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गृह मंत्रालय का NGO के लिए नोटिस: कहा - धर्मांतरण, विकास विरोधी गतिविधि पर लाइसेंस रद्द होंगे

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 नई दिल्ली । केंद्रीय गृह मंत्रालय ने घोषणा की है कि ऐसे किसी भी एनजीओ का एफसीआरए लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा, जो विकास विरोधी गतिविधियों, धर्मांतरण या दुर्भावनापूर्ण इरादे से विरोध-प्रदर्शन भड़काने में शामिल है या फिर जिसके आतंकवादी या कट्टरपंथी समूहों के साथ संबंध हैं।


आधिकारिक वेबसाइट पर सोमवार को अपलोड किए गए नोटिस में गृह मंत्रालय ने कहा कि जिन एनजीओ के विदेशी चंदा स्वीकार करने से सामाजिक या धार्मिक सद्भाव प्रभावित हो सकता है या जो प्रेरित या जबरन धर्मांतरण में शामिल हैं, विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (एफसीआरए), 2010 के तहत उनका पंजीकरण भी रद्द कर दिया जाएगा।

मंत्रालय ने कहा कि किसी एनजीओ के अपने लक्ष्य और उद्देश्यों के अनुसार विदेशी चंदे का इस्तेमाल न करने या वार्षिक रिटर्न दाखिल न करने की सूरत में भी उसका एफसीआरए पंजीकरण रद्द कर दिया जाएगा। कानून के मुताबिक, किसी गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) के लिए विदेशी चंदा हासिल करने के लिए विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम के तहत पंजीकृत होना अनिवार्य है।

गृह मंत्रालय ने कहा कि किसी एनजीओ का एफसीआरए पंजीकरण उस स्थिति में भी रद्द किया जा सकता है कि वह पिछले दो- तीन साल में किसी गतिविधि में शामिल नहीं रहा या निष्क्रिय हो गया या फिर फील्ड जांच के दौरान उन गतिविधियों की पुष्टि नहीं की जा सकी, जिसका दावा किया गया था या पता चला कि समाज के कल्याण के लिए उसने कोई उचित गतिविधि नहीं की।

मंत्रालय के मुताबिक, एफसीआरए लाइसेंस जिन अन्य कारणों से रद्द किया जा सकता है, उनमें मांगे गए स्पष्टीकरणों का जवाब न देने, या ऐसा करने का मौका दिए जाने के बावजूद अपेक्षित जानकारी या दस्तावेज मुहैया न कराने के लिए किसी पदाधिकारी, सदस्य या प्रमुख अधिकारियों के खिलाफ मुकदमे का लंबित होना शामिल है।

नोटिस में कहा गया है कि अगर किसी एनजीओ ने विकास विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने या दुर्भावनापूर्ण इरादे से विरोध-प्रदर्शन भड़काने के लिए विदेशी चंदे का इस्तेमाल किया है, या फील्ड जांच से पता चलता है कि संगठन या उसके पदाधिकारियों ने संभवत: लाभ हासिल किया है, या विदेशी अंशदान का उपयोग अवांछनीय गतिविधियों के लिए किया गया है, या आतंकवादी संगठनों या राष्ट्र-विरोधी तत्वों के साथ संबंध की बात सामने आती है, तो उनका एफसीआरए पंजीकरण रद्द कर दिया जाएगा।

नोटिस के अनुसार, अगर कोई जांच एजेंसी किसी एनजीओ के प्रतिकूल गतिविधियों में शामिल होने की सूचना देती है या उसे मिलने वाले विदेशी चंदे से सामाजिक, धार्मिक सद्भाव प्रभावित होने की आशंका व्यक्त करती है, तो भी उसका एफसीआरए लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा।


नोटिस में कहा गया है कि एनजीओ द्वारा अपने लक्ष्यों और उद्देश्यों के अनुसार परियोजनाओं के लिए हासिल विदेशी चंदे का इस्तेमाल नहीं करने, पिछले छह वित्तीय वर्षों में से किसी का भी वार्षिक रिटर्न अपलोड नहीं करने और पिछले तीन वित्तीय वर्षों के दौरान अपनी मुख्य गतिविधियों की न्यूनतम 15 लाख रुपये की राशि समाज के कल्याण के लिए खर्च करने के मानदंडों को पूरा न करने पर भी एफसीआरए लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा।


मोदी सकरार का ऐतिहासिक निर्णय : हिंदी इंग्लिश के अलावा 13 भाषाओं में होगा CAPF कांस्टेबल एग्जाम

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नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs) ने केंद्रीय अर्धसैनिक बलों (CRPF) में भर्ती के लिए हिंदी और अंग्रेजी के अलावा 13 क्षेत्रीय भाषाओं में कांस्टेबल (जनरल ड्यूटी) परीक्षा आयोजित करने को मंज़ूरी दी है. ये ऐतिहासिक फैसला गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह की पहल पर सीएपीएफ में स्थानीय युवाओं की भागीदारी बढ़ाने और क्षेत्रीय भाषाओं को प्रोत्साहन देने के लिए लिया गया है. 


हिन्दी और अंग्रेज़ी के अलावा प्रश्न पत्र निम्न 13 क्षेत्रीय भाषाओं में तैयार किया जाएगा—

  1. असमिया
  2. बंगाली
  3. गुजराती
  4. मराठी
  5. मलयालम
  6. कन्नड़
  7. तमिल
  8. तेलुगु
  9. ओडिया
  10. उर्दू
  11. पंजाबी
  12. मणिपुरी
  13. कोंकणी

इस निर्णय के परिणामस्वरूप लाखों उम्मीदवार अपनी मातृभाषा / क्षेत्रीय भाषा में परीक्षा में भाग ले सकेंगे जिससे उनके चयन की संभावनाएं बढ़ेंगी। गृह मंत्रालय और कर्मचारी चयन आयोग कई भारतीय भाषाओं में परीक्षा के संचालन की सुविधा के लिए मौजूदा समझौता ज्ञापन से संबंधित एक परिशिष्ट पर हस्ताक्षर करेंगे।

कांस्टेबल (जनरल ड्यूटी), कर्मचारी चयन आयोग द्वारा आयोजित प्रमुख परीक्षाओं में से एक है, जिसमें देशभर से लाखों उम्मीदवार भाग लेते हैं। हिन्दी और अंग्रेज़ी के अतिरिक्त 13 क्षेत्रीय भाषाओं में परीक्षा का आयोजन 01 जनवरी, 2024 से होगा।

इस निर्णय के बाद ये उम्मीद है कि राज्य / केंद्रशासित प्रदेशों की सरकारें स्थानीय युवाओं को अपनी मातृभाषा में परीक्षा देने के इस अवसर का उपयोग करने और देश की सेवा में करियर बनाने के लिए बड़ी संख्या में आगे आने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए व्यापक अभियान शुरू करेंगे। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व और गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह के मार्गदर्शन में गृह मंत्रालय, क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग और विकास के प्रोत्साहन के लिए कटिबद्ध है।

सिर्फ कोरोना ही नहीं इलाज की कमी से हुई 81.16 लाख लोगों की मौत, रिपोर्ट में खुलासा

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भारत में साल 2020 में हुई कुल मौतों को लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने रिपोर्ट जारी की है। इसे सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम 2020 के नाम से जारी की गई, जिसके मुताबिक 2020 में देश में कुल 81.16 लाख लोगों की मौत हुई थी। इनमें से 45% लोगों को कोई मेडिकल ट्रीटमेंट नहीं मिला था। इलाज के अभाव में ये अब तक की सबसे ज्यादा मौतें हैं। साल 2019 में ये आंकड़ा देशभर में हुई मौतों का 34.5% था।

बता दें कि 2020 की शुरुआत में कोरोना की वजह से कई अस्पतालों के 80 से 100% बेड्स भारे हुए थे। इस वजह से नॉन-कोविड पेशेंट्स को इलाज ही नहीं मिल पाया। हालांकि इन आंकड़ों में 2020 में अस्पतालों में होने वाली मौतों की संख्या में गिरावट देखने को मिली है। इन मौतों का आंकड़ा 32.1% से घटकर 28% हो गया। ये आंकड़ा अब तक की सबसे तेज गिरावट को दर्शाता है। मेडिकल सुविधाओं के अभाव और अस्पतालों में होने वाली मौतों के आंकड़े में ये अंतर नया नहीं है। 

सुविधाओं के अभाव में मौतों का सिलसिला जारी

बीते 10 साल के अंदर मेडिकल सुविधाओं के अभाव में होने वाली मौतें का आंकड़ा तेजी से बढ़ा है। वहीं मेडिकल संस्थानों में होने वाली मौतें तेजी से घटी हैं। साल 2011 में मेडिकल सुविधा के अभाव में सिर्फ 10% ही मौतें हुई थी। हालांकि उस दौरान सिर्फ 67% मौतें ही दर्ज की जाती थीं। संस्थानों में होने वाली मौतें उस दौरान बढ़ीं, क्योंकि ये मौतें रजिस्टर की जाती थीं। जैसे-जैसे मौतें रजिस्टर होने लगीं वैसे ही मौतों का आंकड़ा बढ़ने लगा।

कोरोना की वजह से हुआ मौतों में इजाफा

साल 2017 और 2018 में मेडिकल सुविधाओं के अभाव और मेडिकल फैसिलिटी में होने वाली मौतों का आंकड़ा लगभग बराबर था। ये आंकड़े देश भर में होने वाली कुल मौतों के एक तिहाई थे। बाकी के एक तिहाई मौतें किस वजह से हुई, इसकी जानकारी नहीं दर्ज हो पाई। साल 2019 में मेडिकल सुविधाओं के अभाव में होने वाली मौतें, मेडिकल संस्थानों में होने वाली मौतों से अधिक थीं, लेकिन कोरोना महामारी की वजह से 2020 में अभाव में होने वाली मौतों में इजाफा हुआ है। ट्रेंड के मुताबिक 2021 में भी ये आंकड़ा और बढ़ेगा, क्योंकि महामारी के दौरान बड़ी आबादी को अस्पतालों की सुविधा नहीं मिल पाई थी। कोरोना के कारण लाखों लोगों ने अपनी जान गंवाई है। कोरोना की वजह से कई बच्चे अनाथ हो गए हैं। कई लोगों का पूरा परिवार इस महामारी में खत्म हो गया है। 

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