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विशेष लेख : आइए इस हरेली धरती माँ का श्रृंगार करें, एक पेड़ मां के नाम लगाएं

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 डॉ. दानेश्वरी संभाकर, सहायक संचालक


रायपुर : छत्तीसगढ़ की संस्कृति अपनी अति विशिष्ट परंपराओं और पर्वों के लिए जानी जाती है और हर पर्व, प्रकृति के पीछे गहरे समर्पण की मिसाल देता है। हरियाली को लेकर ऐसा ही दुर्लभ पर्व हरेली है, जब पूरी धरती हरीतिमा की चादर ओढ़ लेती है। धान के खेतों में रोपा लग जाता है और खेतों में चारों ओर प्रकृति अपने सुंदर नजारे में अपने को व्यक्त करती है। धरती माता का पूरा स्नेह पृथ्वीवासी या हर जीव-जन्तु पर उमड़ता है और इस स्नेह के प्रतिदान के लिए हम हरेली में प्रकृति को पूजते हैं। इस बार हरेली पर्व पर एक और खुशी हमारे प्रदेशवासियों के साथ जुड़ रही है। प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी ने एक पेड़ माँ के नाम पर लगाने के अभियान का आगाज किया है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ में यह अभियान पूरे उत्साह से चल रहा है। मुख्यमंत्री ने हरेली के अवसर पर लोगों से पेड़ लगाने की अपील की है। यह पेड़ वे अपनी माँ के नाम लगाएंगे साथ ही धरती माँ के नाम लगाएंगे, जो धरती हमें इतना कुछ देती है, उसके श्रृंगार के लिए पौधा लगाएंगे और सहेजेंगे। यह पौधा हमारी हरेली की स्मृतियों को सुरक्षित रखने के लिए भी यादगार होगा। साथ ही प्रदेश भर में जहां भी खुले मैदानों में पौधरोपण के आयोजन होंगे वहां लोग गेड़ी का आनंद भी लेंगे। अपनी प्रकृति और परिवेश से जुड़ने और इसे समृद्ध करने से बढ़कर सुख और क्या होगा।

छत्तीसगढ़ का पहला लोक पर्व हरेली
छत्तीसगढ़ का सबसे पहला लोक पर्व हरेली है, जो लोगों को छत्तीसगढ़ की संस्कृति और आस्था से परिचय कराता है। हरेली का मतलब हरियाली होता है, जो हर वर्ष सावन महीने के अमावस्या में मनाया जाता है। हरेली मुख्यतः खेती-किसानी से जुड़ा पर्व है। इस त्यौहार के पहले तक किसान अपनी फसलों की बोआई या रोपाई कर लेते हैं और इस दिन कृषि संबंधी सभी यंत्रों नागर, गैंती, कुदाली, फावड़ा समेत कृषि के काम आने वाले सभी तरह के औजारों की साफ-सफाई कर उन्हें एक स्थान पर रखकर उसकी पूजा-अर्चना करते हैं। घर में महिलाएं तरह-तरह के छत्तीसगढ़ी व्यंजन खासकर गुड़ का चीला बनाती हैं। हरेली में जहाँ किसान कृषि उपकरणों की पूजा कर पकवानों का आनंद लेते हैं, आपस में नारियल फेंक प्रतियोगिता करते हैं, वहीं युवा और बच्चे गेड़ी चढ़ने का मजा लेते हैं।

हरेली के दिन गांव में पशुपालन कार्य से जुड़े यादव समाज के लोग सुबह से ही सभी घरों में जाकर गाय, बैल और भैंसों को नमक और बगरंडा का पत्ता खिलाते हैं। हरेली के दिन गांव-गांव में लोहारों की पूछपरख बढ़ जाती है। इस दिन गांव के लोहार हर घर के मुख्य द्वार पर नीम की पत्ती लगाकर और चौखट में कील ठोंककर आशीष देते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से उस घर में रहने वालों की अनिष्ट से रक्षा होती है। इसके बदले में किसान उन्हे दान स्वरूप स्वेच्छा से दाल, चावल, सब्जी और नगद राशि देते हैं। ग्रामीणों द्वारा घर के बाहर गोबर से बने चित्र बनाते हैं, जिससे वह उनकी रक्षा करे।

हरेली से तीजा तक गेड़ी दौड़ का आयोजन
हरेली त्यौहार के दिन गांव के प्रत्येक घरों में गेड़ी का निर्माण किया जाता है, मुख्य रूप से यह पुरुषों का खेल है घर में जितने युवा एवं बच्चे होते हैं उतनी ही गेड़ी बनाई जाती है। गेड़ी दौड़ का प्रारंभ हरेली से होकर भादो में तीजा पोला के समय जिस दिन बासी खाने का कार्यक्रम होता है उस दिन तक होता है। बच्चे तालाब जाते हैं स्नान करते समय गेड़ी को तालाब में छोड़ आते हैं, फिर वर्षभर गेड़ी पर नहीं चढ़ते हरेली की प्रतीक्षा करते हैं। चूंकि वर्षा के कारण गांव के कई जगहों पर कीचड़ भर जाता है, इस समय गेड़ी पर बच्चे चढ़कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर आते जाते हैं उसमें कीचड़ लग जाने का भय नहीं होता। बच्चे गेड़ी के सहारे कहीं से भी आ जा सकते हैं। गेड़ी का संबंध कीचड़ से भी है। कीचड़ में चलने पर किशोरों और युवाओं को गेड़ी का विशेष आनंद आता है। रास्ते में जितना अधिक कीचड़ होगा गेड़ी का उतना ही अधिक आनंद आता है। वर्तमान में गांव में काफी सुधार हुआ है गली और रास्तों पर काम हुआ है। अब ना कीचड़ होती है ना गलियों में दलदल। फिर भी गेड़ी छत्तीसगढ़ में अपना महत्व आज भी रखती है। गेड़ी में बच्चे जब एक साथ चलते हैं तो उनमें एक दूसरे से आगे जाने की इच्छा जागृत होती है और यही स्पर्धा बन जाती है। बच्चों की ऊंचाई के अनुसार दो बांस में बराबर दूरी पर कील लगाते हैं और बांस के टुकड़े को बीच में फाड़कर दो भाग कर लेते हैं, फिर एक सिरे को रस्सी से बांधकर पुनः जोड़ देते हैं इसे पउवा कहा जाता है। पउवा के खुले हुए भाग को बांस में कील के ऊपर फंसाते हैं पउवा के ठीक नीचे बांस से सटाकर 4-5 इंच लंबी लकड़ी को रस्सी से इस प्रकार बांधते है, जिससे वह नीचे ना जा सके लकड़ी को घोड़ी के नाम से भी जाना जाता है। गेड़ी में चलते समय जोरदार ध्वनि निकालने के लिए पैर पर दबाव डालते हैं जिसे मच कर चलना कहा जाता है।

नारियल फेंक प्रतियोगिता
नारियल फेंक बड़ों का खेल है इसमें बच्चे भाग नहीं लेते। प्रतियोगिता संयोजक नारियल की व्यवस्था करते हैं, एक नारियल खराब हो जाता है तो तत्काल ही दूसरे नारियल को खेल में सम्मिलित किया जाता है। खेल प्रारंभ होने से पूर्व दूरी निश्चित की जाती है, फिर शर्त रखी जाती है कि नारियल को कितने बार फेंक कर उक्त दूरी को पार किया जाएगा। प्रतिभागी शर्त स्वीकारते हैं, जितनी बार निश्चित किया गया है उतने बार में नारियल दूरी पार कर लेता है तो वह नारियल उसी का हो जाता है। यदि नारियल फेंकने में असफल हो जाता है तो उसे एक नारियल खरीद कर देना पड़ता है। नारियल फेंकना कठिन काम है इसके लिए अभ्यास जरूरी है। पर्व से संबंधित खेल होने के कारण बिना किसी तैयारी के लोग भाग लेते है।

बस्तर क्षेत्र में हरियाली अमावस्या पर मनाया जाता है अमुस त्यौहार
छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में ग्रामीणों द्वारा हरियाली अमावस्या पर अपने खेतों में औषधीय जड़ी-बूटियों के साथ तेंदू पेड़ की पतली छड़ी गाड़ कर अमुस त्यौहार मनाया जाता है। इस छड़ी के ऊपरी सिरे पर शतावर, रसना जड़ी, केऊ कंद को भेलवां के पत्तों में बांध दिया जाता है। खेतों में इस छड़ी को गाड़ने के पीछे ग्रामीणों की मान्यता यह है कि इससे कीट और अन्य व्याधियों के प्रकोप से फसल की रक्षा होती है। इस मौके पर मवेशियों को जड़ी बूटियां भी खिलाई जाती है। इसके लिए किसानों द्वारा एक दिन पहले से ही तैयारी कर ली जाती है। जंगल से खोदकर लाई गई जड़ी बूटियों में रसना, केऊ कंद, शतावर की पत्तियां और अन्य वनस्पतियां शामिल रहती है, पत्तों में लपेटकर मवेशियों को खिलाया जाता है। ग्रामीणों का मानना है कि इससे कृषि कार्य के दौरान लगे चोट-मोच से निजात मिल जाती है। इसी दिन रोग बोहरानी की रस्म भी होती है, जिसमें ग्रामीण इस्तेमाल के बाद टूटे-फूटे बांस के सूप-टोकरी-झाड़ू व अन्य चीजों को ग्राम की सरहद के बाहर पेड़ पर लटका देते हैं। दक्षिण बस्तर में यह त्यौहार सभी गांवों में सिर्फ हरियाली अमावस्या को ही नहीं, बल्कि इसके बाद गांवों में अगले एक पखवाड़े के भीतर कोई दिन नियत कर मनाया जाता है।

नई दिल्ली में दिखेगी छत्तीसगढ़ की संस्कृति और परंपराओं की झलक

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रायपुर । छत्तीसगढ़वासियों को नया “छत्तीसगढ़ निवास” तोहफ़े में मिलेगा। नई दिल्ली द्वारका के सेक्टर 13 में बने इस नए छत्तीसगढ़ निवास का मुख्यमंत्री भूपेश बघेल 27 सितम्बर को अपने निवास कार्यालय से इसका वर्चुअल उद्घाटन करेंगे। नवनिर्मित छत्तीसगढ़ निवास भवन की कुल लागत लगभग 60 करोड़ 42 लाख रुपये है। भवन में 61 कमरे, 13 सूट है जो की आधुनिकतम सुविधाओं से सुसज्जित है।


पिछले तीन सालों में विभिन्न बाधाओं (जिसमें कोरोना काल) को पार कर छत्तीसगढ़ के निवासियों की सेवा के लिये देश की राजधानी दिल्ली के द्वारका में एक नवनिर्मित “छत्तीसगढ़ निवास” तैयार किया गया है। विभिन्न सरकारी गैर सरकारी कार्य एवं चिकित्सा हेतु छत्तीसगढ़ से दिल्ली जाने वाले निवासियों की सुविधा हेतु इसकी परिकल्पना मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने की थी।


हालांकि, पहले से छत्तीसगढ़ शासन के दो भवन “छत्तीसगढ़ भवन “चाणक्यपुरी व “छत्तीसगढ़ सदन“ सफ़दरजंग हॉस्पिटल के पास नई दिल्ली में अवस्थित है। परंतु आधुनिक एवं छत्तीसगढ़ की बढ़ती हुई आवश्यकता की पूर्ति के लिए तीसरे भवन की आवश्यकता काफी दिनों से महसूस की जा रही थी।

मुख्यमंत्री बघेल ने तीन वर्ष पूर्व इसका शिलान्यास किया था। इसके लिए नई दिल्ली के द्वारका में नये “छत्तीसगढ़ निवास“ के निर्माण की परिकल्पना की गई और इसकी आधारशिला 19 जून 2020 को मुख्यमंत्री ने वर्चुअल शिलान्यास कर रखी थी। यह पहला मौका है कि जब पहली बार इस प्रकार की महत्वपूर्ण अत्याधुनिक भवन का निर्माण छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ से बाहर सफलतापूर्वक सम्पन्न की गई है, जो छत्तीसगढ़ के विकास के लिए एक मील का पत्थर है।

“छत्तीसगढ़ निवास“ भवन की खासियत

लोक निर्माण विभाग के अधिकारी ने बताया कि, छत्तीसगढ़ निवास के निर्माण के लिए 43 हजार 803 वर्गफीट भूमि 22.50 करोड़ रुपए में क्रय की गई है। नवा छत्तीसगढ़ निवास छत्तीसगढ़ संस्कृति और परंपराओं की स्पष्ट झलक दे रहा है। इसमें 13 स्यूट रूम, 61 कमरे, डायनिंग हॉल एंड वेटिंग सहित मीटिंग हॉल और कर्मचारियों के लिए आवासीय टावर का निर्माण किया गया है। भवन के निर्माण में पर्यावरण का भी ख्याल रखा गया है।

प्राइम लोकेशन- नवनिर्मित छत्तीसगढ़ निवास द्वारका के प्राइम लोकेशन में स्थित है। इसके आस-पास भव्य माल, फ़ाइव स्टार होटल, ख़ूबसूरत पार्क, नया उत्तर प्रदेश भवन, अरुणाचल भवन, दिल्ली का सबसे बड़ा इस्कॉन टेंपल आदि के अलावा कनेक्टिविटी की दृष्टि से भी इसकी लोकेशन शानदार है। मात्र 13-15 मिनट में आप कनॉट प्लेस पहुँच सकते हैं। द्वारका सेक्टर 13 का मेट्रो इस नवनिर्मित भवन के पास में ही है।

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