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छत्तीसगढ़ : राजस्व मंत्री ने पीएम आवास के हितग्राही को कराया गृह प्रवेश

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 रायपुर।  राजस्व एवं आपदा प्रबंधन मंत्री टंकराम वर्मा हरेली त्यौहार के पावन अवसर पर विकासखंड बलौदाबाजार के ग्राम सकरी में प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना के हितग्राही को नवनिर्मित आवास का फीता काटकर गृह प्रवेश कराया। उन्होंने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत सुंदर मकान बनाने पर गिरजाशंकर एवं उसके परिवार को शुभकामनायें दी। उन्होंने नवनिर्मित मकान के आंगन में कटहल और अमरुद के पेड़ लगाए। इस अवसर पर पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल, पूर्व संसदीय सचिव डॉ सनम जांगड़े, कलेक्टर दीपक सोनी, सीईओ जिला पंचायत दिव्या अग्रवाल उपस्थित थे।


पेशे से राज मिस्त्री हितग्राही गिरजाशंकर ने बताया कि पहले कच्चा मकान था। जिसमें कई प्रकार की परेशानी का सामना करना पड़ता था। पक्का मकान का सपना था, लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। इसी बीच वर्ष 2020- 21 में प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना अंतर्गत आवास स्वीकृत हुआ। पहली किश्त मिलने पर मकान बनाना शुरू किया तीन किश्त में कुल एक लाख बीस हजार रुपये मिले। उन्होंने बताया कि कुछ अपना पैसा लगाकर घर को थोड़ा बड़ा बना लिया। गिरजाशंकर ने बताया कि उनकी पत्नी बुद्धेश्वरी वर्मा को महतारी वंदन योजना के तहत हर माह एक हजार रूपये मिल रहा है। प्रधानमंत्री उज्जवला योजना का भी लाभ मिला है।

मंत्री वर्मा ने ग्राम सकरी के अमृत सरोवर में जय माँ अन्नपूर्णा स्व-सहायता समूह की महिलाओं द्वारा मछली पालन की शुरुआत सरोवर में मछली बीज डालकर किया। उन्होंने मछली पालन को लाभ का व्यवसाय बताते हुए महिलाओं को बेहतर ढंग से मछली पालन करने कहा। महिलाओं ने बताया कि वे इस सरोवर में पहली बार मछली पालन करने जा रही है। मछली पालन विभाग द्वारा अभी 65- 70 नग रोहु, कतला और मृगल मछली प्रतिकात्मक रूप से दिया गया है। कुछ दिन बाद विभाग द्वारा करीब 5000 मछली बीज़ (फिंगर लिंग) दिया जाएगा।

विशेष लेख : हरेली तिहार से खेती-किसानी के साथ-साथ छत्तीसगढ़िया ओलंपिक की होगी शुरूआत

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रायपुर। छत्तीसगढ़ में हरेली त्यौहार का विशेष महत्व है। हरेली छत्तीसगढ़ का पहला त्यौहार है। इस त्यौहार से ही राज्य में खेती-किसानी की शुरूआत होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह त्यौहार परंपरागत् रूप से उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन किसान खेती-किसानी में उपयोग आने वाले कृषि यंत्रों की पूजा करते हैं और घरों में माटी पूजन होता है। गांव में बच्चे और युवा गेड़ी का आनंद लेते हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पहल पर लोक महत्व के इस पर्व पर सार्वजनिक अवकाश भी घोषित किया गया है। इससे छत्तीसगढ़ की संस्कृति और लोक पर्वों की महत्ता भी बढ़ गई है। 

लोक संस्कृति इस पर्व में अधिक से अधिक लोगों को जोड़ने के लिए छत्तीसगढ़िया ओलंपिक की भी शुरूआत की जा रही है। छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा राज्य के परंपरागत तीज-त्यौहार, बोली-भाखा, खान-पान, ग्रामीण खेलकूद को बढ़ावा देने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। मुख्यमंत्री की पहल पर राज्य शासन के वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग ने लोगों तक गेड़ी की उपलब्धता के लिए जिला मुख्यालयों में स्थित सी-मार्ट में किफायती दर में गेड़ी बिक्री के लिए व्यवस्था की है। परंपरा के अनुसार वर्षों से छत्तीसगढ़ के गांव में अक्सर हरेली तिहार के पहले बढ़ई के घर में गेड़ी का ऑर्डर रहता था और बच्चों की जिद पर अभिभावक जैसे-तैसे गेड़ी भी बनाया करते थे। वन विभाग के सहयोग से सी-मार्ट में गेड़ी किफायती दर पर उपलब्ध कराया गया है, ताकि बच्चे, युवा गेड़ी चढ़ने का अधिक से अधिक आनंद ले सके।

मुख्यमंत्री की पहल पर पिछले वर्ष शुरू की गई छत्तीसगढ़िया ओलंपिक को काफी लोकप्रियता मिली। इसको देखते हुए इस बार हरेली तिहार के दिन शुरू होने वाली छत्तीसगढ़िया ओलंपिक 2023-24 को और भी रोमांचक बनाने के लिए एकल श्रेणी में दो नए खेल रस्सीकूद एवं कुश्ती को भी शामिल किया गया है। हरेली पर्व के दिन से ही प्रदेश में छत्तीसगढ़िया ओलंपिक खेल की शुरूआत भी होने जा रही है, जो सितंबर के अंतिम सप्ताह तक जारी रहेगा। हरेली पर्व के दिन पशुधन के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए औषधियुक्त आटे की लोंदी खिलाई जाती है। गांव में यादव समाज के लोग वनांचल जाकर कंदमूल लाकर हरेली के दिन किसानों को पशुओं के लिए वनौषधि उपलब्ध कराते हैं। गांव के सहाड़ादेव अथवा ठाकुरदेव के पास यादव समाज के लोग जंगल से लाई गई जड़ी-बूटी उबाल कर किसानों को देते हैं। इसके बदले किसानों द्वारा चावल, दाल आदि उपहार में देने की परंपरा रही हैं।

सावन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को हरेली पर्व मनाया जाता है। हरेली का आशय हरियाली ही है। वर्षा ऋतु में धरती हरा चादर ओड़ लेती है। वातावरण चारों ओर हरा-भरा नजर आने लगता है। हरेली पर्व आते तक खरीफ फसल आदि की खेती-किसानी का कार्य लगभग हो जाता है। माताएं गुड़ का चीला बनाती हैं। कृषि औजारों को धोकर, धूप-दीप से पूजा के बाद नारियल, गुड़ का चीला भोग लगाया जाता है। गांव के ठाकुर देव की पूजा की जाती है और उनको नारियल अर्पण किया जाता है। हरेली तिहार के साथ गेड़ी चढ़ने की परंपरा अभिन्न रूप से जुड़ी हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग सभी परिवारों द्वारा गेड़ी का निर्माण किया जाता है। परिवार के बच्चे और युवा गेड़ी का जमकर आनंद लेते है। गेड़ी बांस से बनाई जाती है। दो बांस में बराबर दूरी पर कील लगाई जाती है।

एक और बांस के टुकड़ों को बीच से फाड़कर उन्हें दो भागों में बांटा जाता है। उसे नारियल रस्सी से बांध़कर दो पउआ बनाया जाता है। यह पउआ असल में पैर दान होता है  जिसे लंबाई में पहले कांटे गए दो बांसों में लगाई गई कील के ऊपर बांध दिया जाता है। गेड़ी पर चलते समय रच-रच की ध्वनि निकलती हैं, जो वातावरण को औैर आनंददायक बना देती है। इसलिए किसान भाई इस दिन पशुधन आदि को नहला-धुला कर पूजा करते हैं। गेहूं आटे को गंूथ कर गोल-गोल बनाकर अरंडी या खम्हार पेड़ के पत्ते में लपेटकर गोधन को औषधि खिलाते हैं। ताकि गोधन को विभिन्न रोगों से बचाया जा सके। गांव में पौनी-पसारी जैसे राऊत व बैगा हर घर के दरवाजे पर नीम की डाली खोंचते हैं। गांव में लोहार अनिष्ट की आशंका को दूर करने के लिए चौखट में कील लगाते हैं। यह परम्परा आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यमान है।

हरेली के दिन बच्चे बांस से बनी गेड़ी का आनंद लेते हैं। पहले के दशक में गांव में बारिश के समय कीचड़ आदि हो जाता था उस समय गेड़ी से गली का भ्रमण करने का अपना अलग ही आनंद होता है। गांव-गांव में गली कांक्रीटीकरण से अब कीचड़ की समस्या काफी हद तक दूर हो गई है। हरेली के दिन गृहणियां अपने चूल्हे-चौके में कई प्रकार के छत्तीसगढ़ी व्यंजन बनाती है। किसान अपने खेती-किसानी के उपयोग में आने वाले औजार नांगर, कोपर, दतारी, टंगिया, बसुला, कुदारी, सब्बल, गैती आदि की पूजा कर छत्तीसगढ़ी व्यंजन गुलगुल भजिया व गुड़हा चीला का भोग लगाते हैं। इसके अलावा गेड़ी की पूजा भी की जाती है। शाम को युवा वर्ग, बच्चे गांव के गली में नारियल फेंक और गांव के मैदान में कबड्डी आदि कई तरह के खेल खेलते हैं। बहु-बेटियां नए वस्त्र धारण कर सावन झूला, बिल्लस, खो-खो, फुगड़ी आदि खेल का आनंद लेती हैं।

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