यता बरकरार है। इतिहास के पन्नों को देखें तो इस त्योहार की शुरुआत की उत्पत्ति लगभग 6 हजार साल पहले बताई गई है। इसके कई साक्ष्य भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं।



इतिहास का एक और उदाहरण कृष्ण और द्रोपदी को माना जाता है। कृष्ण भगवान ने दुष्ट राजा शिशुपाल को मारा था। युद्ध के दौरान कृष्ण के बाएं हाथ की अंगुली से खून बह रहा था। इसे देखकर द्रोपदी बेहद दुखी हुईं और उन्होंने अपनी साड़ी का टुकड़ा चीरकर कृष्ण की अंगुली में बांधा जिससे उनका खून बहना बंद हो गया। तभी से कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन स्वीकार कर लिया था। सालों बाद जब पांडव द्रोपदी को जुए में हार गए थे और भरी सभा में उनका चीरहरण हो रहा था तब कृष्ण ने द्रोपदी की लाज बचाई थी।

Don't Miss
© Media24Media | All Rights Reserved | Infowt Information Web Technologies.