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नक्सलियों ने जिन महिलाओं के जीवन को किया बेरंग, वही महिलाएं हर्बल गुलाल बनाकर लोगेां के जीवन में ला रही खुशहाली

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 रायपुर : बीजापुर जिले के नक्सल प्रभावित पंचायत भैरमगढ़ के शिविर में रहने वाली कई महिलाओं की जिंदगी को जहां नक्सलियों ने बेरंग कर दिया था। अपनी जान बचाने के लिए इन महिलाओं ने अपना गांव छोड़ दिया और अब हर्बल गुलाल बनाकर लोगों की जिंदगी में रंग घोल रही हैं। यह काम ये महिलाएं पिछले पांच सालों से बिना किसी परेशानी के कर रही हैं और आने वाले सालों में इसे करने की बात कह रही हैं।


बीजापुर जिले के भैरमगढ़़ में बिहान कार्यक्रम के अंतर्गत माँ दुर्गा महिला स्व सहायता समूह की महिलएं पिछले पांच सालों से हर्बल गुलाल बनाकर आत्मनिर्भर बन रही हैं। इस बार बीजापुर के लोग इनके बनाए हर्बल रंगों और गुलाल से होली खेलेंगे। इन महिलाओं के बनाए हर्बल गुलाल की डिमांड भी काफी अधिक है। कई लोग इनको गुलाल का ऑर्डर भी दे रहे हैं। इधर जनपद पंचायत सीईओ पुनीत राम साहू ने बताया कि महिलाओं को हर्बल गुलाल बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। जिसका फायदा उठाते ये महिलाएं पिछले पांच सालों से गुलाल बनाकर बाजार में बेचकर इसका फायदा उठा रही हैं। हर साल करीब 50 किलो से ज्यादा गुलाल बेचकर अपने परिवार का भरण भोषण कर रही हैं। इस समय इस समूह में 10 महिलाएं हैं।

अलग-अलग फूलों से तैयार हो रहा हर्बल गुलाल

इस स्वसहायता समूह की महिलाएं होली के लिए अलग-अलग फूलों और सब्जियों से रंग तैयार कर रही हैं। ये महिलाओं पालक भाजी, लाल भाजी, टेसू के फूल, गेंदा फूलों से हर्बल गुलाल तैयार कर रहीं है। इन महिलाओं को पहले से ही प्रशासन की ओर से ट्रेनिंग दी गई है। पिछले पांच सालों में अब तक ये महिलाएं तकरीबन 150 किलो गुलाल बेच चुकी हैं.। खास बात यह है कि ये हर्बल गुलाल लोगों के चेहरे पर नुकसान नहीं पहुंचाता। यही कारण है कि लोग पहले से ही इसका ऑर्डर दे कर हर्बल गुलाल मंगवा रहे हैं। विकास खंड परियोजना प्रबंधक रोहित सोरी ने बताया कि समूह की महिलाएं इतामपार गांव जो इंद्रावती नदी के उस पार वहां की रहने वाली है। नक्सल हिंसा के चलते इन महिलाओं ने गांव को छोड़ दिया है और इस समय भैरमगढ़ के शिविर कैँप में रह रही हैं। इन महिलाओं को जिला प्रशासन के द्वारा रहने की सुविधा दी गई है। सोरी ने बताया कि इसके अलावा ये महिलाएं अलग- अलग व्यसाय कर जीवन यापन कर रही हैं।

हर्बल गुलाल की मांग ज्यादा

स्व सहायता समूह की अध्यक्ष फगनी कवासी और सचिव अनीता कर्मा ने बताया कि पहले हर्बल गुलाल बनाने की ट्रेनिंग जिला प्रशासन द्वारा दी गई थी। यहां बनाया गए रंग पूरी तरह से प्राकृतिक हैं। हम फूल की पंखुड़ियां, पालक भाजी, लाल भाजी,हल्दी, बेसन पलाश के फूलों से अलग-अलग रंग तैयार कर रहे हैं। हमारे बनाए हर्बल गुलाल की डिमांड भी काफी ज्यादा है। इसके चलते हम पिछले पांच सालों से यह काम कर रहे हैं। महिलाओं ने बताया कि जिला पंचायत के साथ ही मार्केट में भी जगह-जगह स्टॉल लगाकर इनका गुलाल बेचा जा रहा है। इससे अच्छी आमदनी भी हो रही है।

महासमुंद : मंदिरों में चढ़े फूलों से बना रही सुगंधित हर्बल गुलाल

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 महासमुंद : होली के त्योहार पर एक दूसरे को तरह तरह के रंग लगाकर उत्साह से सभी परिवार के साथ पर्व मनाते हैं। महासमुंद जिले के ग्राम डोकरपाली बिहान से जुड़ी जय माता दी की स्व सहायता समूह की महिलाओं द्वारा हर्बल गुलाल तैयार किया जा रहा है। हर्बल गुलाल तैयार लगाने से चेहरे पर कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है। महिलाओं द्वारा तैयार किए जा रहे इन हर्बल गुलाल की कई विशेषताएं हैं। इसमें रंग और सुगंध के लिए फूलों का ही इस्तेमाल किया जाता है। किसी भी तरह का केमिकल नहीं मिलाया जाता है, ताकि चेहरे को कोई नुकसान न हो सके।


 समूह की सदस्य चित्ररेखा दीवान ने बताया कि पिछले साल होली में 80 किलो हर्बल गुलाल महिलाओं ने बनाया था। जिससे 30 से 40 हजार रुपए की आमदनी समूह को हुई थी।  होली के पर्व के समय बाजार में गुलाब की काफ़ी माँग बनी रहती है। उन्होंने कहा कि 10 रुपये, 20 और 50 रुपए के हर्बल गुलाल के पैकेट बाजार में आसानी से विक्रय हो जाता है।

 गुलाल बनाने के लिए पालक, लालभाजी, हल्दी, जड़ी, बुटी व फूलों से हर्बल गुलाल बनाने का कार्य कर रही। इसके अलावा मंदिरों तथा फूलों के बाजार से निकलने वाली इस्तेमाल किए हुए फूल पत्तियों को सुखाकर प्रोसेसिंग यूनिट में पीसकर गुलाल तैयार किया जाता है। गुलाब, गेंदे, स्याही फूल के साथ चुकंदर, हल्दी, आम और अमरूद की हरी पत्तियां को भी प्रोसेस किया जाता है। इस बार भी लगभग 60 किलोग्राम गुलाल तैयार कर लिया गया है। जिसमें से आधी मात्रा बिक गई है। गुलाल अनेक रंगों में बनाए जा रहे है जिसमें हरा, गुलाबी, पीला, केसरिया गुलाल शामिल है।


हर्बल गुलाल से स्व सहायता समूह की महिलाएं दे रही सुरक्षित होली का सन्देश

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रायपुर। हर्बल गुलाल शुद्ध प्राकृतिक तत्वों से निर्मित एवं केमिकल रहित होने की वजह से इसकी डिमांड लगातर बढ़ रही हैं। इसको देखते हुए पूरे प्रदेश में स्व-सहायता समूह की महिलाओं के द्वारा इसका निर्माण एवं विक्रय किया जा रहा है। कोंडागांव जिले के ग्राम आलोर के मां शीतला स्व-सहायता समूह की महिलाओं द्वारा निर्मित हर्बल गुलाल की मांग हर साल बढ़ती जा रही है। समूह द्वारा वर्ष 2021 में 3 क्विंटल हर्बल गुलाल का उत्पादन किया गया था, इससे उन्हें 31 हजार रुपये की आमदनी हुई थी। 

हर्बल गुलाल की डिमांड को देखते हुए वर्ष 2022 में 4 क्विंटल हर्बल गुलाल का उत्पादन किया गया, इससे उन्हें 40 हजार रुपये का लाभ हुआ था। इस साल समूह की महिलाओं के द्वारा पांच क्विंटल हर्बल गुलाल का उत्पादन किया है। उन्हें पूरी उम्मीद है कि इससे समूह को 50 हजार रूपए से ज्यादा की आमदनी होगी। हर्बल गुलाल की बिक्री से समूह को अब तक 10 हजार रुपये तक की आय हो चुकी है। मां शीतला स्व-सहायता समूह को इस सफलता के लिए राज्य स्तर पर भी सम्मानित किया जा चुका है।

गतवर्ष की तरह इस वर्ष भी कृषि विज्ञान केंद्र व राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन बिहान के संयुक्त प्रयास से ग्राम आलोर के मां शीतला स्व-सहायता समूह की महिलाओं को हर्बल गुलाल बनाने का प्रशिक्षण दिया गया। समूह की महिलाओं द्वारा गुलाल बनाने हेतु वर्ष भर वनों में जाकर प्राकृतिक रंजक जैसे पलास, धवई, सिंदूर, मेहँदी, पत्तियां तथा बाजार से चुकंदर, लाल भाजी, पालक, हल्दी एवं गुलाब जल आदि का संग्रहण कर, होली के एक माह पूर्व से हर्बल गुलाल उत्पादन करना प्रारंभ कर दिया जाता हैं। 

समूह के मास्टर ट्रेनर एवं वैज्ञानिक कृषि विज्ञान केंद्र डॉ. हितेश मिश्रा ने ‘‘मेरी होली सुरक्षित होली‘‘ का नारा देते हुए बताया कि समूह की महिलाएं पूर्ण रूप से जैविक तत्वों से बने हर्बल गुलाल का उत्पादन कर रही हैं। जो हमारे शरीर को किसी भी तरह से नुकसान नहीं पहुंचाती है। बाजार में खतरनाक रसायनों से बना गुलाल जिससे त्वचा में एलर्जी, आंखों में इंफेक्शन, दमा, अस्थमा, खुजली, सिरदर्द जैसे कई प्रकार की समस्याएं होने की संभावना होती है। जबकि हर्बल गुलाल से त्वचा को शीतलता प्राप्त होती है और इससे किसी प्रकार का साइड इफैक्ट भी नहीं होता है।


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