महासमुंद। छत्तीसगढ़ के लिए स्वास्थ्य विभाग (Latest Health Updates)की बड़ी चुनौतियां में से एक सिकलसेल बीमारी है I लेकिन सरकार अब सिकलसेल प्रबंधन कार्यक्रम में प्वाइंट ऑफ केयर ( विशेष जांच तकनीक) अपनाकर सिकलसेल रोगियों की पहचान करेगी। इसी क्रम में महासमुंद जिले में नई तकनीक से जांच प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आई.सी. एम. आर) द्वारा प्रमाणित विधि से सिकल सेल की जांच करने वाला छत्तीसगढ़ पहला राज्य बन चुका है। यह सिकलसेल प्रबंधन में बड़ी कामयाबी है। यह पायलट प्रोजेक्ट दुर्ग, सरगुजा, दंतेवाड़ा, कोरबा और महासमुंद जिले में संचालित किया जाना है। जिसकी शुरूआत महासमुंद जिले में भी कर दी गई है। अब जांच के कुछ मिनटों में ही सिकलसेल रोगी या वाहक की जानकारी मिल सकेगी जबकि पहले कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता था। महासमुंद जिले के सभी ब्लॉक मितानिन प्रशिक्षिकों को सिकल सेल जांच के लिए चुना गया है।
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महासमुंद बसना ब्लॉक में 13 जनवरी से 15 जनवरी तक जांच हुई। मितानिन प्रशिक्षिका आरती डडसेना ने भैयाखुरी, बाराडोली, मनेकेरा गांव के बच्चों की किट के जरिए जांच कर सिकलसेल रोगी या वाहक की पहचान की। ब्लॉक समन्वयक मितानिक कार्यक्रम, महासमुंद जागृति बरेठा ने बताया जिले में सिकलसेल के मरीजों की संख्या काफी थी। जिसे देखते हुए स्वास्थ्यमंत्री के निर्देशानुसार पायलट प्रोजेक्ट (Latest Health Updates) के तहत जिले के पांच ब्लॉक में नई विशेष किट से जांच की जा रही है। सभी ब्लॉक अपने-अपने क्षेत्रानुसार निर्धारित तारीख के अनुसार जांच कर रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि पहले सिकलसेल की जांच के लिए खून के नमूने को सुरक्षित तरीके से प्रयोगशाला लाना पड़ता था। कई प्रक्रिया करने के बाद सिकलसेल मरीजों की पहचान होती थी। मगर मलेरिया जांच किट के समान ही राज्य सरकार को प्वाइंट ऑफ केयर तकनीक पोर्टेबल किट उपलब्ध करवाया गया है। प्वाइंट ऑफ केयर तकनीक पोर्टेबल है। यह आसानी से कहीं भी ले जाई जा सकती हैI मलेरिया किट की तरह इससे जांच का नतीजा कुछ मिनट में आ जाएगाI
मुंबई के विशेषज्ञों ने दिया प्रशिक्षण (Latest Health Updates)
स्वास्थ्यकर्मियों को जांच के लिए प्रशिक्षण इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च मुंबई के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनो हिमेटोलॉजी के विशेषज्ञों ने पायलेट प्रोजेक्ट वाले जिलों के स्वास्थ्यकर्मियों को प्रशिक्षण दे रहे हैं। जमीनी स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण लगभग पूरा हो चुका है और किट के जरिए सिकल सेल जांच शुरू हुआ है।
सिकलसेल यूनिट में होती है निःशुल्क चिकित्सा-
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में स्थित सिकलसेल संस्थान में सिकलसेल से पीड़त मरीजों का निशुल्क इलाज होता है। संस्थान का उद्देश्य सिकल सेल रोगियों की पहचान कर मरीज को निशुल्क इलाज के लिए नवीनतम तथा आधुनिक चिकित्सा सुविधा प्रदान करना है। सिकलसेल संस्थान में सिकल सेल रोगियों की सभी प्रकार की जांच एवं उपचार तथा दवाएं भी निशुल्क प्रदान की जाती हैं।
क्या है सिकलसेल -
विशेषज्ञ बताते हैं सिकल सेल एक अनुवांशिक रोग है। यह माता पिता से बच्चों में हस्तांतरित होता है। इसमें लाल रक्त कोशिकाओं में आक्सीजन की कमी हो जाती है और सेल का आकार गोल नहीं बन पाता है। इसकी वजह से यह आधे चांद या फिर हंसिए की तरह दिखने लगता है। इसलिए इसे सिकल (हंसिया) सेल कहा जाता है। सिकल सेल का बच्चे की ग्रोथ पर बुरा असर पड़ सकता है। उसका शारीरिक विकास धीमा हो सकता है। बाकी बच्चों की तुलना में थोड़ा कमजोर होता है और उसकी इम्युनिटी सिस्टम पर ही इसका बुरा असर पड़ता है। संक्रमित होने की आशंका बढ़ जाती है।