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दंतेवाड़ा पहला जिला जहां मिलेगी वायरोलॉजी लैब की सुविधा

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रायपुर। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल दूरस्थ और दुर्गम क्षेत्रों में लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए विशेष प्रयास कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य, शिक्षा, कुपोषण, स्व-रोजगार के क्षेत्र में होगा चहुंमुखी विकास किया जा रहा है। बस्तर संभाग के दन्तेवाड़ा ऐसा पहला जिला चिकित्सालय जहां पर वायरोलॉजी लैब की सुविधा प्रारंभ होने जा रही है। इससे पूर्व भी मुख्यमंत्री के घोषणानुसार जिला चिकित्सालय में सिटीस्केन की सुविधा शुरू हो गई है, जिसका लाभ दूर-दूर के ग्रामीणजन उठा रहे हैं। अपातकालीन स्थिति में लोगों को सिटीस्केन की सुविधा जिला चिकित्सालय में मिल रही है। अब जगदलपुर जैसे बड़े शहरों में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। मरीजों को यह सुविधा घर के नजदीक मिलने लगी है।

वायरोलॉजी लैब  के स्थापना के पश्चात् जिला चिकित्सालय में हेपेटाइटिस बी एवं सी  का जांच किया जाएगा। पहले हेपेटाइटिस जांच के पश्चात् मरीजों का रैपिड टेस्ट में पॉजिटिव होने पर जांच के लिए एम्स भेजा जाता था। जहां रिपोर्ट आने में माह भर का समय लग जाता था। निजी लैब संस्थानों में यह जांच कराने में लगभग 10 से 15 हजार रूपए की राशि खर्च हो जाती थी किन्तु अब दंतेवाड़ा जिला चिकित्सालय के वायरोलॉजी लैब में यह जांच निःशुल्क की जाएगी। जिससे मरीजों को फायदा मिलेगा और महीने भर का इंतेजार भी नहीं करना पड़ेगा। रिपोर्ट शीघ्र ही मिल जाएगी। मुख्य चिकित्सा स्वास्थ्य अधिकारी ने बताया कि बस्तर संभाग में यह पहला जिला चिकित्सालय होगा, जहां वायरोलॉजी लैब की सुविधा प्रारंभ होने जा रही है।

मुख्यमंत्री बघेल ने तेन्दू से बने आइसक्रीम को चखकर स्वाद की सराहना की

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रायपुर। फाल्गुन मंडई कार्यक्रम में पहुंचे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आज जिला प्रशासन दंतेवाड़ा के नवाचार पहल के तहत तेंदू फल से निर्मित आइसक्रीम का भी स्वाद लिया। मुख्यमंत्री ने उसके स्वाद की प्रशंसा करते हुए इसे एक सराहनीय पहल बताया। उल्लेखनीय है कि जिला प्रशासन, दन्तेवाड़ा के सहयोग से इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के मार्गदर्शन में कृषि विज्ञान केन्द्र दन्तेवाड़ा द्वारा मौसमी तेंदू के फल से आइसक्रीम बनाने का कार्य किया जा रहा है।

तेंदू का पेड़ लघु वनोपज के श्रेणी में आता है। इसके पत्तियों को बीडी बनाने के उपयोग में लाया जाता है, जो कि बस्तर में हरा सोना के नाम से प्रचलित है। यह भारत के पूर्वी हिस्सों एवं मध्य भारत में बहुतायत में पाया जाता है। अभी तक व्यावसायिक रूप से इसके पत्तियों का उपयोग किया जाता रहा है व फल का उपयोग ग्रामीण जन अपने खाने में तथा उसी मौसम में लोकल बाजारों में ही बेच कर आय प्राप्त करते है। ताजा पके फल को सुरक्षित रखने की अवधि बहुत कम होती है। अगर ताजे फल के गुदा को प्रसंस्करण कर माईनस 20-40 डिग्री सेल्सियस तापमान पर रखते है तो पूरे वर्ष भर तेन्दू फल का स्वाद लिया जा सकता है।

जिसके तारतम्य में कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा तेंदू फल का प्रसंस्करण कर आइसक्रीम व तेन्दू शेक बनाने संबंधी नवाचार का कार्य प्रारंभ किया गया है। तेन्दू फल में किये गये अनुसंधान के अनुसार तेन्दू फल एक प्रभावी एन्टीआक्सीडेंट, रेशे का अच्छा स्त्रोत, हृदय रोग के लिये लाभदायक तथा मधुमेह को नियंत्रित करने में सहायक है। साथ ही इस फल में पोटेशियम, कैल्शियम, फास्फोरस एवं अन्य खनिज तत्व अच्छी मात्रा में पायी जाती है।


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